(5) चीनी सैनिकों और घुसपैठियों का अंत:प्रवाह
बाकी तिब्बत से काट दिये गये मध्य तिब्बत में जो कि तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र नाम से जाना जाता है, लगभग 5 लाख चीनी सैनिक तैनात हैं और जैसा कि बताया गया है, चीनियों के अनुसार इस क्षेत्र की तिब्बती जनसंख्या 11.9 लाख है। इसका अर्थ यह हुआ कि इस क्षेत्र में चीनी सेना कुल जनसंख्या की एक तिहाई है। पुराने खाम और आम्दो क्षेत्रों एवं कोंग्पो, द्रोमो और ल्हासा में भी चीनी सेना की भारी तैनाती ज्ञात है। अपेक्षाकृत ऊष्ण और समशीतोष्ण क्षेत्रों में जिनमें कि चाम्दो और कथित देचेन तिब्बत स्वायत्त प्रशासक प्रांत (खाम का एक भाग जिसे युनान प्रांत से मिला दिया गया) सम्मिलित हैं, चीनी घुसपैठियों की भारी तादात आ बसी है और भय है कि अगर कुछ तिब्बती बचे भी हैं तो उनकी संख्या बहुत कम है। चीनी घुसपैठ की तादात का एक अच्छा उदाहरण तिब्बत की राजधानी ल्हासा है। चीनियों के आने तक वहाँ की जनसंख्या प्राय: सम्पूर्णतया तिब्बती थी लेकिन चीनी आँकड़ों के अनुसार अब वहाँ चीनियों की संख्या तिब्बतियों की तुलना में 50 से 70000 तक अधिक है। वस्तुत: ताजे आँकड़ों से पता चलता है कि ल्हासा में चीनियों की घुसपैठ शंकित से बहुत अधिक है और इन आँकड़ों में पीपल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों की संख्या सम्मिलित नहीं है।
(6) शरणार्थियों का पलायन
संसार के विभिन्न भागों में लगभग एक लाख तिब्बती शरणार्थी बसे हैं जिनमें से अधिकांश भारत में है। इस संख्या का पता नहीं है कि पिछले तीस वर्षों में तिब्बती जनसंहार से पलायन करने के दौरान कितने मारे गये। जो शरणार्थी बच गये वे बताते हैं कि पर्वतीय दर्रे लाशों से पटे हुये थे। साथ ही साथ बहुत बड़े समूहों को, जिनमें संख्या कभी कभी दसियो हजार तक पहुँच जाती थी, दक्षिणी और मध्य प्रांतों से बाहर प्रस्थान करते देखा गया जिनमें से अधिकांश दुबारा नहीं देखे गये। वे या तो भूख से मर गये या हिमस्खलनों में जीवित ही दफन हो गये या पीछा करते चीनी सैनिकों की गोलीबारी में मारे गये।
बहुत से तिब्बती जो वस्तुत: भारत पहुँच गये भूख से मर गये या गर्मी या ऊष्ण कटिबन्धी रोगों के शिकार हुये। ऊँचे ठंडे प्रदेशों के वासी होने के कारण वे इन रोगों के सटीक शिकार थे(और अब भी हैं)।
बहुत बार यह तथ्य भुला दिया जाता है कि पाँचवे दशक के मध्य और अंत काल के दौरान (दलाई लामा के समीप होने के लिये) पूर्वी क्षेत्र से मध्य क्षेत्र की ओर जाने के प्रयास करती शरणार्थियों की भारी संख्या या तो भयानक लड़ाई में फँस गई या भूमि और वायु दोनों तरफ से चीनियों के मशीनगनों की गोलियों का शिकार हुई या पकड़ कर लेबर कैम्पों में भेज दी गई जहाँ उसका कोई अता पता नहीं बचा और लुप्त हो गई। कई हजार जो वास्तव में ल्हासा पहुँच पाये और राजधानी के बाहर कैम्पों में बस गये, उनकी भी भारी संख्या बाद की लड़ाइयों में मारी गई। सीधे तौर पर हम कभी नहीं जान सकते कि कितने तिब्बती शरणार्थी मारे गये लेकिन संकट की अवधि और सामाजिक विघटन के परिमाण को देखते हुये लाखों की संख्या पर्याप्त विश्वसनीय लगती है।(जारी)
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नोट:
तिंब्बत की निर्वासित सरकार द्वारा 1984 में प्रकाशित आँकड़े चीनियों के शासन काल में पाँचवे दशक से तब तक मारे गये तिब्बतियों की संख्या 12 लाख तक बताते हैं। तिब्बत के तीन प्रांतों सांग, खाम और आम्दो में इस प्रकार लोगों को मारा गया या वे परिस्थितियों के कारण मारे गये :
यातना – 92731
युद्ध/विद्रोह – 432705
मृत्युदंड – 156758
भूख – 342970
आत्महत्या – 9002
जेल और लेबर कैम्प – 173221
कुल: 1207387
बीजिंग से प्रकाशित दस्तावेजों से भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मौत के तांडव की पुष्टि होती है।
25 वर्षों बाद अपने गाँव लौटे तारथांग तुलकु द्वारा प्रकाशित और भारी तौर पर चीनियों द्वारा सेंसर किये गये आलेख में यह दर्ज है कि तिब्बत में अधिकतर लोग 40 की आयु से कम के थे और उसके गाँव से लगभग 90% लोग गायब हो गये थे। जनसंख्या का भयानक असंतुलन तिब्बत में चीनियों के लम्बे शासन का परिणाम है।
…..अगले भागों में जारी..
✍🏻गिरिजेश राव
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