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आज का चिंतन

दूसरों को सम्मान देकर ही उनके वास्तविक प्रेम को पाया जा सकता है

*दूसरे लोगों को उचित सम्मान दीजिए। और उनके वास्तविक प्रेम का लाभ लीजिए।*
संसार में सब प्रकार के लोग हैं। आपसे कम योग्यता वाले, आपके समान योग्यता वाले और आपसे अधिक योग्यता वाले भी हैं।


आपको इन सब के साथ व्यवहार करना पड़ता है। जो आपसे कम योग्यता वाले हैं, उनके साथ आप वैसा व्यवहार रखें, जैसा अपने से कम योग्यता वालों के साथ किया जाता है। जो आप के समान स्तर के लोग हैं, उनके साथ वैसा व्यवहार करें, जैसा समान स्तर के लोगों के साथ किया जाता है। इसी प्रकार से जो लोग आपसे अधिक योग्यता वाले हैं, उनके साथ वैसा ही सभ्यता पूर्वक, सम्मान पूर्वक व्यवहार करें, जैसा अपने से बड़ों के साथ किया जाता है। यदि आप इस प्रकार से सबके साथ यथायोग्य व्यवहार करेंगे, तो इससे आपको ही लाभ होगा।
संसार में कुछ लोग, जो अधिक अभिमानी होते हैं, वे अपने से अधिक योग्यता वालों के साथ भी असभ्यतापूर्ण व्यवहार करते हैं। उनका उचित सम्मान नहीं करते। वे समझते हैं कि *हम अपने अभिमान की पुष्टि करके अधिक आनंद प्राप्त कर लेंगे।* उनकी ऐसी सोच उनकी मूर्खता का परिचायक है।
*उन्हें निश्चित रूप से यह भ्रांति है, कि अभिमान पूर्वक व्यवहार करने से, दूसरे व्यक्ति की योग्यता अनुसार उसे सम्मान न देने से, मैं अधिक लाभ में रहूंगा।* जबकि मनोविज्ञान के अनुसार होता इससे उल्टा ही है।
मनोविज्ञान कहता है कि *यदि आप किसी अपने से अधिक योग्य व्यक्ति के साथ अच्छा सम्मान पूर्वक व्यवहार करते हैं, तो वह भी आपके साथ उसी प्रकार से सम्मान पूर्वक व्यवहार करेगा। यदि आप उसके साथ असभ्यता करेंगे, तो वह आपके साथ शायद असभ्यता न भी करे, वह आपको आपकी असभ्यता की शिकायत भी नहीं करेगा, बल्कि चुपचाप आपसे संबंध तोड़ देगा। यदि उसको भी आपसे कोई स्वार्थ सिद्ध करना हो, तो ऐसी स्थिति में वह बुद्धिमान व्यक्ति आप के साथ संबंध नहीं तोड़ेगा। अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए आपके साथ व्यवहार तो करता रहेगा, परंतु उस का व्यवहार नकली होगा। वह आपको नकली सम्मान देगा। उसके हृदय में आपके प्रति शुद्ध प्रेम आदर सम्मान की भावना नहीं होगी। सिर्फ बाहर से दिखावा होगा।*
*इसलिए जो अभिमानी व्यक्ति अपने से अधिक योग्य व्यक्तियों के साथ अनुचित या असभ्यता का व्यवहार करते हैं, वे उनके असली प्रेम से वंचित रहते हैं।* इस प्रकार से अभिमानी लोग घाटे में रहते हैं। अतः बुद्धिमत्ता यही है कि यदि आप सबके साथ यथायोग्य व्यवहार करें, तो आपको बहुत अधिक लाभ होगा।
*बड़े-बड़े राजा महाराजा चक्रवर्ती सम्राट भी संसार से चले गए, उनका सारा अभिमान और धन यहीं धरा रह गया। वे कुछ भी अपने साथ नहीं ले गए। फिर आप तो उनके सामने कुछ भी नहीं हैं। आप अभिमान करके क्या कमा लेंगे?*
– *स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक।*

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