Categories
पर्यावरण महत्वपूर्ण लेख

जलवायु परिवर्तन सम्बंधी लक्ष्यों को केवल भारत ही प्राप्त करता दिख रहा है

कोरोना वायरस महामारी इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में पूरे विश्व पर आई है लेकिन आगे आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के रूप में एक और महामारी पूरे विश्व को प्रभावित करने वाली है। जिस प्रकार भारत ने अभी तक कोरोना वायरस महामारी से नुक़सान को कम करने के सफल प्रयास किए हैं, उसी प्रकार अथवा उससे भी अधिक सफल प्रयास जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर करने होंगे।

जलवायु परिवर्तन पर हुए पेरिस समझौते के अन्तर्गत, संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश, इस बात पर राज़ी हुए थे कि इस सदी के दौरान वातावरण में तापमान में वृद्धि की दर को केवल 2 डिग्री सेल्सियस तक अथवा यदि सम्भव हो तो इससे भी कम अर्थात 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोक रखने के प्रयास करेंगे। उक्त समझौते पर, समस्त सदस्य देशों ने, वर्ष 2015 में हस्ताक्षर किए थे। परंतु, सदस्य देश, इस समझौते को लागू करने की ओर कुछ कार्य करते दिखाई नहीं दे रहे हैं।

परंतु, भारत ने बहुत पहले ही इस सम्बंध में कई लक्ष्य अपने लिए तय कर लिए थे। इनमें शामिल हैं, वर्ष 2030 तक वातावरण में 30 से 35 प्रतिशत तक एमिशन के स्तर को कम करना, ग़ैर-जीवाश्म आधारित ऊर्जा के उत्पादन के स्तर को 40 प्रतिशत तक पहुंचाना, वातावरण में कार्बन उत्पादन को कम करना, आदि। इन संदर्भों में अन्य कई देशों द्वारा अभी तक किए गए काम को देखने के बाद यह पाया गया है कि जी-20 देशों में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जो पेरिस समझौते के अंतर्गत तय किए गए लक्ष्यों को प्राप्त करता दिख रहा है। जी-20 वो देश हैं जो पूरे विश्व में वातावरण में 70 से 80 प्रतिशत तक एमिशन फैलाते हैं। जबकि भारत आज इस क्षेत्र में काफ़ी आगे निकल आया है एवं इस संदर्भ में पूरे विश्व का नेतृत्व करने की स्थिति में आ गया है। भारत ने अपने लिए वर्ष 2022 तक 175 GW सौर ऊर्जा का उत्पादन करने का लक्ष्य तय किया है जिसे वर्ष 2022 से पहिले ही हासिल कर लिया जाएगा। इस लक्ष्य को बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 550 GW कर दिया गया है। भारत ने अपने लिए वर्ष 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को दोबारा खेती लायक उपजाऊ बनाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया है। साथ ही, भारत ने इस दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सौर संधि करते हुए 88 देशों का एक समूह बनाया है ताकि इन देशों के बीच तकनीक का आदान प्रदान आसानी से किया जा सके।

आज इस बात को समझना भी बहुत ज़रूरी है कि सबसे ज़्यादा एमिशन किस क्षेत्र से हो से रहा है। भारत जैसे देश में जीवाश्म ऊर्जा का योगदान 70 प्रतिशत से अधिक है, जीवाश्म ऊर्जा, कोयले, डीज़ल, पेट्रोल आदि पदार्थों का उपयोग कर उत्पादित की जाती है। अतः वातावरण में एमिशन भी जीवाश्म ऊर्जा के उत्पादन से होता है एवं इसका कुल एमिशन में 35 से 40 प्रतिशत तक हिस्सा रहता है, इसके बाद लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा परिवहन साधनों के उपयोग के कारण होता है क्योंकि इनमें डीज़ल एवं पेट्रोल का इस्तेमाल किया जाता है। इन दोनों क्षेत्रों में भारत में बहुत सुधार देखने में आ रहा है। इस समय देश में सौर ऊर्जा की उत्पादन क्षमता 83 GW के आसपास स्थापित हो चुकी है। देश अब क्लीन यातायात की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। बिजली से चालित वाहनों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है एवं मेट्रोपॉलिटन शहरों में मेट्रो रेल का जाल बिछाया जा रहा है। LED बल्बों के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा उज्जवला योजना के अंतर्गत ग्रामीण इलाक़ों में लगभग प्रत्येक परिवार में ईंधन के रूप में गैस के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जा रहा है। इन सभी प्रयासों के चलते देश के वातावरण में एमिशन के फैलाव में सुधार हो रहा है। यह सब अतुलनीय प्रयास कहे जाने चाहिए एवं भारत ने पूरे विश्व को दिखा दिया है कि एमिशन के स्तर को कम करने के लिए किस प्रकार आगे बढ़ा जा सकता है।

वर्ष 2015 में जब जलवायु परिवर्तन सम्बंधी लक्ष्य तय किए जा रहे थे तब यह कहा गया था कि विकासशील देशों को इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में बहुत दिक्कत आएगी और केवल विकसित देश ही इसमें अधिक भागीदारी कर पाएंगे परंतु भारत ने उस समय के अनुमानों को गल्त सिद्ध कर दिया है और वर्ष 2020 में भारत का 66.2 अंकों के साथ विश्व में 9वां स्थान है जबकि वर्ष 2019 में 11वां स्थान था एवं कई विकसित देश भी आज भारत से पीछे खड़े हैं।

यहां विचार करने योग्य मुद्दा यह है कि केवल भारत द्वारा पेरिस समझौते के अंतर्गत तय किए गए सारे लक्ष्यों को हासिल करने से वैश्विक स्तर पर एमिशन के स्तर में बहुत कमी नहीं आएगी क्योंकि भारत का योगदान विश्व में एमिशन का स्तर बढ़ाने में पहिले से ही काफ़ी कम है। अन्य देशों, विशेष रूप से विकसित देशों, जिनका एमिशन के स्तर को बढ़ाने में योगदान ज़्यादा है, का साथ में चलना बहुत ज़रूरी है। जी-20 के माध्यम से अन्य देशों पर दबाव बनाया जाना चाहिए ताकि वे भी अपने लक्ष्यों को हासिल करने के भरपूर प्रयास करें। भारत ने चूंकि प्रवाह तय कर दिया है अतः भारत इस क्षेत्र में अब नेतृत्व कर सकता है। भारत ने ज़रूर बहुत अच्छा काम किया है लेकिन विकसित देशों, जिनकी हिस्सेदारी ज़्यादा है, उन्हें और अधिक अच्छा काम करने की ज़रूरत है। विकसित देशों के पास निवेश करने के लिए पर्याप्त पूंजी भी उपलब्ध है जबकि विकासशील देशों के पास पूंजी का अभाव है। जिस स्तर पर पर्यावरण की स्थिति पहुंच गई है वहां से कम तो नहीं हो सकता हैं परंतु अब आगे स्थिति ज़्यादा ख़राब न हो इस पर कार्य करने की आज सख़्त ज़रूरत है।

वैश्विक स्तर पर सभी देशों को आज साथ खड़ा होने की ज़रूरत हैं ताकि जलवायु परिवर्तन के दुषपरिणामों से पूरे विश्व को बचाया जा सके। कई विकसित देशों ने तो जीवाश्म ऊर्जा का उपयोग कर अपनी आर्थिक प्रगति कर ली है परंतु विकासशील देशों को तो अभी आर्थिक प्रगति करना है। कई विकसित देशों के पास तो आज जीवाश्म ऊर्जा का कम से कम उपयोग करने सम्बंधी आधुनिक तकनीकि उपलब्ध है, जिसे उन्होंने भारी राशि निवेश करने के बाद प्राप्त किया है। इस तकनीकि को विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि विकासशील देशों द्वारा इस सम्बंध में निवेश की जा रही राशि को बचाया जा सके। इस प्रकार, अब यह विकसित देशों की ज़िम्मेदारी बनती है कि विकासशील देशों का मार्गदर्शन करें कि किस प्रकार जीवाश्म ऊर्जा का कम से कम उपयोग कर आर्थिक प्रगति की जा सकती है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version