पाकिस्तान से डाॅ0 वेदप्रताप वैदिक…
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां नवाज़ शरीफ ने संसद में एक अत्यंत प्रभावशाली और एतिहासिक भाषण दिया। उन्होंने कहा कि अब आतंकवादियों का पूरा सफाया किए बिना हम चैन नहीं लेंगे। पाकिस्तान को अब हम आतंकवादियों की शरण-स्थली नहीं बनने देंगे। पाकिस्तानी फौज को जनता का जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है लेकिन यहां पाकिस्तान में यह बहस भी चल पड़ी है कि क्या पाक-फौज सिर्फ उन आतंकवादियों का सफाया करेगी, जो पाकिस्तानी सरकार और जनता पर हमला करते हैं या वह उन आतंकवादियों की भी खबर लेगी, जो पड़ौसी देशों को भी तंग करते हैं? ज्यादातर टीवी चैनलों और अखबारों का कहना है कि सभी आतंकवादियों का सफाया होना चाहिए।
यह ठीक है कि जब आतंकवादियों से बात करनी होती है तो उनमें ‘नरम’ और ‘गरम’ का फर्क किया जाता है और यह फर्क भी अक्सर किया जाता है कि किन आतंकवादियों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है। याने कौन सरकारी मदद से पड़ौसी देशों को तंग करते हैं और कौन खुद सरकार पर हमले को तैयार रहते हैं। यह फर्क एकदम गलत नहीं है। वास्तविक है लेकिन जरा गहराई से देखें तो यह नरम-गरम और अंदरुनी-बाहरी का फर्क सतही रह जाता है। कौन गिरोह कब नरम और कब गरम हो जाता है और कौन गिरोह अपनी भूमिका कब अंदरुनी कर लेता है और कब बाहरी कर लेता है, कुछ पता नहीं चलता है। जिन गिरोहों को अफगानिस्तान और भारत के लिए तैयार किया जाता है, वे ही गिरोह पाकिस्तान के ही खिलाफ काम करने लगते हैं। मियां की जूती मियां के सिर बजने लगती है। इसीलिए जरुरी है कि आतंकवादियों का पूरा सफाया किया जाए, बिना किसी भेद-भाव के।
यहां फौज की कार्रवाई से थर्राए हुई ‘तहरीके-तालिबान पाकिस्तान’ ने धमकियां देनी शुरु कर दी हैं। जाहिर है कि पाक-फौज के आगे उनका टिकना मुश्किल है लेकिन अब वे लोग इसे पठानों और पंजाबियों की लड़ाई की शक्ल देना चाहते हैं। फौज जिन इलाकों में आतंकवादियों को खदेड़ रही है, वे प्रायः पठानों के इलाके हैं और फौज में पंजाबियों का वर्चस्व है। लेकिन क्या तालिबान को यह पता नहीं है कि इस आतंक-विरोधी अभियान के कारण सारा पाकिस्तान मियां नवाज और फौज के पीछे आ खड़ा हुआ है। इस वक्त तो बेहतर यही है कि तालिबान हिंसा का रास्ता छोड़ दें, युद्ध बंद करवा दें और सरकार से बातचीत का कोई रास्ता निकालें इसे यदि वे पठानों और पंजाबियों की लड़ाई की शक्ल देना चाहेंगे तो उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी।