प्रदर्शन करने वाले किसानों को एक मिलियन का ऑफर खालिस्तान के समर्थन में खुलेआम नारेबाजी : क्या है सिख फॉर जस्टिस का असली मकसद
केंद्र सरकार द्वारा 3 कृषि सुधार विधेयक कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन-कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 पारित किए जाने के बाद से किसानों का प्रदर्शन जारी है। इन विधेयकों को लेकर आने का उद्देश्य यह था कि मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी सोच ‘एक भारत, एक कृषि बाज़ार’ को साकार किया जा सके। इस क़ानून का उद्देश्य एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के एकछत्र राज को ख़त्म किया जा सके।
विधेयक का उद्देश्य बिचौलियों को हटाना, किसानों का सशक्तिकरण और उनकी आय बढ़ाना था लेकिन पंजाब के किसान इससे खुश नहीं थे। जैसे ही यह विधेयक पारित हुआ उसके बाद आम आदमी पार्टी, कॉन्ग्रेस और तमाम वामपंथियों ने इसके संबंध में दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। जैसे ही विधेयक जुड़े दुष्प्रचार का दायरा बढ़ा उसके बाद ही पंजाब और हरियाणा के अनेक क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।
“मुंबई.में.कलावा” पहनकर हिंदुओं को बदनाम करेंगे “दिल्ली.में.पगड़ी” पहन कर सिखों को बदनाम करेंगे हम तो हर जगह “गजवा.ए.हिंद” करेंगे
लगभग दो दर्जन से अधिक किसान संगठनों ने इस विधेयक का विरोध करना शुरू कर दिया जिसमें भारतीय किसान यूनियन (BKU), ऑल इंडिया फार्मर यूनियन (AIFU), ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोआर्डिनेशन कमेटी (AIKSCC) और ऑल इंडिया किसान महासंघ शामिल थे। इन सभी संगठनों ने 18 राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद संसद में पारित किए गए इस विधेयक का विरोध करने के लिए 25 सितंबर को ‘भारत बंद’ का ऐलान किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ पंजाब और हरियाणा के लगभग 31 किसान संगठन पहले ही इसका विरोध कर रहे थे और बाद में राजनीतिक दलों ने उनके साथ मिल कर बंद का आह्वान किया।
इस विरोध का सबसे ज्यादा प्रभाव देखने को मिला पंजाब में जहाँ के किसानों ने पूरा जोर लगा कर सीमा पार की और दिल्ली पहुँचे। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान कई मौकों पर हिंसा भी नज़र आई और खालिस्तान के समर्थन में नारे भी लगाए गए। हरियाणा और पंजाब बॉर्डर के आस-पास विरोध प्रदर्शन के दौरान खालिस्तान समर्थक और भारत विरोधी नारे लगाए जाने के बाद सिख फॉर जस्टिस (SFJ) की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि पंजाब के किसानों को मोदी सरकार के विरुद्ध भड़काने में इनका हाथ भी हो सकता है।
तमाम जानकारियों के सामने आने बाद SFJ की संदिग्ध भूमिका को लेकर जाँच शुरू हो चुकी है। साथ ही इस बात की संभावना जताई जा रही है कि किसान आंदोलन पर खालिस्तान समर्थक ताकतों ने कब्ज़ा कर लिया है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान प्रायोजित SFJ पहले इस बात का ऐलान कर चुका है कि वह खालिस्तान का समर्थन करने वाले पंजाब और हरियाणा के किसानों को 1 मिलियन डॉलर की आर्थिक मदद करेगा। 23 सितंबर को सामने आई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ SFJ ने क़र्ज़ लेने वाले किसानों के बीच 1 मिलियन डॉलर बाँटने का ऐलान करके किसानों के विरोध प्रदर्शन का फायदा उठाने का प्रयास किया था।
SFJ ने कहा था, “कोई भी किसान चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों हो, 1 से 8 अक्टूबर के बीच खालिस्तान जनमत संग्रह के लिए 25 मतों का पंजीयन करा सकता है। इसके बदले में उसे 5 हज़ार रुपए का आर्थिक सहयोग मिलेगा जिससे वह अपना क़र्ज़ चुका सकता है।” यह जानकारी खुफ़िया एजेंसियों को मिले इनपुट पर आधारित है। केंद्र सरकार के कृषि सुधार विधेयकों को किसानों की ज़मीन छीनने का औपनिवेशिक एजेंडा बताते हुए SFJ के जनरल काउंसल गुरपटवंत सिंह पन्नू ने किसानों को मोदी सरकार के विरुद्ध भड़काने का प्रयास किया था। उसका यहाँ तक कहना था कि मोदी सरकार पंजाब और हरियाणा के किसानों को लाचार करना चाहती है। SFJ ने इसमें हरियाणा के किसानों को भी शामिल किया था क्योंकि वह हरियाणा को भी खालिस्तान का हिस्सा मानते हैं।
SFJ का डोर टू डोर अभियान, सिखों को खालिस्तान आंदोलन का हिस्सा बनने का लालच
इस साल के सितंबर महीने में SFJ ने डोर टू डोर अभियान का ऐलान किया था जिसमें वह अपने अलगाववादी एजेंडे ‘जनमत संग्रह 2020’ (Referendum 2010) का समर्थन करने वालों का पंजीयन करा रहे थे। इस घोषणा के बाद खुफ़िया और आतंकवाद विरोधी एजेंसियों ने प्रदेश की लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों को सूचित कर दिया था। लेकिन पंजाब की कॉन्ग्रेस सरकार इतने गंभीर मुद्दे पर बिलकुल भी सक्रिय नहीं नज़र आई।
जब SFJ खालिस्तान समर्थकों को इकट्ठा नहीं कर पाया तब वह नई योजना लेकर आया जिसके तहत उसने कनाडा और रूस के पोर्टल के मदद से जनमत संग्रह 2020 के लिए एक हज़ार एम्बेसडर नियुक्त करने का ऐलान किया। इन एम्बेसडर को SFJ की ओर से 7500 रुपए की मासिक आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। SFJ ने 21 सितंबर को लगभग 30 दिनों के भीतर पंजाब के 12000 गाँवों को कवर करने की योजना बनाई थी।
इसके पहले खालिस्तान समर्थक संगठन ने पंजाब के किसानों को 3500 रुपए का लालच देकर जनमत संग्रह का समर्थन कराने का प्रयास किया था। संगठन का कहना था कि जो किसान अपना क़र्ज़ नहीं लौटा पा रहे हैं, SFJ उनकी हर महीने आर्थिक सहायता करेगा। एनआईए के सुझाव के बाद गृह मंत्रालय ने इसके विरुद्ध जाँच के आदेश दिए थे। गृह मंत्रालय ने SFJ को गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के दायरे में पाया था और इसके तमाम नेताओं को आतंकवादी घोषित किया गया था।
इसके अलावा किसान आंदोलन का एक और हैरान करने वाला पहलू सामने आया था। कथित तौर पर ऐसी तमाम तस्वीरें और वीडियो सामने आए जिसमें प्रदर्शन के दौरान खालिस्तान के समर्थन की बात सामने आ रही थी। इसी तरह का एक वीडियो सामने आया था जिसमें एक तथाकथित किसान द्वारा स्पष्ट तौर पर यह कहते हुए सुना जा सकता है कि जैसे इंदिरा गाँधी को ठोका वैसे ही नरेंद्र मोदी को भी ठोक देंगे।
ट्विटर पर साझा किए गए एक समाचार चैनल के वीडियो में व्यक्ति कहता है, “अभी हमारी सरकार के साथ एक मीटिंग है अगर उसमें कुछ हल निकलता है तो ठीक है। मीटिंग 3 दिसंबर को तय की गई है और हम तब तक यहीं पर रहने वाले हैं। अगर उस मीटिंग में कुछ हल नहीं निकला तो बैरिकेड तो क्या हम तो इनको (शासन प्रशासन) ऐसे ही मिटा देंगे। हमारे शहीद उधम सिंह कनाडा की धरती पर जाकर उन्हें (अंग्रेज़ों को) ठोक सकते हैं तो दिल्ली कुछ भी नहीं है हमारे लिए। जब इंदिरा ठोक दी तो मोदी की छाती भी ठोक देंगे।”
(साभार)