चीन का उइगर मुसलमानों के प्रति दृष्टिकोण और भारत
चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के सरकारी दमन को लेकर जिस प्रकार की खबरें आती रही हैं उसके दृष्टिगत यह स्पष्ट हो जाता है कि चीन सरकारी स्तर पर मुसलमानों के किसी भी प्रकार के आतंकवादी कदम को पूर्णतया कुचल देने के प्रति कृत संकल्प है । यह भी एक रोचक तथ्य है कि भारत में फारूक अब्दुल्लाह जैसे लोग चाहे चीन के प्रति कितनी ही निकटता का राग क्यों ना अलापें परंतु चीन यदि कभी किसी फारूक अब्दुल्लाह जैसे आतंकवाद समर्थक नेता को अपने प्रति ऐसी भाषा बोलते हुए देख लेगा तो वह उसे भी कुचल डालेगा।
जब फारूक अब्दुल्ला जैसे लोग चीन को अपना हमदर्द दिखाने का प्रयास करते हैं तो वह भारत में उन जैसे लोगों को मिली भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहे होते हैं, साथ ही ये लोग भारत की एकता और अखंडता के प्रति अपनी निष्ठा का भी प्रदर्शन कर रहे होते हैं।
मुस्लिमों के प्रति कठोरता की के प्रदर्शन की चीन से आ रही खबरों की दृष्टि बता भारत के उन मुसलमानों को भी सचेत होना चाहिए जो भारत में रहकर और भारत का खाकर भी आतंकवाद के समर्थन की बात करते हैं या देश में विखंडन की प्रक्रिया को बलवती करने के प्रयासों में अपने आपको सम्मिलित करते हैं। चीन के बारे में अब पता चला है कि सैकड़ों इमाम भी हिरासत में लिए जा चुके हैं। इमामों को हिरासत में लिए जाने से उइगरों के बीच भय व्याप्त है। देश को तोड़ने की घटनाओं में संलिप्त रहने वाले इन मुस्लिमों को चीन में अब वे मरने से भी डर लगने लगा हैं, क्योंकि इस्लामिक तरीके से उन्हें दफनाने वाला भी कोई नहीं है। रेडियो फ्री एशिया के हवाले से न्यूज एजेंसी एएनआई ने यह बात कही है। नॉर्वे में रहने वाले इंटरनेशनल सिटीज़ ऑफ़ रिफ्यूज नेटवर्क (ICORN) के अब्दुवेली अयुप ने बताया कि शिनजियंगा के उइगरों से बातचीत के बाद यह तथ्य सामने आया। इससे पता चला कि करीब 613 इमाम गायब हैं। 2017 से ही करीब 18 लाख उइगरों और अल्य अल्पसंख्यक मुस्लिमों को कैंपों में कैद करके रखा गया है।
वाशिंगटन स्थित उइगर मानवाधिकार प्रोजेक्ट (UHRP) द्वारा आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। वेबिनार का विषय था: कहॉं हैं इमाम, उइगर धार्मिक हस्तियों को बड़े पैमाने पर हिरासत में रखने के साक्ष्य। अयूप ने बताया कि उन्होंने 2018 में मई से नवंबर के बीच उइगरों से बातचीत की। इससे पता चला कि इमामों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया गया है।
उइगर समुदाय की भाषा में शिक्षा को बढ़ावा देकर सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के लिए लड़ने की वजह से अयुप को 2013-2014 के दौरान महीनों तक कैद में रह कर यातनाएँ झेलनी पड़ी थी। उन्होंने कैंपों में रह चुके 16 कैदियों से भी बातचीत की थी जिन्होंने बताया कि शिनजियांग में उइगरों को हिरासत में लेने की घटनाओं में इजाफा हुआ है।
नीदरलैंड में अब निर्वासित जीवन बिता रहे एक कैदी ने बताया था कि शिनजियांग की राजधानी उरुमकी के कैंपों में तो जाने के लिए इतनी भीड़ है कि लोगों को पंजीकरण करने के बाद इंतजार करना पड़ता है। जब कोई मर जाता है तो दूसरा कैदी अंदर भेजा जाता है। उनकी मस्जिदें ध्वस्त कर दी गई हैं। इमाम गिरफ्तार हो चुके हैं। यहॉं तक कि मौत के बाद इस्लामिक तरीके से दफनाने तक का अधिकार नहीं है।
जो लोग भारत में रहकर यह कहते हैं कि आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता उन्हें इस बात से शिक्षा लेनी चाहिए कि चीन अपने यहां आतंकवादियों को उनकी मजहबी रस्म से दफन होने देने का अधिकार भी इसलिए नहीं देता कि आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता । जबकि भारत में आतंकवादी की मौत पर रोने वाले भी बड़ी संख्या में हैं । जो लोग यह कहते हैं कि आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता , वही उसकी मौत पर रंज करते हैं और उसे अपने ढंग से सुपुर्द ए खाक करके यह दिखाते हैं कि आतंकवादी का भी कोई मजहब होता है।
लंदन यूनिवर्सिटी की स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ (SOAS) में प्रोफेसर रैशेल हैरिस ने बताया कि उइगर समुदाय के सिर्फ पुरुष इमामों को ही निशाना नहीं बनाया जा रहा है। औरतों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। इस मुद्दे पर कहना था कि ऐसे इमाम जो पुरुष हैं, सिर्फ वही ऐसे धार्मिक चेहरे नहीं हैं जिन्हें उइगर समाज में निशाना बनाया जा रहा है। रैशेल ने कहा, “वह मस्जिदों में सक्रिय नहीं होती हैं स्वाभाविक तौर पर उनकी भूमिका घरों में अहम होती है। लेकिन वह हर ज़रूरी काम काम करती हैं जो पुरुष इमाम करते हैं। वह (महिला इमाम) महिलाओं की मदद करती हैं इसलिए वह महिलाओं के अंतिम संस्कार में भूमिका निभाती हैं। वह बच्चों को कुरान पढ़ाने में मदद करती हैं। इसके अलावा वह सामजिक विवादों को सुलझाने में भी काफी मदद करती हैं।”
यदि चीन सरकारी स्तर पर किसी निरपराध को उत्पीड़ित कर रहा है तो उसकी कार्यवाही निंदनीय मानी जा सकती है , परंतु देश विरोधी लोगों के साथ तो केवल कठोरता का ही व्यवहार होना चाहिए। किसी को भी देश के कानून को हाथ में लेने और देश की एकता व अखंडता से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए । इस विषय में भारत की सरकार को भी चीन से शिक्षा लेनी ही चाहिए। देश विरोधी और आतंकवादी गतिविधियों में विश्वास रखने वाले लोग देश के दामाद नहीं बल्कि दुश्मन हैं और उनके साथ दुश्मनों का सा ही व्यवहार होना चाहिए।
यदि फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी धारा 370 को बहाल करने की आड़ में कोई भी देश विरोधी बयान देते हैं या देश तोड़ने की बातों को हवा देते हुए लोगों को देश के विरोध में आने के लिए उकसाते हैं तो उनके विरुद्ध भी कठोर से कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। ‘देश सर्वप्रथम’ के आधार पर न्याय और नीति की बातें निर्धारित होनी चाहिए। इसके लिए देश के सभी बुद्धिजीवी, न्यायालय व सरकारें संयुक्त प्रयास करें। साम्प्रदायिक आधार पर व्यक्ति व्यक्ति के बीच कोई भेदभाव नहीं हो परंतु यदि सांप्रदायिक आधार पर देश को तोड़ने की बातें की जाएंगी तो उनके प्रति जीरो टॉलरेंस दिखाना हम सबका राष्ट्रीय दायित्व और धर्म होना चाहिए।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत