रक्त-रंजित मुद्रा की चकाचौंध-11

मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे…….
सन 1951 में एक हजार भारतीय पीछे 430 दुधारू पशु थे, 1961 में चार सौ, 1971 में 326 1971 में 278, 1991 में 202 और 2001 में उनकी संख्या मात्र 110 रह गयी। इस हिसाब से पशुओं का घटना जारी रहा तो 2011 में यह संख्या केवल बीस प्रतिशत रह गयी।
जो भैंसे इसी क्रम में हर दस साल बाद 120, 117, 108, 100, 90 और 60 रह गयीं वे चार साल बाद यानी 2011 में केवल 66 रह जाएंगी। बकरियों की संख्या 141, 139, 136 और 91 में 106 रह गयी।
भेड़ों की संख्या जो 1951 में 108 थी वह 1991 में पचास रह गयी। यानी दस साल का अंतराल यह बताता है कि दूध देने वाले सभी पशु घट गये। जब इसकी तुलना पिछड़े माने जाने वाले देशों से करते हैं तो हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। निम्न देशों में एक हजार व्यक्तियों के पीछे कितने दुधारू पशु हैं, उसकी चौका देने वाली सूची देखिए।
अजेंटाइना 2084, ऑस्टे्रलिया 1465 कोलंबिया 919 ब्राजील 726 जबकि भारत का योग 278 है।
भैंसों की स्थिति भी प्रति हजार व्यक्ति चौंका देने वाली है। वियतनाम में 404 नेपाल में 284 पाकिस्तान में 130 थाईलैंड में 125 लेकिन भारत में केवल सौ।
यदि बकरियों की स्थिति पर नजर डालें तो सोमलिया में प्रति एक हजार व्यक्ति पर 3264 सूडान में 677 इथोपिया में 523 तुर्की में 498 पाकिस्तान में 387 लेकिन भारत में केवल 136।
यदि भेड़ों की बात करें तो न्यूजीलैंड में 23,528 उरूग्वे में 7874 ऑस्टे्रलिया में 7879, अर्जेटीना में 7671 दक्षिणी अफ्रीका में 1083 लेकिन भारत के पास एक हजार व्यक्ति के पीछे केवल 69 हैं।
उपर्युक्त देशों में अधिकांश देश भारत से भी गरीब है, लेकिन वे अपने पशुओं को किसी विदेशी कंपनी के लिए मौत का निवाला नही बनने देते।
भारत एक अहिंसक देश होने के बावजूद शत प्रतिशत कभी अहिंसक नही रहा। वह रह भी नही सकता, क्योंकि भारत करोड़ों आदिवासियों और जनजातियों का देश है। आज 2007 की बात करें, तब भी हमारे यहां की जनसंख्या में जनजाति नौ प्रतिशत है। भारत में जब आक्रांता आए, उस समय भारत में केवल चौबीस प्रतिBlood-Donation_0शत मांसाहार था, लेकिन आज तो स्थिति बिलकुल विपरीत है। यदि अब संपूर्ण देश में 65 प्रतिशत मांसाहार हों, तब भी इस बात की आज्ञा नही दी जा सकती कि हिंसा को हम अपना जीवन दर्शन बना लें।
क्रमश:

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