भारत के राजनीतिक क्षितिज पर नया सवेरा हो रहा है। इतिहास ने अपना नया अध्याय लिखना आरंभ कर दिया है, लगता है देश में फिर से मधुमास आ गया है। आज समय है स्वतंत्रता, स्वराज्य और व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की प्रचलित परिभाषाओं की समीक्षा करने का और इन प्रचलित परिभाषाओं की ओट में इन शब्दों की वास्तविक परिभाषाओं पर छाये कुहासे को साफ करने का।
मोदी को देश ने गौरवमयी सफलता देकर उन्हें भारत के गौरवमयी इतिहास की उस महान परंपरा में सम्मिलित करने का अभिनंदनीय कार्य किया है, जिसके लिए मार्ग प्रशस्त करते हुए इस देश की पीढिय़ां व्यतीत हो गयीं। इस पावन बेला में आज मोदी को उन सभी राष्ट्रभक्त महान आत्माओं का स्मरण करना चाहिए, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से इस देश के लिए स्वतंत्रता, स्वराज्य और व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की सुंदरतम और उत्कृष्टतम या तो परिभाषायें गढ़ीं या फिर या फिर उन्हें गढऩे के लिए आजीवन संघर्ष किया। ऐसे हजारों-लाखों क्रांतिकारियों की आत्माएं आज तक भटक रही हैं, जिनके कार्यों का उचित मूल्यांकन तो दूर उनके नामों का स्मरण मात्र तक कांग्रेसी छद्मवादी नेताओं ने नही होने दिया है और सारा इतिहास मिथ्या और भ्रामक वंदन व अभिनंदन से भरकर प्रस्तुत कर दिया गया है।
महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज, स्वामी विवेकानंद, हेडगेवार, स्वातंत्रय वीर सावरकर प्रभृति दिव्यात्मायें हमारे उन लाखों स्वतंत्रता सैनानियों या राष्ट्रचिंतकों की आत्माओं की प्रतिनिधि आत्मा हो सकती हैं, जिन्होंने अपनी गर्दन का ना तो मोल लिया और ना ही अपने वंदन की कभी अपेक्षा की। लगता है कि भारत के राजनीतिक क्षितिज पर आज वो सभी राष्ट्रभक्त हुतात्माएं पुष्प वर्षा कर उसकी जनता के साहसिक और सामयिक निर्णय पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उसका अभिनंदन कर रही है।
मोदी निश्चित रूप से इस देश की सवा अरब जनता की अपेक्षाओं का प्रतीक बनकर उभरे हैं। पर उन्हें स्मरण रखना होगा कि इस सफलता में उनका अपना कम और दूसरी चीजों का अधिक योगदान है। सर्वप्रथम तो मां भारती ने पुन: सिद्घ किया है कि उसकी गोद जब-जब खाली होती है तब-तब वह अपनी कोख से कोई न कोई अमूल्य हीरा प्रस्तुत कर हमें कृतार्थ करती है। यदि मोदी को मां ने आज सेवा के योग्य समझा है, तो सबसे पहली कृतज्ञता उन्हें उसी के प्रति ज्ञापित करनी चाहिए। इसके पश्चात जिन लोगों ने अपनी गर्दन का बिना मोल लिये अपना सर्वोत्कृष्ट बलिदान दिया उनकी भावनाओं को समझकर उनके सपनों का भारत बनाने का संकल्प लेना चाहिए और उनके प्रति भी अपनी श्रद्घा व्यक्त करनी चाहिए, क्योंकि उनका बलिदान और आशीर्वाद आज लंबे काल के पश्चात फलीभूत हो रहा है और उस आशीर्वाद का फलितार्थ मोदी बन गये हैं। जब सबेरे का प्रकाश आता है, तो सारी रात अंधेरे से संघर्ष करने वाले दीपक को भी हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए विदा करने की परंपरा भारत में रही है। हेलेन केलर ने कहा है कि जीवन को अहम बनाने के लिए आवश्यक है कि हम विश्वास करें कि इस अनिश्चय का, इस अंधेरे का, जिसमें हम संघर्षरत हैं, किसी दिन प्रकाशपूर्ण हल प्राप्त हो जाएगा और इस क्षण भी हमारे पास उस ज्ञान के ऐसे छोटे मोटे चिन्ह हैं जो प्रकाश से आंखें चार होने पर हमें मिलेगा।
मोदी के सपने नवभारत के निर्माण का संकल्प हैं। उन्हें अपने कार्य का शुभारंभ एक साधारण राजनीतिज्ञ की भांति अपने चुनावी वायदों को पूरा करने की प्रचलित परंपरा के अनुसार लैपटॉप बांटकर नही करना चाहिए, अपितु उन्हें हर क्षण केवल एक ही बात स्मरण रखनी चाहिए कि वह एक राजनेता हंै और उन्होंने मां भारती को जो वचन दिया है वह उसे निभाने का आजीवन प्रयास करेंगे और उनका यह वचन देश के प्रत्येक नागरिक को समृद्घि और विकास की पंक्ति में ला खड़ा करता है। जहां तक विकास की बात है तो यह विकास मानसिक शक्तियों का भी हेागा, बौद्घिक शक्तियों का भी होगा, और आत्मिक शक्तियों का भी होगा। भौतिक विकास को मनुष्य का अंतिम लक्ष्य बनाकर हमने पिछले 67 वर्षों में उस राह पर चलकर देख लिया है, जिसका परिणाम ये आया है कि भारतीय समाज के एक वर्ग ने अपना भौतिक विकास तो कर लिया, परंतु उसके भीतर से मानव का सबसे कीमती हीरा अर्थात मानवता कहीं लुप्त हो गयी। जिससे भारतीय समाज में कई विसंगतियों ने जन्म लिया है। देश में जाति, पंथ, लिंग के आधार पर पक्षपात बढ़ा है, आर्थिक विषमता बढ़ी है, और सबसे भयंकर बात ये है कि इन्हीं बिंदुओं पर समाज मेें लोगों की धु्रवीकरण की प्रक्रिया बढ़ी है। जो दीवारें हमें नीची करते-करते अंत में समाप्त ही कर देनी अभीष्ट थीं, वही दीवारें हमारे विनाश का कारण बन रही हंै, क्योंकि हमने उन्हें नीची करने के स्थान पर ऊंची करना आरंभ कर दिया। इन्हीं दीवारों के बीच आज भारत का जनसाधारण कैद है, उसकी मानवता कैद है और उसके मानस का मोती उससे कहीं खो गया है।
इस स्थिति के लिए हमारी शिक्षा नीति भी उत्तरदायी है। यह शिक्षा ही है जो व्यक्ति को रोजगार पाने की एक मशीन बना रही है और उसे संस्कारित बनाकर ईशभक्त और देशभक्त बनाने के अपने महती दायित्व से मुंह फेर चुकी है। शिक्षा देश में लोगों को साम्प्रदायिक सोच दे रही है और उस साम्प्रदायिक शिक्षा को पाकर लोग अपने ही साथियों पर चाकू छुरा चलाने की घृणित नीतियों पर चल रहे हैं। जिससे देश का सामाजिक परिवेश दिनानुदिन विषाक्त होता जा रहा है। जबकि शिक्षा का उद्देश्य मानव निर्माण होता है। इसलिए मानव के निर्माण के सत्संकल्प को मोदी मां भारती के प्रति अपना दिया गया वचन घोषित करें और उसी के लिए कार्य करें। इस देश केा ही नही इस विश्व को भी ईशभक्त और देशभक्त (ईशभक्ति का विराट स्वरूप प्राणिमात्र के प्रति सहृदयता का भाव है तो देशभक्ति का विराट स्वरूप संपूर्ण वसुधा को ही अपना घर मानना है, क्योंकि मानव का देश ही संपूर्ण वसुधा है, जो देश हमें भूमण्डल में दिखाई देते हैं वो तो मानवता की संकीर्ण परिभाषा के द्योतक हैं) लोगों की आवश्यकता है।
मोदी यदि देश की शिक्षा-नीति में इस क्रांतिकारी परिवर्तन को लाने में सफल हो गये तो भारत पुन: विश्वगुरू बनने के मार्ग पर आरूढ़ हो सकता है। शिक्षा-नीति ही वह पेंच होती है, जिसे खींचने से देश की अन्य व्यवस्थायें स्वत: ठीक होने लगती हंै। संस्कारित व्यक्ति कभी अपने अधिकारों के लिए नही लड़ता है, अपितु वह अपने कत्र्तव्यों पर ध्यान देता है और सदा उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है। इसलिए ऐसे संस्कारित व्यक्ति के रहते दूसरे व्यक्ति के अधिकारों की स्वयं रक्षा होती है और समाज में विसंगतियों या अंतर्विरोधों के लिए कहीं कोई स्थान नही होता है। ऐसे मानव समाज का निर्माण करना ही सभ्य समाज का निर्माण करना माना जा सकता है। वर्तमान शिक्षा नीति ने व्यक्ति को अपने अपने अधिकारों के लिए लडऩा सिखाया है और व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए समाज में विभिन्न प्रकार के दबाव गुट, सभा, सोसायटी, सामाजिक संगठन, जातीय, साम्प्रदायिक या क्षेत्रीय अथवा कर्मचारी अधिकारी एसोसिएशन बना-बनाकर संघर्ष कर रहा है। इससे किसी का भला हो रहा है तो किसी को हानि हो रही है। जिस व्यक्ति की या व्यक्ति समाज की कोई सभा सोसायटी नही है या कोई संगठन नही है उसके अधिकार छीने जा रहे हैं और जिसके पास ये चीजें हैं उन्हें ये अधिकार दिये जा रहे हैं। क्या कभी किसी ने गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की कोई सभा सोसायटी या संगठन देखा है? उनके पास कोई संगठन नही है इसलिए उनकी चिंता भी किसी को नही है।
शिक्षा-नीति वर्तमान में अनीति का प्रतीक बन चुकी है। जिससे समाज में अन्याय, शोषण और अत्याचार का बोलबाला बढ़ा है। नेहरू के काल से ही शासन की नीतियां ऐसी रहीं कि हमने अपना भारतीयकरण करने के स्थान पर विदेशीकरण करना आरंभ कर दिया और आज परिणाम देख रहे हैं कि देश के भीतर तैयार किये उत्पादनों को हम हेयदृष्टि से देखते हैं और चाइना, ब्रिटेन या अमेरिका में बने उत्पादों को खरीदते हैं। फलस्वरूप देश का उद्योग व्यापार मरता -मिटता जा रहा है और विदेशी यहां आनंद मना रहे हैं। जबकि विदेशियों को तो हमने निकालकर बाहर करने का लंबा संघर्ष किया था। पर हम स्वयं ही अपना विदेशीकरण करने पर लग गये। ऐसी परिस्थितियों में देश ‘सोने की चिडिय़ा’ कैसे बन सकता था?
हम आजाद ही नही हुए थे या हम आजाद होकर भी गुलामी के मकडज़ाल में खुद ही जा फंसे, आज मोदी को इसी यक्ष प्रश्न का उत्तर खोजना होगा। मां भारती का आशीर्वाद और इस देश के सवा अरब लोगों के मजबूत हाथ उनके साथ हैं। हम आगे बढ़ें और वास्तविक भारत बनाने के लिए संघर्ष करें सभी दिशायें मोदी का अभिनंदन करने के लिए बांहें फेलाए खड़ी हैं।
मुख्य संपादक, उगता भारत