अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, पाकिस्तान व साऊथ अफ्रीका आदि देशों के कुछ नगरों में भारत में हो रहे किसान आंदोलन के नाम पर खालिस्तानियों को जोड़ा जा रहा है। जबकि सिक्खों का बड़ा वर्ग इसके विरोध में फिर भी उनको “खालिस्तान” व “सिक्खी” के नाम पर जुड़ने के लिए दबाव बनाया जाता है। मुख्यतः अमरीका से लेकर ब्रिटेन तक जहां-जहां भारत विरोधी ऐसे तत्व है वहां-वहां लगभग प्रतिदिन रैलियों में भारत विरोधी,मोदी विरोधी व खालिस्तान समर्थक अनेक गुट सक्रिय हो गए हैं।अनेक प्रकार के भारत विरोधी नारे जिसमें विशेष रूप से मोदी व अमित शाह के विरोध में नारे लगाये जा रहे हैं। पाकिस्तान व खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाने वाला विदेशी नेटवर्क अपने ऐसे पुराने वीडियो भी सोशल मीडिया में पोस्ट करके मोदी विरोधी प्रचार करने में जुट गया हैं।
ये खालिस्तान समर्थक पाकिस्तान का साथ लेकर वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान जिंदाबाद व अल्लाह-हु-अकबर का नारा लगा कर कटरपंथी सोच को प्रकट करके भारत विरोध की चिंगारी को हवा दे रहा हैं। इससे स्पष्ट होता है कि हमारा जन्मजात शत्रु पाकिस्तान भी इस प्रकार भारत विरोधी षडयन्त्र में लिप्त हैं। समाचारों से पता चला है कि खालिस्तान समर्थक परमजीत पम्मा जो एनआईए का वांटेड आतंकवादी है को लन्दन स्थित भारतीय उच्चायोग के बाहर (6.12.20) व बर्मिघम स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास के बाहर (10.12.20) किसान आंदोलन के प्रदर्शन में उपस्थित रहना खालिस्तानी एजेंडे को ही बढ़ावा देता है।
विभिन्न टीवी चैनलों पर आने वाले समाचारों से यह भी पता चलता है कि खालिस्तान से संबंधित 12800 व भिंडरावाले से सम्बंधित 6500 पोस्ट सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचारित होने से किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी षड्यन्त्रकारी व उनके समर्थक सक्रिय हो गए हैं। अतः भारत विरोधियों के देश-विदेश में बढ़ते हुए ऐसे दुःसाहस को शीघ्र नियंत्रित करना भारत सरकार व भारत भक्तों के समक्ष एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
यह सर्वथा अनुचित है कि लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान रखने में शासन के सद्व्यवहार के कारण राजनीति के बहाने सक्रिय राजनैतिक दलों व कुछ देशद्रोहियों को पाकिस्तान व चीन जैसे भारत के शत्रुओं का साथ मिल रहा है। यह भी दुःखद है कि कुछ भारत विरोधी तत्वों व खालिस्तानियों के दबाव में ही कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रुदो, ब्रिटेन के 36 सांसदों और संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंतोनियो गुतरोस ने किसान आंदोलन का समर्थन करके भारत के आंतरिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप का दुःसाहस किया है। इसी संदर्भ में प्रतिबंधित संगठन “सिख फोर जस्टिस” ने भी चीन के राष्ट्रपति को पत्र लिख कर सहायता मांगी है। निःसंदेह वैश्विक राजनीति में इसकी भर्त्सना व निंदा व्यापक रूप से होनी चाहिये। अतः भारत की एकता व अखण्डता को बनाये रखने के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों को हस्तक्षेप करके किसान आंदोलन की आड़ में बढ़ते खालिस्तान आंदोलन को दबाने में भारत का सहयोग करना चाहिये।
राजद्रोह की राजनीति_
कुछ वर्ष पूर्व काँग्रेस ने जाट आरक्षण के बहाने हरियाणा को जलती आग में झोंका था। उसके बाद कभी एससी/एसटी ऐक्ट के बहाने उत्तरप्रदेश/ सीएए के बहाने पूरा देश/ पटेलों के नाम पर गुजरात, भीमा-कोरेगाँव के नाम पर महाराष्ट्र, अनुच्छेद 370 व 35 ए की वापसी के नाम पर जम्मू-कश्मीर और अब आढ़तियों के बहाने पंजाब। पिछले दिनों जब चीन से सीमाओं पर झड़प हो रही थी उस समय भी कांग्रेसियों के वक्तव्यों में बार-बार शत्रु देश चीन के प्रति सहानुभूति झलकती रही। क्या संसद से राष्ट्रीय सुरक्षा व विकास के लिए संविधानानुसार पारित अधिनियम के प्रति सामान्य नागरिकों को उकसा कर विरोध की राजनीति करने वाली कांग्रेस को मोदी विद्रोह के बहाने भारत विरोध के लिए राजद्रोह का दोषी माना जा सकता है?
याद करो दशकों से देश पर राज करने वाली कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी ने 14 दिसंबर 2019 में रामलीला मैदान, दिल्ली में हुई कांग्रेस की भारत बचाओ रैली में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरुद्ध जनता को भड़काते हुए कहा था कि “लोकतंत्र की रक्षा में हम कुछ भी कुर्बानी देने को तैयार है” और “आर-पार की लड़ाई के लिए घरों से बाहर निकलो”।
उस समय प्रियंका वढेरा के बोल भी कम भड़काऊ नहीं थे “यदि अब भी हम चुप रहे तो संविधान नष्ट हो जाएगा”* आदि भडकाऊ भाषणों के बाद कुछ मुस्लिम व विपक्षी दलों ने देशद्रोहियों का साथ लेकर जामिया व जेएनयू से होते हुए शाहीनबाग जैसे हिंसक व अहिंसक आंदोलन की अनेक नगरों में फैलाया था जिसको समाप्त होने में 101 दिन लगे थे।
इसी प्रकार अनेक विवादित व झूठी बयानबाजी के लिए कुख्यात राहुल गांधी जो सत्ता के लिए इतना तड़प रहा है कि वह बार-बार मोदी सरकार के विरुद्ध जनता को भड़काने के लिए झूठ पर झूठ बोलता आ रहा है। वर्तमान किसान आंदोलन को भड़काने में भी कांग्रेस का बड़ा हाथ है। राहुल गांधी किसानों को भड़काते हुए कहता है कि “आप घबराए नहीं हम आपके साथ है,अभी नहीं खड़े हुए तो कभी खड़े नहीं हो पाओगें,आप हिंदुस्तान है।
अगर यह राजनीति है तो फिर राजद्रोह की परिभाषा क्या होगी?
जेलों में बंद देशद्रोहियों का समर्थन क्यों_
भारतीय किसान यूनियन एकता (उगरांहा) के मंच पर दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन में भीमा कोरेगांव व दिल्ली दंगों के दोषियों की रिहाई के पोस्टर व नारे लगाने वाले जब देशद्रोहियों का समर्थन करेंगे तो क्या उनको किसान माना जा सकता है। क्या भीमा कोरेगांव कांड व दिल्ली दंगों के आरोपियों गौतम नवलखा,जी.एन. साईबाबा, सुधा भारद्वाज, विलसन, शरजील इमाम, उमर खालिद, खालिद सैफी आदि को बुद्धिजीवी व विद्यार्थी के नाम पर निर्दोष मानकर उनकी रिहाई के पोस्टर व नारे लगाए जाएंगे तो क्या किसान आंदोलन को संदिग्ध आतंकवादियों व अर्बन नक्सलियों द्वारा हाईजेक किये जाने का संदेह नहीं होगा? इसको गम्भीरता से समझा जाये तो यह और भी अधिक चिंतित करता है कि इन्हीं अर्बन नक्सलियों के तार सम्भवतः पिछले वर्ष प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पर आक्रामक प्रहार करने वाले षड़यन्त्रकारियों से जुड़े हुए थे। इससे यही आभास होता है कि इस आंदोलन के पीछे विपक्षी दलों के अतिरिक्त अनेक भारत विरोधी शक्तियां एकजुट होकर सक्रिय हो गई है।
लोकतांत्रिक राजनीति में देशद्रोह व विदेशी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं_
देश में मोदीनीत केंद्रीय शासन के सत्तारूढ़ होने के बाद (मई 2014) विभिन्न अनावश्यक समस्याएं व आपदाएं बनाने में कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दल, गैर सरकारी संगठन, नक्सलवादी , वामपंथी, अलगाववादी व सेक्युलर बुद्धिजीवी आदि निरंतर सक्रिय हैं। निःसंदेह शासन की नीतियों व योजनाओं पर सकारात्मक तर्क-वितर्क होना स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है।
लेकिन यह सर्वथा अनुचित है कि लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान रखने में शासन के सद्व्यवहार के कारण राजनीति के बहाने सक्रिय राजनैतिक दलों व कुछ देशद्रोहियों को पाकिस्तान व चीन जैसे भारत के शत्रुओं का साथ मिल रहा है।
यह भी दुःखद है कि कुछ भारत विरोधी तत्वों व खालिस्तानियों के दबाव में ही कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रुदो, ब्रिटेन के 36 सांसदों और संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंतोनियो गुतरोस ने किसान आंदोलन का समर्थन करके भारत के आंतरिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप का दुःसाहस किया है। हमारी सकारात्मक वैश्विक नीतियों का ही परिणाम है कि विभिन्न देशों से हमारे संबंध निरतंर सुदृढ़ हो रहे हैं। जबकि हमारे शत्रु देश पाकिस्तान व चीन को अंतरराष्ट्रीय जगत में बार-बार लज्जित होना पड़ता हैं।
पर्यटकों को भी लुभाता “किसान आंदोलन” _
कृषि कानूनों के विरोध में मुख्यतः पंजाब के किसानों द्वारा चलाया गया किसान आंदोलन अब पंजाब सहित हरियाणा व उत्तरप्रदेश से जुड़ता जा रहा है। देश की राजधानी दिल्ली को केंद्र बना कर हाईवे पर जाम लगाना व टोल नाको को निशुल्क करने जैसी अराजकता शांतिप्रिय व परिश्रमी किसानों को शोभा नहीं देती। दो सप्ताह से चल रहे इस आंदोलन में हज़ारों की संख्या में एकत्रित होकर दिल्ली की विभिन्न सीमाओं के हाईवे पर किसान आंदोलन तीव्र होने के समाचार आये हैं। लेकिन यह सुखद है कि अधिकांश किसान अभी भी कटाई व बुआई करके अपने-अपने खेतों में परिश्रम कर रहा है।
वैसे तो इस आंदोलन को पूर्णतः शांतिपूर्वक चलाये जाने के लिए विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट भोजन, दैनिक प्रयोग की वस्तुएं, हेल्थ चेकअप,आवश्यक दवाइयां, पैरों की मसाज मशीनों की सुविधा, एलसीडी द्वारा फिल्मी मनोरंजन,अध्ययन के लिये पुस्तकें, वाटरप्रूफ टेंट, सोलर पैनल व एयरकंडीशन ट्रेक्टर ट्रॉलियों की भी व्यवस्था विशेष महत्व रखती है। कुछ युवकों ने तो अपनी-अपनी ट्रेक्टर ट्रॉलियों को मॉडिफाइड करके रंग-बिरंगी लाईटों व बेस साउंड सिस्टम आदि लगा कर उसको आकर्षण का केंद्र बना दिया है उसपर फ़ोटो खींचवा कर सोशल मीडिया पर भी डाल कर आनंद ले रहे हैं। ऐसे वातावरण में यह सब आंदोलनकारियों के लिए एक पर्यटन स्थल से कम सुखद नहीं होगा।
“खालसा ऐड” व “दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी” आदि संस्थाएं इस आंदोलन के प्रति सेवा भाव से लगे हुए प्रतीत होते हैं। इसके अतिरिक्त किसानों की फसल पर लाभ कमाने वाले अधिकांश आढ़ती व बिचौलिए आंदोलन में भीड़ जुटाने के लिए गांव गांव से बुजूर्ग व युवा जनों आदि को लाने-ले-जाने के साथ ही उनके भोजन आदि की सारी व्यवस्थाओं में लगे हुए है। कुछ विद्रोही तत्व भी इस आंदोलन में किसानों का भेष धारण करके घुसपैठ कर चुके हैं। इस आंदोलन को लंबे समय तक चलाने के लिए पाकिस्तान भी खालिस्तानियों को पुनः सक्रिय करने के लिए खाद-पानी दे रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। लेकिन क्या इन भटके हुए भोले-भाले आंदोलनकारियों को राष्ट्रीय एकता व अखण्डता के लिए घातक होने वाले पाकिस्तानी षड़यन्त्रों का कोई आभास होगा?
वैसे यह विचित्र व दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसान आंदोलन में सम्मलित उनके तथाकथित नेता सरकार के साथ हो रही वार्ताओं में सरकारी भोजन लेने से मना करते आ रहे है। जबकि सरकार द्वारा खाद, बीज, कीटनाशक व बिजली आदि पर दी जाने वाली सब्सिडी एवं वार्षिक आर्थिक सहायता का लाभ लेने में कभी नहीं चूकते।निःसंदेह भारत कृषि प्रधान देश है और किसानों को अन्नदाता माना जाता हैं लेकिन शासन से परस्पर सौहार्दपूर्ण व्यवहार बनाने से ही समस्या का समाधान हो सकेगा। किसी के भी भड़कावे में आकर अड़ियल रुख बनाए रखने से आंदोलन की बागडोर देशविरोधी तत्वों के हाथों में जाने से देश को भारी क्षति हो सकती है।
विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक)
गाज़ियाबाद