डॉ0 वेद प्रताप वैदिक
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत आकर हमारी विदेश नीति के एक खाली कोने को भर दिया। नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ-समारोह में पड़ौसी देशों के बड़े नेताओं को बुलाया था लेकिन चीन के किसी नेता को नहीं बुलाया। क्या चीन हमारा पड़ौसी नहीं है? वह तो हमारा सबसे बड़ा पड़ौसी है। फिर भी उसे नहीं बुलाने के पीछे कई कारण हैं। उनमें मैं अभी नहीं जाना चाहता लेकिन मुझे विश्वास है कि अगली बार जब नरेंद्र मोदी शपथ लेंगे तो उस समय चीन के प्रधानमंत्री भी हमारे राष्ट्रपति भवन में उपस्थित रहेंगे।
उस लक्ष्य की ओर अभी से कदम बढ़ने शुरु हो गए हैं। वांग यी का तुरंत भारत आना और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ गंभीर और सांगोपांग चर्चा करना यही सिद्ध करता है कि चीन इस नई सरकार के साथ अपने रिश्तों को नई ऊँचाइयों पर ले जाना चाहता है। चीनियों को पता है कि मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी चार बार चीन जा चुके हैं। आज तक भारत का कोई भी बड़ा नेता चार बार चीन नहीं गया है। मोदी चीन से काफी प्रभावित हैं और चीनी नेता लोग मोदी से प्रभावित हैं। दोनों विदेश मंत्रियों के बीच जो बातचीत हुई, उसके निष्कर्ष निम्न प्रकार हैं।
पहला, वांग यी ने सीमा-विवाद को लेकर वह चीनी दृष्टिकोण फिर दोहराया कि इस विवाद को भारत-चीन संबंधों की बढ़ोतरी का रोड़ा न बनने दें। सीमा-विवाद पर शांतिपूर्ण चर्चा चलती रहेगी लेकिन उसके कारण हमारे व्यापारिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों में कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए। दोनों पक्षों के अधिकारी सीमा-विवाद सुलझाने के लिए शीघ्र मिलेंगे।
दूसरा, दोनों देशों के 70 बिलियन डालर के व्यापार को अगले दो-तीन वर्षों में 100 बिलियन तक पहुंचाना है। लेकिन इसमें एक समस्या है। भारत का निर्यात कम है और आयात ज्यादा है। अभी 70 बिलियन के व्यापार में भारत का व्यापारिक घाटा 31 बिलियन डालर का है। सुषमा स्वराज ने वांग यी से कहा है कि वे भारतीय माल के लिए चीनी बाज़ारों को उदारतापूर्वक खोलें।
तीसरा, भारत-चीन तकनीकी सहयोग और विनिवेश के क्षेत्र में कई नए आयाम खोजने की बात हुई। वांग यी ने खुद कहा है कि चीन अगर हार्डवेयर में मजबूत है तो भारत साफ्टवेयर में बहुत आगे हैं। यदि दोनों राष्ट्र आर्थिक सहकार करें तो यह 21 वीं सदी एशिया की सदी बन सकती है।
चौथा, भारत-चीन सांस्कृतिक संबंध प्राचीन-काल में जितने घनिष्ट रहे, उससे भी ज्यादा घनिष्ट अब क्यों नहीं हो सकते? मोदी ने वांग को याद दिलाया कि हेनसांग गुजरात भी गए थे। उस ज़माने में चीनी लोग भारत को ‘गुरु देश’ और ‘पश्चिमी स्वर्ग’ कहते थे। वांग ने पंचशील के 60 वर्ष मनाने के लिए राष्ट्रपति को चीन आमंत्रित किया। दोनों प्रधानमंत्रियों ने एक दूसरे को निमंत्रण दिया। सुषमा ने कैलाश-मानसरोवर यात्रा को भारतीयों के लिए सुविधाजनक बनाने का अनुरोध किया। चीनी पर्यटकों को भी बड़े पैमाने पर आकर्षित करने की बात हुई।
कुल मिलाकर चीनी विदेश मंत्री की यह भारत-यात्रा सार्थक और सद्भावनापूर्ण रही। मुझे विश्वास है कि अब चीन के साथ भारत का नया अध्याय खुलेगा।