प्रणव मुखर्जी के अंतिम संस्मरण हो सकते हैं कांग्रेस के लिए अभिशाप सिद्ध
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन के बाद अब उनके संस्मरण का अंतिम हिस्सा प्रकाशित होने वाला है, जिससे कांग्रेस आलाकमान को झटका लग सकता है। जिसका असर प्रकाशन पूर्व ही परिवार में लगभग विवाद-सा खड़ा हो गया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग की सरकार सत्ता में आई थी। प्रणब मुखर्जी ने पार्टी की इस हार के लिए सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने इस ओर भी इंगित किया है कि पार्टी में ये चर्चा थी कि वो मनमोहन से बेहतर प्रधानमंत्री साबित होते।
वैसे कांग्रेस ने अपने पतन की पटकथा की रुपरेखा प्रणव मुख़र्जी को प्रधानमंत्री न बनाकर, दूसरे राष्ट्रपति बनाकर उसे अंतिम रूप दे दिया था। अब उनके अंतिम संस्मरण में यह भी सम्भावना व्यक्त की जा रही कि कहीं पुस्तक में उनकी की जा रही जासूसी का तो जिक्र नहीं है। गौर करने की बात यह कि उनकी जासूसी किये जाने पर हुए विवाद पर यह कहा गया था कि “किसी ने चिनगाम खा कर दीवारों पर फेंक दी थी।”
लेकिन पुस्तक को लेकर प्रणव परिवार में घमासान शुरू हो गया है।संस्मरण को प्रकाशित करने को लेकर भाई-बहन में विरोधाभास की स्थिति हो गई है। दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने उनके संस्मरण ‘The Presidential Memoirs’ के प्रकाशन को लेकर आपत्ति जताई है और इस पर कुछ वक्त के लिए रोक लगाने की माँग की है। दिसंबर 15, 2020 को उन्होंने पब्लिकेशन हाउस को टैग कर एक साथ कई ट्वीट करके इस किताब को पहले पढ़ने का आग्रह किया और फिर ही इसे प्रकाशित किए जाने की माँग की।
अभिजीत ने कहा कि जारी किए गए अंश ‘मोटिवेटिड’ थे और पूर्व राष्ट्रपति ने इनके लिए मंजूरी नहीं दी होगी। उन्होंने पब्लिकेशन ग्रुप रूपा बुक्स से इस किताब के प्रकाशन को रोकने के लिए कहा है। उन्होंने अपने ट्वीट में माँग की है कि चूँकि वो संस्मरण के लेखक (प्रणब मुखर्जी) के पुत्र हैं, ऐसे में इसे प्रकाशित किए जाने से पहले वो एक बार किताब की सामग्री को देखना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वो चाहते हैं कि किताब को प्रकाशित करने के लिए उनकी लिखित अनुमति ली जाए।
उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “मैं, ‘The Presidential Memoirs’ के लेखक का पुत्र, आपसे आग्रह करता हूँ कि संस्मरण का प्रकाशन रोक दिया जाए, और उन हिस्सों का भी, जो पहले ही चुनिंदा मीडिया प्लेटफॉर्मों पर मेरी लिखित अनुमति के बिना घूम रहे हैं। चूँकि मेरे पिता अब नहीं रहे हैं, तो मैं उनका पुत्र होने के नाते पुस्तक के प्रकाशन से पहले उसकी फाइनल प्रति की सामग्री को पढ़ना चाहता हूँ, क्योंकि मेरा मानना है कि यदि मेरे पिता जीवित होते, तो उन्होंने भी यही किया होता।”
वहीं शर्मिष्ठा ने अपने भाई की बात पर आपत्ति जताते हुए कहा, “मैं, ‘The Presidential Memoirs’ के लेखक की पुत्री अपने भाई अभिजीत मुखर्जी से आग्रह करती हूँ कि वो हमारे पिता द्वारा लिखी गई आखिरी किताब के प्रकाशन में बेवजह की बाधा उत्पन्न न करें। उन्होंने बीमार पड़ने से पहले पांडुलिपि को पूरा कर लिया था।”
शर्मिष्ठा ने आगे लिखा, “अंतिम ड्राफ्ट में मेरे पिता के हाथ से लिखे नोट्स और टिप्पणियाँ हैं, जिनका सख्ती से पालन किया गया है। उनके द्वारा व्यक्त किए गए विचार उनके खुद के हैं और किसी को भी किसी सस्ते प्रचार के लिए प्रकाशित होने से रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह हमारे दिवंगत पिता के लिए सबसे बड़ा नुकसान होगा।”
प्रणब मुखर्जी के संस्मरणों की यह किताब जनवरी, 2021 में प्रकाशित हो रही है। उनकी किताब के कुछ अंश पिछले हफ्ते जारी किए गए थे, जिसमें सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह की क्षमता पर सवाल उठाए जाने का जिक्र था। इसे लेकर एक बार फिर सोनिया की क्षमता और मनमोहन सिंह के कार्यकाल पर हमले शुरू हो गए थे। हालाँकि, कांग्रेस ने इन अंशों पर बिना किताब पढ़े कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया था, लेकिन अब उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने किताब को प्रकाशित किए जाने से पहले पढ़ने की माँग की है।
प्रणब मुखर्जी ने अपने संस्मरण में लिखा है, “कांग्रेस के कुछ सदस्यों की सोच थी कि अगर 2004 में मैं प्रधानमंत्री बना होता तो 2014 में पार्टी को जो पराजय देखनी पड़ी, उसे टाला जा सकता था। यद्यपि मैं इस सोच से इत्तेफाक नहीं रखता। लेकिन, मैं ये ज़रूर मानता हूँ कि 2012 में मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस पार्टी के आलाकमान ने राजनीतिक फोकस खो दिया।” दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी पुस्तक ‘The Presidential Years’ में ये बातें लिखी हैं।
प्रणब मुखर्जी ने खुलासा किया है कि जहाँ एक तरफ सोनिया गाँधी पार्टी के मामलों को सँभालने में अक्षम रही थीं, वहीं सदन से डॉक्टर मनमोहन सिंह की लगातार अनुपस्थिति ने सांसदों के साथ उनके व्यक्तिगत संपर्कों को ख़त्म कर दिया। ‘भारत रत्न’ प्रणब मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में बतौर राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी दी है। उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में 3 साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के साथ भी काम किया था।
उन्होंने लिखा है कि शासन करने का नैतिक अधिकार प्रधानमंत्री में ही निहित है। बकौल प्रणब मुखर्जी, देश की सम्पूर्ण स्थिति एक तरह से प्रधानमंत्री और उनके प्रशासन के क्रियाकलापों का ही प्रतिबिम्ब है। उन्होंने पाया कि डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के रूप में गठबंधन को बचाने में ही तल्लीन रहे, जिसका दुष्प्रभाव उनकी सरकार पर भी पड़ा। कांग्रेस के कई अन्य नेता भी मनमोहन सिंह को यूपीए काल में कांग्रेस के प्रति लोगों की नाराजगी के लिए जिम्मेदार ठहरा चुके हैं।
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम करने के तरीकों पर प्रकाश डालते हुए प्रणब मुखर्जी ने लिखा है, “ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में एकतंत्रीय शासन व्यवस्था को अपना लिया। सरकार, न्यायपालिका और विधायिका के बीच कटु संबंधों को देखते हुए ऐसा ही प्रतीत होता है। अब समय ही बताएगा कि उनके दूसरे कार्यकाल में ऐसे मामलों पर सरकार बेहतर समझ और सहमति के साथ काम करती है या नहीं।”
उन्होंने बताया है कि सोनिया गाँधी ने जून 2, 2012 को उन्हें बताया था कि वो राष्ट्रपति के पद के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार हैं। लेकिन, उन्होंने ये भी याद दिलाया था कि यूपीए सरकार में उनका जो किरदार रहा है, उसे भी नहीं भूला जाना चाहिए। यूपीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में मुखर्जी से एक वैकल्पिक नाम भी माँगा गया था। प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि इस बैठक के बाद अस्पष्ट तौर पर उन्हें ये ही लगा था कि शायद सोनिया गाँधी इस पद के लिए मनमोहन सिंह के नाम पर विचार करें।
उन्होंने सोचा कि अगर ऐसा होता है तो शायद उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में प्रोन्नत किया जा सकता है। प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि उन्हें ऐसी चर्चा सुनने को मिली थी कि कौशाम्बी की पहाड़ियों पर छुट्टियाँ मनाते समय सोनिया गाँधी ने इस पर विचार-विमर्श भी किया था। मनमोहन सिंह भी मान चुके हैं कि मुखर्जी उनसे बेहतर प्रधानमंत्री होते, लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि वो जानते थे कि उनके पास कोई च्वाइस नहीं है।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का अगस्त 31, 2020 को देहांत हो गया था। भारत रत्न प्रणब मुखर्जी ने 2018 में संघ के एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की थी। ‘संघ शिक्षा वर्ग-तृतीय’ नामक यह कार्यक्रम 7 जून 2018 को नागपुर के संघ मुख्यालय में हुआ था। प्रणब मुखर्जी के इस फैसले ने कॉन्ग्रेस को भी असहज कर दिया था। उन्होंने RSS के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को भारत माँ का महान बेटा भी बताया था।
इंडिया फर्स्ट से साभार
मुख्य संपादक, उगता भारत