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इतिहास के पन्नों से भयानक राजनीतिक षडयंत्र

इतिहास पर गांधीवाद की छाया ,अध्याय – 17 ( 2)

सत्य को झुठलाने में गांधीवाद की भूमिका

मुस्लिम नवाबों , सुल्तानों , नेताओं और तथाकथित विद्वानों का बचाव करना गांधीवाद, गांधीवादियों और कांग्रेस का मौलिक संस्कार है । यही कारण है कि इन लोगों ने भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार सर सैयद अहमद खान और उन जैसे अन्य मुस्लिम नेताओं को उत्तरदायी न मानकर उसकी स्याही सावरकर जी जैसे राष्ट्रभक्त और राष्ट्रवादी व्यक्तित्व पर पहुंचने का आपराधिक कृत्य किया।

जिन्नाह के जीवनीकार हेक्टर बोलियो लिखते हैं- “वे भारत के पहले मुस्लिम थे , जिन्होंने विभाजन के बारे में बोलने का साहस किया और यह पहचाना कि हिन्दू-मुस्लिम एकता असम्भव है, उन्हें अलग होना चाहिए।” यदि सावरकर जी जैसे राष्ट्रवादी लोग देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार होते तो जिन्नाह का यह जीवनीकार यहाँ पर ऐसा न लिखकर यह लिखता कि जिन्नाह जैसे राष्ट्रवादी व्यक्ति को देश के विभाजन के लिए प्रोत्साहित करने वाले सावरकर थे और जिन्ना कभी भी मुस्लिम राष्ट्र के समर्थक नहीं थे। इसके विपरीत जिन्नाह के जीवनीकार के द्वारा ऐसा लिख कर यह स्पष्ट कर दिया कि जिन्नाह पाकिस्तान के लिए जिम्मेदार थे और उनकी भारत के प्रति कभी कोई निष्ठा नहीं थी। बाद में जिन्ना की इच्छा के अनुसार जो कुछ हुआ उसका पितृत्व सर सैयद का है।

पाकिस्तान के इतिहास पर क्या कहते हैं ?

1947 में जब पाकिस्तान बना तो उसने अपना अलग इतिहास लिखा । भारत का ही एक अंग रहने वाला पाकिस्तान यह भूल गया कि उसका हिन्दू अतीत कितना गौरवपूर्ण रहा है ? उसने अपने हिन्दू अतीत को मिटाकर अपने आपको 712 ई0 में मोहम्मद बिन कासिम द्वारा किए गए आक्रमण के समय से इस्लाम के साथ जोड़ दिया । पाकिस्तान के इतिहासकारों ने अपने आपको ऐसा दिखाने का प्रयास किया जैसे उनके पूर्वज 712 ई0 से ही अपने अलग देश के लिए संघर्ष कर रहे थे । उन्होंने यहाँ तक भी लिख दिया कि महमूद गजनबी के द्वारा पहली बार पाकिस्तान का निर्माण सन 1000 ईस्वी के लगभग कर दिया गया था । इधर भारत के गांधीवादियों ने पाकिस्तान के इतिहास को ‘सच’ मान लिया । इससे इन गांधीवादियों की दोहरी मानसिकता का पता चलता है । एक ओर तो वह पाकिस्तान के लोगों के इस अनर्गल तथ्य को स्वीकार करते हैं कि वह द्विराष्ट्रवाद के लिए पिछले 1000 वर्ष से संघर्ष कर रहे थे पर दूसरी ओर वह भारत में मुस्लिमों के तुष्टीकरण के लिए इस तथ्य को झुठलाते हैं।
पाकिस्तान शासन द्वारा प्रकाशित आज़ादी के आन्दोलन  के इतिहास में मोइनुल हक कहते हैं- “सच में हिन्द पाकिस्तान में मुस्लिम राष्ट्र स्थापित करने वाले संस्थापकों में से थे वे। उनके द्वारा ही डाली गई नींव पर कायदे आज़म ने इमारत बना कर पूरी की।”


पाकिस्तानी विश्वविद्यालयों में मान्यता प्राप्त “अ शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ़ पाकिस्तान” के खण्ड 4 के नौवें अध्याय में मुस्लिम राष्ट्रवाद का आरम्भ बिन्दु 1857 के युद्ध में असफलता की प्रतिक्रिया को बताया गया है। मुसलमानों के प्रति ब्रिटिश आक्रोश को कम करने और ब्रिटिश सरकार व मुसलमानों के बीच सहयोग का पुल बनाने के लिए उन्होंने योजनाबद्ध प्रयास आरम्भ किया। ब्रिटिश आक्रोश को कम करने के लिए उन्होंने 1858 में “रिसाला अस बाब-ए-बगावत ए हिंद” (भारतीय विद्रोह की कारण मीमांसा) शीर्षक पुस्तिका लिखी, जिसमें उन्होंने प्रमाणित करने की कोशिश की कि इस क्रांति के लिए मुसलमान नहीं, हिन्दू जिम्मेदार थे।
सर सैय्यद भले ही मुस्लिमों में अंग्रेज़ी शिक्षा के पक्षधर थे , पर मुस्लिम धर्म, इतिहास परम्परा, राज्य और उसके प्रतीकों और भाषा पर उन्हें बहुत अभिमान था। 1867 में अंग्रेज़ सरकार ने हिन्दी और देवनागरी के प्रयोग का आदेश जारी किया। सर सैयद इस बात से बहुत बैचेन थे कि अब भारत में इस्लामी राज्य खोने के पश्चात हमारी भाषा भी गई। तब उन्होंने ‘डिफेन्स ऑफ उर्दू सोसायटी’ की स्थापना की। डॉ इकराम ने कहा है कि आधुनिक मुस्लिम अलगाव का शुभारम्भ सर सैय्यद के ‘हिन्दी बनाम उर्दू’ का मुद्दा हाथ में लेने से हुआ।

 

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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