कन्हैया झा
देश में पहली बार, गैस उत्पादान, सन 2006 में सरकार ने कृष्णा-गोदावरी (केजी) बेसिन से गैस निकालने का ठेका देश की एक बड़ी कंपनी रिलाइंस तथा उसकी सहायक कनेडियन कंपनी को दिया था. इन कम्पनियों ने गैस भण्डार की सामर्थ्य तथा वार्षिक उत्पादन के आंकड़ों को बढ़ा-चढा कर पेश किया था. इससे अनेक छोटे निवेशकों ने अधिक दाम पर कंपनी के शेयर खरीदे. साथ ही देश की गैस से बिजली उत्पादन के लिए भी अनेक कंपनियों ने भारी निवेश किया. इससे भी रिलाइंस के शेयरों में उछाल आया था.
जून 2013 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने रंगराजन कमेटी की सिफारिशों के आधार पर रिलाइंस की गैस के दाम 4.2 डॉलर से बढ़ाकर 8.4 डॉलर कर दिए थे, जो कि 1 अप्रैल 2014 से लागू होने थे. परंतू आम चुनावों के कारण तथा आम आदमी पार्टी द्वारा रिलायंस पर आरोप लगाने से अब यह निर्णय नयी सरकार को 1 जुलाई से पहले लेना है.
सन 2012 में जब अनेक राज्यों में गैस से बिजली उत्पादन होने लगी तो मुख्यतः रिलाइंस कंपनी की वजह से गैस के उत्पादन में गिरावट आने लगा. साथ ही रिलाइंस की भागीदार कनेडियन कंपनी ने बताया कि गैस भण्डार आंकने में उनसे गलती हुए थी. उनके अनुसार केजी बेसिन में गैस भण्डार पूर्व अनुमान से 80 प्रतिशत कम है. इस कारण अनेक राज्यों में बिजली के उत्पादन में कमी आने लगी. साथ ही छोटे निवेशकों की चिंता बढने से रिलाइंस के शेयरों में गिरावट आने लगी. कम्पनियां अधिक लाभ कमाने के लिए शेयरों को कृत्रिम तरीके से ऊपर-नीचे करती रहती हैं और रिलाइंस ने भी ऐसा ही किया.
केजी बेसिन में गैस उत्पादन शुरू से ही विवादों में घिरा रहा है. नदियों के मुहाने पर स्थित होने से जमीन बहुत उपजाऊ है. गैस उत्पादन से किसानों की जमीन धंसने की शिकायतें भी आयी हैं. उन्होनें कंपनी के खिलाफ आंध्र प्रदेश के हाईकोर्ट में मुकदमा भी दायर किया हुआ है. केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के खिलाफ भी शिकायत है कि उसने पर्यावरण के नुक्सान पर आँख मीची हुई हैं. सन 2012 की एक रिपोर्ट में कैग (CAG) ने पेट्रोलियम मंत्रालय समेत इसी मामले से जुड़े सरकारी संस्थाओं पर रिलाइंस को अधिक मुनाफ़ा दिलवाने का आरोप लगाया था.
गैस की कीमतों का सीधा असर बिजली की दरों पर पड़ता है. गैस की पूर्ती न होने पर बिजली उत्पादन कम्पनियां आयतित कोयले से उत्पादन करती हैं जो महंगी पड़ती है. पिछले वर्ष जून में सरकार ने बिजली उत्पादन कंपनियों को छूट दी कि वे बढी हुई कीमतों को बिजली वितरण कंपनियों से वसूल कर सकती हैं. लेकिन बिजली वितरण कम्पनियां लगभग 1.9 लाख करोड़ रुपये का घाटा झेलती हुई वैसे ही खस्ता हालत में हैं. अपने घाटे को कम करने के लिए ये कम्पनियां अपनी बिजली खरीद में कटौती करती हैं. बिजली की आपूर्ती कम होने तथा उसके दाम बढने से जनता में रोष पैदा होता है.
रंगराजन कमेटी ने विदेशी बाज़ारों में गैस की कीमतों को ध्यान में रखते हुए एक फार्मूला बनाया था. पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें तय करते हुए भी देशी कम्पनियां विदेशी बाज़ार की कीमतों से बराबरी चाहती हैं. उनका तर्क होता है कि यदि वे इन पदार्थों को विदेशी बाज़ार में बेचते तो उन्हैं अधिक लाभ होता. यह सही है कि उद्योगों को बढ़ावा देना शासन का कर्तव्य होता है. इसलिए समय-समय पर कठोर कानूनी प्रक्रिया से हटकर शासन उन्हें सहूलियतें देता है. इसके अलावा उनके द्वारा पर्यावरण आदि अनेक अतिक्रमणों की अनदेखी भी करता है. लेकिन यह सब एक सीमा तक होना चाहिए.