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इतिहास के पन्नों से

वैदिक संपत्ति – अमेरिका खंड

 

गतांक से आगे…

जिन देशों का वर्णन हमने इस प्रकरण में किया है, उन देशों के रहने वालों के रीति-रिवाजों, आचार – व्यवहारों और धर्म- कर्म तथा विश्वासों का विस्तार पूर्वक वर्णन उन देशों का इतिहास लिखने वालों ने किया है, जिससे उनकी असभ्यता और अनार्यता का पता मिल जाता है। हम यहां विस्तारभय से वह सब नहीं लिखना चाहते। हम तो यहां केवल यही दिखाना चाहते हैं कि भारतीय आर्यों ने इनको इस पतित दशा से छुड़ाने के लिए उनमें धर्म प्रचार का आयोजन किया । उन्होंने देखा कि बहिष्कार से लाभ के स्थान में हानि भी हुई है। एक बहुत बड़ा मनुष्यसमाज आचारहीन और पापी हो गया है , तथा शत्रु होकर समय-समय पर दु:ख देने लगा है और आर्य जनता उससे सशंकित रहने लगी है। इस शंका के उद्धार के लिए आर्यों ने धर्म प्रचार की सर्वोत्कृष्ट नीति का आयोजन किया। जाति बहिष्कार अथवा कठोर शासन की अपेक्षा धर्म प्रचार के द्वारा लोगों के मन पवित्र कर देना सब सुधारों की जड़ समझा । इसलिए उन्होंने एक बहुत ही उत्तम कानून बनाया ब्रह्मवर्त के रहने वाले ब्राह्मणों से समस्त पृथ्वी के मनुष्य अपने चरित्र सीखे। कानून तो बन गया पर संसार के लोग इसे माने कैसे, और अपने चरित्र सुधारें कैसे ? सुधार तभी हो सकता था कि या तो संसार के लोग यहां आए या यहावाले उन देशों में जाएं।

दोनों दशाएं उपस्थित हुई। इतिहास से पता मिलता है कि ईरान, सीरिया ग्रीस और चीन आदि देशों से लोग यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए आया करते थे,यह वाले भी ऑस्ट्रेलिया ,अमेरिका ,सीरिया ग्रीस और चीन आदि देशों में शिक्षा देने के लिए जाया करते थे। ऋषि पुलसत्य धर्म प्रचार करने के लिए ऑस्ट्रेलिया ,वेदव्यास अमेरिका और बलख को गये। बौद्ध संन्यासी पेलीस्टाइन, ग्रीस और चीन को जाते रहे।अर्थात पुलसत्य से लेकर सन ईसवी के आरंभ तक आर्य ऋषि, मुनि और सन्यासी वैदिक धर्म का प्रचार दूसरे देशों में करते रहे और वहां के असभ्य लोगों में सभ्यता का संचार होता रहा। धर्म प्रचार होता रहा ,पर इस गणना गमन से जहां कुछ लाभ हुआ होगा वहां हानि भी इतनी हुई है कि जिसकी पूर्ति होनी कठिन है। हम देखते हैं कि गमना गमन के संसर्ग से उन उन देशों के पतित मनुष्य का आगमन इस देश में समय-समय पर हुआ, जिससे आर्यों में भी अवैदिकता का समावेश हुआ। इस तरह से जाति बहिष्कार ,धर्म प्रचार और पुनःजाति सम्मेलन आदि जितने कुछ आर्योंचित्र मृदु उपाय अब तक हुए हैं , सब के परिणाम में लाभ के साथ-साथ कुछ ना कुछ हानि भी हुई है। आगे हम उसी आगमन, सम्मेलन और तजन्य हानि का वर्णन करते हैं ।

(ईरान का जामास्प हकीम भारत में प्रतिवर्ष आया करता था और जैमिनी का शिष्य हुआ था। इसी तरह तिब्बत में हजरत ईसा का एक पुराना जीवन चरित्र मिला है, उससे पाया जाता है कि हजरत ईसा ने भारत में आकर धर्म के सिद्धांत सीखे और बहुत दिनों तक काशी आदि स्थानों में रहें। चीन निवासी सोमा चीन तथा फाहियान और ह्म नत्सँग आदि भी विक्रम की चौथी शताब्दी मैं यहां से पुस्तकें ले गए, संस्कृत जानने वाले अनेक ब्राह्मण ले गए और स्वयं अनेकों बातें सीख गये।
क्रमशः

देवेन्द्रसिंह आर्य

चेयरमैन  : उगता भारत

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