डॉ0 वेद प्रताप वैदिक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियों को जैसी हिदायतें दी है, वैसी किसी भी प्रधानमंत्री ने आज तक अपने मंत्रियों को नहीं दी हैं। मंत्री और सांसद, अपनी संपत्ति का ब्यौरा प्रधानमंत्री को दें, यह अब घिसी-पिटी बात हो गई हैं। यों तो चुनावी उम्मीदवार के तौर पर आजकल सभी सांसदों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना होता है लेकिन न तो उस ब्यौरे की कोई छान-बीन होती है और न ही उनसे कोई हर साल पूछता है कि आपकी संपत्ति साल भर में चौगुनी कैसे हो गई? मंत्रियों से ज्यादा उनके रिश्तेदार मुटिया जाते हैं। पिछली सरकार में कई मंत्री अपने रिश्तेदारों के कारण काम से गए। फिर भी ढर्रा ज्यों का त्यों बना रहा।
ऐसा लगता है कि यह ढर्रा अब बदलेगा। मोदी सरकार के गृह मंत्रालय ने सभी मंत्रियों के लिए जो हिदायतें जारी की हैं, यदि उन पर अमल हो गया तो मानकर चलिए कि बहुत से राजनेता राजनीति को ही तिलाजंलि दे देगें। आखिर वे राजनीति में आते किसलिए है? दूसरों पर रौब झाड़ने के लिए और पैसा बनाने के लिए। पहला काम तो अब भी जारी रहेगा लेकिन दूसरा काम, जो आजकल सबसे बड़ा काम हो गया है, अब बंद होने के कगार पर पहुंच जाएगा यानी नरेंद्र मोदी अब राजनीति की ही खाट खड़ी कर देंगे।
तो हम देखें कि गृह मंत्रालय ने कौनसी हिदायतें जारी की हैं। पहली अपनी, अपनी पत्नी और संतानों की संपत्ति और दायित्वों का ब्यौरा वे प्रधानमंत्री को हर साल 31 अगस्त तक दें याने पांच साल में एक बार नहीं, हर साल हिसाब देना होगा। दूसरा मंत्री बनने के पहले किसी व्यवसाय या उसके प्रबंधन से जुड़े रहे हों तो अब उससे संबंध-विच्छेद कर लें याने करोड़ों की आमदनी को लात मारकर कई लोग सिर्फ मंत्री के वेतन पर गुजारा करें। मंत्री और मंत्री के रिश्तेदार कोई ऐसा धंधा न करें या ठेका न लें, जिसमें सरकार को सेवा या सामान देकर वे किसी तरह की कमाई कर सकें। वे लोग किसी विदेशी दूतावास में नौकरी भी न करें। सरकार को न तो कोई संपत्ति बेचें और न ही खरीदें। परिवार का कोई भी सदस्य कोई व्यापार शुरू करता है या कहीं बड़ी नौकरी पकड़ता है तो उसकी सूचना दी जाए। पांच हजार से ज्यादा का कोई उपहार अपने पास न रखें। उसे सरकारी कोष में जमा कराएं।
पता नहीं नरेंद्र भाई इस आचार संहिता को कैसे लागू करेंगे। यह कठिन ही नहीं, असंभव-सा काम लगता है। उन्होंने तो भ्रष्ट्राचार की जड़ ही उखाड़ने की घोषणा कर दी हैं। मैं तो चाहूंगा कि उक्त संपूर्ण ब्यौरा सारे मंत्रिगण सिर्फ प्रधानमंत्री को ही क्यों, देश की जनता को भी क्यों नहीं देते? सारी व्यवस्था को हम पारदर्शी और जवाबदेह क्यों नहीं बताते? आम जनता भी तो जानें कि उन पर हुकूमत करने वाले लोगों के पास पैसा कहां से आता है?
यदि यह बात मान ली जाए तो भी मंत्रिगण एकदम शुद्ध और पवित्र हो जाएंगे, यह संभव नहीं हैं। मोदी की हिदायतें मानने से बेहतर होगा कि उनके सारे मंत्री सन्यासी बन जाएं। क्या कोई तैयार होगा? होगा यह कि प्रधानमंत्री जी डाल-डाल तो उनके मंत्री पात-पात। मंत्रिगण पैसा बनाने के लिए नए रास्तों का आविष्कार कर लेंगे। कौटिल्य ने क्या खूब कहा है कि मछली नदी में रहे और उसके मुंह में पानी न जाए, यह कैसे हो सकता है?