डॉ अजय खेमरिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भरता के मोर्चे पर भी बड़े बुनियादी कदम उठाए हैं क्योंकि यह तथ्य है कि नवीकरणीय ऊर्जा के 80 फीसदी उपकरण हमें चीन से मंगाने पड़ते हैं। सौर ऊर्जा के सस्ते मॉड्यूल से भारतीय बाजार पटे हुए हैं।
मोदी सरकार के छह वर्षीय कार्यकाल ने भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। भारत इस क्षेत्र का सबसे बड़ा और पसंदीदा देश बनकर निवेशकों को आकर्षित कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र अहम आधार के रूप में भी स्थापित हो रहा है। 26 नवम्बर को भारत तीसरे “वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा निवेश बैठक और एक्सपो” (रीइन्वेस्ट 2020) का आयोजन करने जा रहा है जिसका शुभारंभ प्रधानमंत्री मोदी करेंगे। इस वर्चुअल समिट में 80 से अधिक देशों के नवीकरणीय पणधारक (स्टेकहोल्डर्स) भाग ले रहे हैं। 2014 में मोदी सरकार आने के बाद से नवीकरणीय ऊर्जा को जीवाश्मीय ऊर्जा स्रोतों का विकल्प बनाने पर उच्च प्राथमिकता से काम हो रहा है। आज भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 36 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी है। बीते छह वर्षों में यह ढाई गुना बढ़ी है और इसमें सोलर की हिस्सेदारी तो 13 गुना तक बढ़ी है। ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने दावा किया है कि 2030 तक भारत में अक्षय ऊर्जा की भागीदारी 40 प्रतिशत और 2035 तक 60 फीसदी होगी। यह आंकड़ा भारत में स्वच्छ ऊर्जा की एक नई क्रांति जैसा ही होगा।
31 अक्टूबर 2020 के आंकड़े अनुसार 373436 मेगावाट के कुल राष्ट्रीय बिजली उत्पादन में नवीकरणीय स्रोतों की भागीदारी 89636 मेगावाट है। मोदी सरकार ने 2022 तक 175 गीगावाट और 2035 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है (एक गीगावाट मतलब 1000 मेगावाट)। सरकार के मिशन मोड़ वाले प्रयासों से छह साल में आया 4.7 लाख करोड़ का निवेश भविष्य के भारत की झलक भी दिखलाता है। गुजरात, मप्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य अगले कुछ वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के अग्रणी राज्यों में होंगे क्योंकि इन राज्यों में सोलर क्रांति की जमीन राज्य और निजी निवेशकों के जरिये बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से निर्मित की जा रही है। मप्र के रीवा में बनाये गए अल्ट्रा मेगा पार्क में 700 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है यह एशिया का सबसे बड़ा एकल सोलर पार्क है जिसे दो साल से कम में तैयार किया गया है। रीवा सोलर परियोजना की 26 फीसदी बिजली दिल्ली मैट्रो को दी जाती है। इसी तरह यूपी के मिर्जापुर, गुजरात की कच्छ, धोलेरा, तमिलनाडु की कामुती, राजस्थान की मथानिया, खींवसर और हिमाचल की ऊना, बिलासपुर, कांगड़ा जैसी महत्वपूर्ण सोलर परियोजनाओं के जरिये देश भर में सौर ऊर्जा उत्पादन की स्वर्णिम कहानी इस समय लिखी जा रही है।
अक्षय ऊर्जा के अन्य घटक पवन, बायो, पनबिजली की परियोजनाओं पर मोदी सरकार की प्रामाणिक प्रतिबद्धता से यह स्पष्ट है कि 2035 से पहले भारत नवीकरणीय ऊर्जा के सभी लक्ष्य हासिल कर लेगा।
अक्षय ऊर्जा के जरिये भारत वैश्विक पर्यावरणीय संकट के समाधान में भी निर्णायक भूमिका निभा रहा है। नजीर के तौर पर अकेले रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर परियोजना से 15.7 लाख टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है। यह धरती पर 2.60 करोड पेड़ लगाने के बराबर है। भारत में नवीकरणीय औऱ नवीन ऊर्जा की अपरिमित सँभावनाए हैं और अगर सब कुछ इसी गति से अमल में लाया जाता है तो भारत 2035 में 450 गीगावाट बिजली उत्पादन के लक्ष्य को समय से पूर्व ही प्राप्त करके पूरी दुनिया में एक मिसाल कायम करेगा। सतत विकास लक्ष्य और पैरिस समझौते के उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में आने वाले समय में भारत विश्व का नेतृत्व करने के लिए ठोस कार्ययोजना पर समयबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहा है इसका श्रेय निःसन्देह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। मोदी की पहल पर ही फ्रांस के सहयोग से ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ की नींव रखी गई है जिसके साथ 121 देश एकजुट होकर गैर जीवाश्मीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग पर समवेत हैं।
सौर गठबंधन का उद्देश्य 2030 तक विश्व में 1 ट्रिलियन वाट यानी 1000 गीगावाट उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। वस्तुतः जलवायु परिवर्तन के अवश्यंभावी संकट से निबटने के लिए जो प्रतिबद्धता भारत ने व्यक्त की है वह भारत की विश्व दृष्टि की उद्घोषणा का हिस्सा ही है। भारतीय दृष्टि प्रकृति के शोषण के स्थान पर दोहन की हामी है और प्रधानमंत्री मोदी ने जिस प्रभावशाली तरीके से दुनिया के सामने सौर गठबंधन का प्रकल्प खड़ा किया है वह पैरिस समझौते के समानन्तर सही मायनों में भारतीय लोकमंगल की परिकल्पना का ही साकार है। ‘अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन’ और इसके उद्देश्य भारत की आत्मनिर्भर अवधारणा का ब्ल्यू प्रिंट भी हैं क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था का जिस अनुपात में आकार बढ़ रहा है उसकी बुनियाद ऊर्जा केंद्रित ही है ऐसे में अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता आत्मनिर्भरता की राह भी बनायेगी। भारत में औसतन 300 दिन सूरज प्रखरता के साथ आसमान पर रहता है और हमारे भूभाग पर पांच हजार लाख किलोवाट घण्टा प्रति वर्ग मीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है। एक मेगावाट सौर ऊर्जा के लिए तीन हैक्टेयर समतल भूमि की आवश्यकता होती है। इस लिहाज से भारत के पास इस क्षेत्र में अपरिमित सँभावनाओं का खजाना है।
मोदी सरकार ने इस शाश्वत ऊर्जा भंडार को देश की ऊर्जा आवश्यकताओं से जोड़कर जो लक्ष्य तय किये हैं वह एक सपने को साकार करने जैसा ही है। प्रधानमंत्री इसे श्योर, प्योर और सिक्योर कहते हैं क्योंकि सूरज सदैव चमकना है, इससे उत्पादित ऊर्जा पूरी तरह स्वच्छ है, यह हमारी जरूरतों को पूरी करने में सुरक्षित है। इस त्रिसूत्रीय फार्मूले पर केवल भाषणों में काम नहीं हुआ बल्कि पहली बार धरातल पर परिवर्तन की इबारत लिखी जा रही है। 2016 में पवन ऊर्जा की प्रति यूनिट लागत 4.18 रुपए थी जो 2019 में 2.43 हो गई। 4.43 की दर वाली सौर यूनिट 2.24 रुपये पर आ गई है। 2013 में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन 34000 मेगावाट था जो आज 89636 पर आ चुका है। पूरी दुनिया में भारत तीसरा शीर्ष नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक देश है। 2030 तक भारत में जीवाश्मीय ऊर्जा खपत काफी कम होने का अनुमान है जो जलवायु परिवर्तन के लिए कार्बन उत्सर्जन की बुनियादी आवश्यकता को पूरा करने वाला सबसे बड़ा कारक है।
प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भरता के मोर्चे पर भी बड़े बुनियादी कदम उठाए हैं क्योंकि यह तथ्य है कि नवीकरणीय ऊर्जा के 80 फीसदी उपकरण हमें चीन से मंगाने पड़ते हैं। सौर ऊर्जा के सस्ते मॉड्यूल से भारतीय बाजार पटे हुए हैं। चीन में विभिन्न उपकरण निर्माता कम्पनियों ने 39 हजार 784 आइटम के पेटेंट करा रखे हैं वहीं भारत में इनकी संख्या केवल 246 ही है। मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सोलर मिशन लागू कर स्वदेशी कम्पनियों को आगे बढ़ाने वाले आर्थिक एवं नीतिगत पैकेज पर काम आरम्भ किया है। सरकार का दावा है कि उसकी नीतियों के चलते सोलर मॉड्यूल और पैनल विनिर्माण क्षेत्र में 2030 तक भारत आत्मनिर्भरता को हासिल कर लेगा और इस दौरान 42 अरब डॉलर के आयात चीन से नहीं करने पड़ेंगे। भारत का अब तक का सबसे बड़ा सोलर सेल परियोजना ठेका हासिल करने वाले गौतम अडानी का कहना है कि अगले 4 से 5 साल में भारत के नवीकरणीय ऊर्जा बाजार से हम चीन को बाहर कर देंगे। यह स्थिति समेकित रूप से भारतीयों को रोजगार से जोड़ने के साथ ऊर्जा आत्मनिर्भरता के बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक है। एक अनुमान के अनुसार 2035 तक भारत में ऊर्जा की मांग 4.2 प्रति वर्ष की दर से बढ़ेगी जो पूरी दुनिया में सबसे तेज होगी। विश्व के ऊर्जा बाजार में 2016 में भारत की मांग पांच प्रतिशत थी जो 2040 में 11 फीसदी होने का अनुमान है। इन तथ्यों से समझा जा सकता है कि मोदी सरकार ने दूरदर्शिता के साथ भारत की आर्थिकी को मजबूत धरातल देने का कितना महत्वपूर्ण काम अपने हाथ में ले रखा है।