रक्त-रंजित मुद्रा की चकाचौंध-12
मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे…….
बीसवीं शताब्दी में हमने एक चमत्कार देखा, जब महात्मा गांधी ने इस देश को सदियों की गुलामी से मुक्त करवाया। उनका मूल मंत्र अहिंसा ही था। वे शस्त्र का सहारा न लेकर केवल सत्य और अहिंसा को आधार बनाकर यह लड़ाई लड़े और सफल हो गये। लेकिन इतिहास इस बात से भी इनकार नही करता कि भारत में क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए जो कुछ किया, उसे भुलाया जा सकता है। महात्माजी के अहिंसावादी आंदोलन की आयु 1920 से 1947 के मध्य यानी 27 वर्ष के आसपास है, जबकि क्रांतिकारियों का बलिदान 1847 से 1946 नेताजी सुभाषचंद बोस की आजाद हिंद फौज द्वारा किये गये संघर्ष तक जारी रहा। यानी इस आंदोलन की आयु 90 वर्ष है। गांधी पहले महात्मा थे, जो किसी सत्ता की ताकत को सैनिक छावनी में से निकालकर धर्म और अध्यात्म के मैदान में ले गये। यह भी सत्य है कि अहिंसा और सत्य की इस लड़ाई में गांधीजी अकेले नही थे बल्कि देश के हजारों संत और ऋषि मुनि शामिल थे। भारत की आजादी का फेेसला किसी लड़ाई के मैदान में नही हुआ, बल्कि जनता के बीच में हुआ। सत्ता के स्थानांतरण और हस्तांतरण की यह एक विचित्र घटना थी।
गांधी के बताए मार्ग पर चलकर जिस देश ने आजादी प्राप्त की और निरस्त्रीकरण को अपनाकर पंचशील को आत्मसात करने की योजना बनाई गयी, उसके नेताओं को तो पहले दिन ही यह घोषणा कर देनी थी कि भारत की भूमि पर जितने भी जलचर, थलचर और नभचर है उनकी रक्षा की जाएगी। हमारी प्राचीन परंपरा के अनुसार सरकार जानवरों के मांस का सौदा नही करेगी। आजादी की लड़ाई के समय में पं. जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर में ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित किये जाने वाले बूचड़खाने का डटकर विरोध किया था। उन्होंने कहा कि मैं कसाईखानों का विरोध करता हूं। जहां कौए, चील और गिद्घ मंडराते हों और जहां कुत्तों के झुंड हड्डियों पर झपटते हों, वह दृश्य मैं बिलकुल पसंद नही करता। अंग्रेजों के समय में मध्य प्रदेश के सागर नगर में एक बूचड़खाना खोले जाने की योजना थी, लेकिन इसके विरूद्घ जब जनता का सागर उमड़ा था तब ब्रिटिश सत्ताधीशों को अपने घुटने टेक देने पड़े थे।
आजादी से पहले जवाहरलाल जी के जो विचार थे, वह सत्ता आते ही न जाने कहां गुम हो गये। उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के रूप में सत्रह साल नेतृत्व किया, लेकिन बाद का जो दृश्य है वह शरीर के रोंगटे खड़े कर देने वाला है। 1947 से आधुनिक बूचड़खानों की जो श्रंखला प्रारंभ हुई वह आज भी थमी नही है। क्रमश: