हिन्दू परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शुभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य से रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुमकुम तिलक या कार्य की महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से भी लगाया जाता है ।
मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है । इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान तरीके से सर्वसाधारण की रुचि धार्मिकता की ओर, आत्मिकता की ओर, तृतीय नेत्र जानकर इसके उन्मीलन की दिशा में किया गयच प्रयास जिससे आज्ञाचक्र को नियमित उत्तेजना मिलती रहती है,इस विषय पर एक बात मैविशेष रूप से कहुगी कि तिलक मे कभी भी काले रंग का प्रयोग नहीं किया जाता है क्यूकी काला रंग सबसे अधिक नकारात्मक शक्तियों को ग्रहण करने कि शक्ति रखता है इसलिए ,,,,,
मगर आजकल स्त्रीयों मे तो काली बिंदी का प्रयोग बहुत बढ़ गया है फेशन के कारण जो कि उचित नहीं है ….
माधवी गुप्ता