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भारतीय संस्कृति

वीर बालक वीर हकीकत को देश ने क्‍यों भुला दिया

hakikat rai

भारत मां के गगनांचल रूपी आंचल में ऐसे-ऐसे नक्षत्र उद्दीप्‍त हुये है जो न केवल भारत भूमि को बल्कि संपूर्ण विश्‍व भू मण्‍डल को अपने प्रकाश पुंजों से आलोकित किया है। इनमें से एक भारत माता के वीर सपूत वीर हकीकत राय जी भी हैं। भी वसंत पंचमी का दिन था , जब 13 वर्ष के बालक से अंतिम बार पूछा गया ” क्या तुम्हें इस्लाम कबूल है ” बालक का उत्तर था “नहीं” माँ ने भी समझाया कि बेटा , तुम मेरे एकलौते पुत्र हो , इस्लाम कबूल कर लोगे तो तुम जीवत रहोगे , मरोगे तो नहीं , बालक का उत्त्तर था , अगर मैं मुस्लिम बन जाऊँ तो क्या मौत मुझे नहीं आएगी ?

माँ सुन कर निरुत्तर हो गयी , तब जलाद ने अपने गंडासे से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया , वह बालक था वीर हकीकत , अब पाकिस्तान में मन कौरा और पिता भागमल के पुत्र को मात्र इसलिए मौत सजा दी गयी कि वह माँ दुर्गा का अपमान सहन नहीं कर सका , मुस्लिम सहपाठियों ने जब माँ दुर्गा को अपशब्द कहे ..

तब हकीकत का उत्तर था मेरे लिया माँ दुर्गा और फातिमा में कोई अंतर नहीं है , मौलवी और काज़ी ने इसे इस्लाम का अपमान माना और मौत कि सजा सुनाई लेकिन लाहौर के हाक़िम सफ़ेद खान ने कहा कि अगर हक़ीक़त इस्लाम कबूल करता है तो मैं अपनी बेटी का निकाह हक़ीक़त से करा दूंगा और मौत कि सजा भी नहीं होगी , लेकिन हक़ीक़त को अपने प्राणों से प्रिय धर्म था अपने प्राण दे दिए लेकिन अपना धर्म अपने प्राणो के साथ निभाया l ऐस में भगवद्गीता के श्‍लोक याद आते हैं कि  –स्‍वधर्मे निधनो श्रेष्‍ठ: पर धर्मो भयवावह:।

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