संविधान की खतरनाक धारा 370
देवेन्द्र सिंह आर्य
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता संभालते ही संविधान की धारा 370 पर राष्ट्रीय बहस शुरू हो गयी है। इस धारा को राष्ट्रवादी दलों व लोगों ने शुरू से ही आपत्तिजनक माना है। इसके आपत्तिजनक मानने के कुछ ठोस कारण हैं, जैसे-
– जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
-जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है।
-जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षांे का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्षांे का ही होता है।
-जम्मू-कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नही होता।
-भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नही होते हैं।
-भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के संबंध में अत्यंत सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।
-जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाएगी, इसके विपरीत यदि वह पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाएगी।
-धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई लागू नही है, आरटीई लागू नही है और सीएजी लागू नही होता भारत का कोई भी कानून लागू नही होता।
-कश्मीर में महिलाओं पर शरीया कानून लागू है।
-कश्मीर में पंचायत के अधिकार नही है।
-कश्मीर में चपरासी को 2500 ही मिलते हैं।
-कश्मीर में अल्पसंख्यकों (हिंदू-सिख) को 16 प्रतिशत आरक्षण नही मिलता।
-धारा 370 की वजह से पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है। इसके लिए पाकिस्तानियों को केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है।
हमारे देश की संसद विदेशी मामलों, आंतरिक सुरक्षा और संचार के अतिरिक्त अन्य विषयों में जम्मू-कश्मीर के लिए कानून नही बना सकती। राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग करके राज्यपाल
शासन लागू करने का संविधानिक अधिकार ही प्राप्त नही है। हमारे देश का राष्ट्रपति देश के इस राज्य में आपातकाल की घोषणा भी नही कर सकता।
जम्मू-कश्मीर के लिए संविधान सभा में धारा 33 ए के अंतर्गत कुछ विशेष प्रावधान किये गये हैं। जिनके अंतर्गत 1944 से पहले जम्मू-कश्मीर में रहने वाले लोगों को राज्य की प्रजा माना गया है। अत: 1947 में जो लोग पाकिस्तान से भाग कर महाराजा हरिसिंह की इस रियासत में आबाद हुए थे, उन्हें राज्य के नागरिक होने का अधिकार प्राप्त नही है। ऐसे लोग राज्य विधानसभा और पंचायतों के चुनावों में मतदान नही कर सकते। इन लोगों के लिए आज तक राज्य सरकार की नौकरियों के दरबाजे बंद हैं। ऐसे लोगों को कस्टोडियन द्वारा आवंटित किये गये संपत्ति के मालिकाना अधिकार नही दिये गये हैं।
अब तक हमारे देश की केन्द्र सरकार इस राज्य पर 48 हजार करोड़ से अधिक रूपया व्यय कर चुकी है। इतनी मोटी धनराशि का लाभ प्रदेश की जनता को कम मिला है, जबकि यह धनराशि यहां के शासक वर्ग के पेट में ही चली गयी है। इसलिए कोई भी शासक दल आज तक यहां पर ऐसा नही आया जिसने इस संवेदनशील धारा को हटाना उचित समझा हो। क्योंकि हर शासक को इस धारा के माध्यम से खाने कमाने और मौज मस्ती करने का अच्छा साधन उपलब्ध हो जाता है।
दुनिया के किसी भी देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान की ऐसी राष्ट्रघाती व्यवस्था नही है, जैसी भारत में जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में है। संविधान की इस धारा को उस समय अस्थायी धारा के रूप में रखा गया था, जिसे हटाने की शक्ति हमारे देश के राष्ट्रपति के पास सुरक्षित है।
परंतु व्यवहार में हमें ऐसा दिखाया गया है कि जब तक किसी दल के पास दो तिहाई बहुमत संसद में नही होगा और जब तक जम्मू-कश्मीर की विधानसभा इस धारा को हटाने की सहमति नही देगी, तब तक यह धारा हटाई नही जा सकेगी।
वास्तव में एक भ्रांति है जिसे राजनीतिज्ञों ने निहित स्वार्थों में इतना जटिल बना दिया है, जितनी कि वो अपने मूल रूप में है नही। अब मोदी सरकार इस धारा को लेकर गंभीर दीख रही है। देखते हैं, क्या परिणाम होता है।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।