ज्योतिष की शिक्षा को क्यों अनिवार्य माना गया है?
आचार्य अलंकार शर्मा
भारतीय विद्याओं का मूल स्रोत वेद हैं। वेद की शिक्षाओं पर आधारित पुराण, इतिहास और अन्यान्य साहित्य इसके अनुपूरक हैं। सामान्यतया वेद चार हैं, यह ज्ञान लोगों को है परंतु ये क्या हैं, कैसे हैं, उन्हें पढऩे के लिए कौन सी पुस्तक पढऩी चाहिए इस जानकारी का अभाव दिखता है।
वैदिक वांग्मय में प्रत्येक वेद की संहिता जैसे, यजुर्वेद संहिता, सामवेद संहिता, प्रत्येक के ब्राह्मण ग्रंथ जैसे, ऐतरेय ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण इत्यादि और प्रत्येक के उपनिषद् जैसे छान्दोग्य, ईशावास्य, मुंडक इत्यादि हैं। इन सभी को वेद और वैदिक साहित्य कहा जाता है। इसके अतिरिक्त वेदों के उपवेद, अंगांग, बहुत सी शाखाएं इत्यादि भी हैं। वेद पुरुष की जो कल्पना की गई है उसमें वेदपुरुष के छह अंगों की कल्पना की गई है और ये छह अंग वास्तव में छह ज्ञान विशेष हैं। इन छह अंगों के ज्ञान से ही वेद को पूर्ण रूप से जाना जाता है। सिद्धांत शिरोमणि में कहा है कि वेद का मुख शब्दशास्त्र, नेत्र ज्योतिष, कान निरुक्त, हाथ कल्प, नाक शिक्षा और वेद के दोनों पैर छन्द हैं। ऐसा पुरातन विद्वानों ने कहा है।
इसी प्रकार महर्षि पाण्ििान भी लिखते हैं। पाणिनीय शिक्षा में कहा गया है कि छन्द वेद के दोनों पैर, कल्प दोनों हाथ, ज्योतिष नेत्र और निरुक्त कान हैं। शिक्षा वेद की नाक और व्याकरण मुख है, इसको अंगों सहित जानना चाहिए तब व्यक्ति ब्रह्मलोक में जाता है। इन छह अंगों में भी ज्यातिष शास्त्र को विशेष स्थान प्राप्त है, जोकि वेदपुरुष का नेत्र कहा गया है। इससे ही वेदपुरुष देखता है और इसलिए यह सभी अंगों में प्रधान है। याजुषज्योतिषम् में कहा गया है कि जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, उसी प्रकार सभी वेदांगशास्त्रों में गणित अर्थात् ज्योतिष का स्थान सबसे ऊपर है और जो विद्वान चंद्र, सूर्य और नक्षत्रों की गति को जानता है, वह विद्वान चंद्र, सूर्य और नक्षत्रों के लोकों को प्राप्त करता है।
वस्तुत: आज जिसे हम एस्ट्रोफजिक्स कहते हैं, उसे ही हमारे यहाँ ज्योतिष शा कहा गया है। जिन सूर्यादि ग्रहों एवं जिन आकाशीय पिंडो में प्रकाश है, उनका बोध कराने वाला शास्त्र ज्योतिष है। ज्योतिष शा इनकी गति, उसमें लगने वाले समय, दूरियां आदि को मापने का भी विज्ञान है। भौतिकी शा भी लगभग यही है। आकाशीय पिंडों की गति, समय, दूरियां इत्यादि नापने के लिए समय एक बहुत ही महत्वपूर्ण मान है जिससे तुलना कर ही इन पिंडों के आवर्तन, विभिन्न स्थितियों आदि को समझा जा सकता है। जिस प्रकार मानव ने लंबाई, आयतन, द्रव्यमान नापने के लिए किन्हीं आभासी मात्राओं को मानक माना और उन्हीं से तुलना करके इन मात्राओं को जाना। उसी प्रकार समय को नापने के लिए भी ज्योतिष में पहलों को झपकना यानी निमेष, सूईं से कमल के पत्ते में छिद्र करना यानी त्रुटि इत्यादि में लगे समयों को सूक्ष्म मानों के लिए और वृहद मानों के लिए सूर्य, पृथ्वी, चंद्रमा, नक्षत्र इत्यादि के परिभ्रमण या परिक्रमण को मानक माना गया है जिनमें से तिथि, पक्ष, अयन, वर्ष इत्यादि इसी प्रकार के समय के मान हैं।
इसलिए विज्ञान के छात्रों को ज्योतिष की शिक्षा दी जानी आवश्यक है। इसके बिना भारतीय छात्रों को हम विज्ञान की भारतीय परंपरा की ठीक जानकारी नहीं दे सकते। सामान्यत: ज्योतिष शिक्षा की बात करते ही जन्म कुंडली और उसके फलादेशों की ही चर्चा हमारे मन में उभरती है। जबकि यह ज्योतिष का बहुत ही छोटा हिस्सा है। ज्योतिष के अन्यान्य व्यावहारिक प्रयोग बहुत सारे हैं, जो हमारे देश में शाज्ञान से रहित लोग भी सहजता से करते रहे हैं। उदाहरण के लिए तिथियों का पता लगाना, मुहुर्त यानी समय का पता लगाना, दिशाओं का पता लगाना आदि सारे कार्य ज्योतिष से ही संभव हैं।
ज्योतिष शिक्षा की आवश्यकता को इसी से समझा जा सकता है कि ज्योतिषीय पिंडों के अध्ययन, स्थिति मात्र को जान लेने से ही समय को बताया जा सकता है, जो कि अन्यथा संभव नहीं है। चंद्रमा को मात्र आकाश में देख लेने से विद्यार्थी बता सकता है कि कौन सा पक्ष चल रहा है, सूर्य के उदय स्थान के प्रेक्षण से अयन का ज्ञान हो सकता है और दिन में आ सकने वाले समय मान जैसे मुहूर्त, लग्न, घटी, प्रहर को जाना जा सकता है। कहने का अर्थ यह है कि प्राकृतिक उपादानों से समय का निर्धारण विद्यार्थी कर सकता है। यहां यह बताना समीचीन होगा कि भारतीय काल गणना पूर्णत:प्रकृति पर आधारित है जबकि पाश्चात्य आधुनिक इस संदर्भ में प्रकृति से इतर हैं।
ज्योतिषीय ग्रह गणित में वैसी गणनाएं एवं प्रेक्षण भी किए गए हैं जो कि आज आधुनिक विज्ञान भी नहीं जानता। गणित में योगान्तर, गुणन, भजन, वर्ग, और उसके मूल, घन और उसके मूल तो हैं ही, ग्रहयुति, ग्रहण और उसके प्रकार, छाया और उसके प्रकार यानी प्रकाशिकी, पात—महापात, चंद्रशृगोन्नति, ग्रहों की मंद और शीघ्र गति इत्यादि विषयों का भी वर्णन किया गया है। भूगोल के विषय में भी ज्योतिष में गहन विवेचन उपलब्ध है जिसमें देशान्तर, रेखांक, विभिन्न क्रांति वृत्त आदि ज्योतिष के गहन अध्ययन में से भी बहुत उपयोगी हैं और आधुनिक विज्ञान के समानांतर हैं।
इनके साथ ही ऐतिहासिक तथ्यों को जानने के लिए, पुरातन ग्रंथों जैसे पुराणों इत्यादि को समझने के लिए ज्योतिष के ज्ञान का होना अत्यावश्यक है, जिनमें समय को बताने के लिए बहुधा आकाशीय ज्योतिष्पिंडों से ही समय को इंगित किया जाता है। कितने ही पौराणिक आख्यान ज्योतिषीय घटनाओं के मानवीय कथात्मक निरूपण हैं चाहे वे ध्रुव का शेषशायी विष्णु के अंक में बैठना हो यानी ड्रैको कॉनस्टेलैशन और ध्रुव यानी पोल स्टार या ब्रह्मा को मार भागते रुद्र ओरायन द हंटर और रोहिणी।
समयज्ञान और ग्रहगणित के अतिरिक्त ज्योतिष की एक स्कन्ध संहिता है जो कि कृषि, पर्यावरण, ज्योतिषीय घटनाओं के मौसम, भूकंप, समाज पर पडऩे वाले प्रभाव का अध्ययन करता है। इसमें ग्रहण, ग्रहयुद्ध, ग्रहों के राशि संक्रमण वायु की दिशा, वृष्टि के समय या नक्षत्र में होने से कृषि या आगे आने वाली वर्षा का अनुमान किया जाता है। घाघ की कहावतें इन्हीं पर आधारित हैं और ग्रामीण कृषक इनका बहुआयामी प्रयोग करते हैं। नाक्षत्रिक कृषि के रूप में उत्तर प्रदेश में यह प्रयोग सफल रहा है।
सामान्यतया यह माना जाता है कि फलित ज्योतिष, जो कि त्रिस्कन्ध ज्योतिष का एक भाग है, भाग्य को मानता है। भाग्य अर्थात् जो होना है, वह होगा। परंतु यहां हम यह भूल जाते हैं कि कर्म के दर्शन को समझने को सबसे अच्छा माध्यम ज्योतिष है। फलित ज्योतिष भी कर्म के सिद्धांत के अनुकूल ही है और प्रारब्ध क्रियमाण कर्म के भोग को परिभाषित करता है।
पंचस्कन्ध ज्योतिष में सामुद्रिक को भी रखा गया है, जिसमें व्यक्ति के शारीरिक अंगों के अध्ययन करके उसके बारे में अनुमान किया जाता है। मजे की बात यह है कि यही विषय जब आधुनिक विज्ञान कहता है जिसमें हस्ताक्षर या आकृति यानी पोस्टर एसेसमेंट की बात की जाती है तो उसे हाथों—हाथ लिया जाता है। परंतु जब सामुद्रिक ज्ञान से हाथ—पैरों के टेढ़े—मेढ़े, छोटे—बड़े होने का मानसिक और व्यक्तिगत प्रभाव बताया जाता है तो उसे छद्म ज्ञान बताया जाता है।
उपरोक्त सभी बिंदुओं पर विचार किया जाए तो ज्योतिष का अध्ययन किसी भी विद्यार्थी के लिए एक नया आयाम खोलने वाला है जिसमें यदि संसाधन और आधुनिकता का समावेश और हो तो आयुर्वेद,मुहूर्त, वास्तु इत्यादि कई नए शोध विषय हैं जिनसे ज्योतिष का अध्ययन सोने में सुहागा प्रमाणित होगा।
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