सिद्धार्थ शंकर गौतम
मोदी सरकार के गठन के ठीक अगले ही दिन प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री और उधमपुर से भाजपा सांसद जितेंद्र सिंह ने भाजपा के घोषणा-पत्र के अनुरूप जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद ३७० के औचित्य पर बयान देकर सियासत को गरमा दिया है| दरअसल उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद ३७० को निरस्त करने के लिए बहस शुरू की जाएगी, ताकि युवाओं को इसके नुकसान के बारे जागरूक किया जा सके। हालांकि जितेंद्र सिंह के बयान की भाषा को समझें तो उन्होंने ऐसा कोई आपत्तिजनक शब्द नहीं कहा जो जम्मू-कश्मीर की सरकार या वहां की जनता को चुभ जाए किन्तु सूबे के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की नेता महबूबा मुफ़्ती ने जितेंद्र सिंह के कथन को तिल का ताड़ बना दिया| हालांकि मुफ़्ती का लहजा अपेक्षाकृत नरम था किन्तु उमर ने जिस तरह सोशल नेटवर्किंग साईट ट्विटर पर अपना गुस्सा उतारा उससे प्रतीत होता है मानो उमर जम्मू-कश्मीर में अपनी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की खीज निकाल रहे हों| अनुच्छेद ३७० को लेकर पूरवर्ती सरकारों ने जितनी पेचीदगियां पैदा की हैं उससे यह मसला अब आपसी बातचीत से तो सुलझता नहीं दिखता| १९४७ की परिस्थितियां कुछ और थीं, २०१४ की कुछ और हैं| फिर जम्मू-कश्मीर की स्वायत्ता का मामला भी पाकिस्तान की ओर से संयुक्त राष्ट्र संघ में गया जिसके बाद से यहां यथास्थिति बनी हुई है| यह सच है कि अनुच्छेद ३७० का मामला जितना राजनीतिक है, उतना ही कश्मीर की जनता की स्वायत्ता से भी जुड़ा हुआ है|
जम्मू, उधमपुर और लद्दाख क्षेत्र को छोड़ दिया जाए तो कश्मीर में, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, अनुच्छेद ३७० को अपनी आज़ादी का सबसे बड़ा अस्त्र मानते हैं और जाहिर है कि यदि उनकी स्वतंत्रता को कोई छीनने का यत्न करेगा तो यह उन्हें भी बर्दाश्त नहीं होगा| फिर पाकिस्तान भी अनुच्छेद ३७० की आड़ में जब तब जम्मू-कश्मीर में अस्थिरता पैदा करता रहा है| देखा जाए अनुच्छेद ३७० का मसला भारत की राष्ट्रीयता और अखंडता से जुड़ा है और यदि केंद्र सरकार इस पर सार्थक पहल कर रही है तो इस पर तमतमाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है| पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भारत छोड़ते ही इस मुद्दे को जिस तरह सियासी रंग देने की और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनाई जा रही है, उसे किसी भी नजरिए से सही नहीं कहा जा सकता| आखिर देश की बहुसंख्यक जनसंख्या के मन में यह प्रश्न हमेशा से उठता रहा है कि जब देश की आजादी के बाद रियासतों का भारत में विलय बिना किसी लेन-देन अथवा रियायतों के हुआ तो जम्मू-कश्मीर को आजादी के इतने सालों बाद भी विशेष दर्ज़ा क्यों? क्यों भारत का एक आम नागरिक धरती के स्वर्ग में अपनी जन्नत नहीं तलाश सकता? क्यों वहां बसकर सांस्कृतिक विरासत का आदान-प्रदान नहीं हो सकता? पाकिस्तान का कोई नागरिक यदि कश्मीरी लड़की से शादी या निकाह कर ले तो उसे कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है किन्तु यही देश के किसी भी राज्य का नागरिक करे तो भी उसे कश्मीर की नागरिकता से वंचित रखा जाता है| आखिर क्यों? क्या यही अनुच्छेद ३७० का औचित्य है कश्मीर में?
दरअसल संविधान की आड़ में अनुच्छेद ३७० को सही ठहराने की उमर अब्दुल्ला की कोशिश उनकी राजनीतिक मजबूरी है| जल्द ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव होने हैं और हालिया लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की दुर्दशा ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया है| वैसे भी अब्दुल्ला परिवार का इतिहास रहा है कि चुनाव आते ही उनके नुमाइंदे अनुच्छेद ३७० और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर विवाद पैदा करने की कोशिश करते हैं| कांग्रेस की पूरवर्ती सरकारों ने भी राजनीतिक मजबूरी के चलते इन मुद्दों को शह देकर अब्दुल्ला परिवार की राजनीतिक विरासत को संभाल रखा है| अब जबकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बहुमत की सरकार बनी है तो भाजपा के लिए बेहद अहम अनुच्छेद ३७० पर गलत बयानबाजी कर उमर कश्मीर की जनता को भड़काने का काम कर रहे हैं| अनुच्छेद ३७० के तहत जिस स्वतंत्रता की दुहाई वे कश्मीरी मुस्लिमों को देते हैं वह मात्र एक राजनीतिक छलावा है| क्या देश के किसी भी राज्य में आम नागरिक या खासकर अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को स्वतंत्रता नहीं मिली है? फिर कश्मीरी मुसलमान को ही ख़ास स्वतंत्रता क्यों चाहिए? और यदि उन्हें यह ख़ास स्वतंत्रता नहीं मिली तो क्या वे भारत से अलग हो जाएंगे? क्या पाकिस्तान में उन्हें भारत से अधिक स्वतंत्रता मिल जायेगी और क्या आज़ाद कश्मीर का नारा बुलंद कर वे सच में आज़ाद हो जाएंगे? उमर का यह कहना कि या तो अनुच्छेद ३७० बरकरार रहेगा या कश्मीर देश से अलग होगा, क्या देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आता? क्या जम्मू-कश्मीर शेख-अब्दुल्ला परिवार की जागीर है जो वे जब चाहेंगे इसे देश से अलग कर देंगे? अनुच्छेद ३७० रहे न रहे, जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था और हमेशा रहेगा। संविधान सभा का राग अलापने से आप एक अहम मुद्दे को खुद के अहम का प्रश्न नहीं बना सकते| वैसे भी संविधान में संशोधन एक चलित प्रक्रिया है और यदि अनुच्छेद ३७० पर संविधान में कोई बदलाव होता है तो यह देश की एकता और अखंडता के लिए सही ही होगा| चाहे इसके एवज में अब्दुल्ला परिवार बेशक पाकिस्तान में बसना चाहे तो बस सकता है| एक आम हिन्दुस्तानी देशभक्त उन्हें नहीं रोकेगा|