भारतीय शिक्षा व्यवस्था का आधार बने भारत का प्राचीन ज्ञान विज्ञान

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डॉ. सत्यपाल सिंह

( संसाद,बागपत )

इस देश ने चार बड़ी-बड़ी गलतियाँ कीं। सबसे पहली गलती यह कि मजहब के नाम पर देश को बाँट दिया। दूसरी गलती यह थी, भाषाओं के नाम पर राज्यों का बँटवारा किया गया, तीसरी गलती यह थी कि जातियों ने नाम पर समाज का बाँटा गया और चौथी तथा सबसे बड़ी गलती यह की कि लार्ड मैकॉले की शिक्षा पद्धति को हमने ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया। डॉ. चन्द्रकान्त राजू जिस व्यथा को व्यक्त कर रहे थे, यह उसी गलती का परिणाम है। फिर भी यह देश और इस देश की संस्कृति बची रही, जीवंत बनी रही, इसके कुछ कारण हैं। ईसाई प्रोफेसर मैक्समूलर ने कहा कि सारी दुनिया को अगर कोई शिक्षा दे सकता है, तो वह देश भारत है। उन्होंने एक पुस्तक लिखी इंडिया व्हाट इट कैन टीच अस। धन-दौलत में, भौतिक शक्ति में, सुंदरता में दुनिया में भारत जैसा कोई और देश नहीं है।


इस्लाम पूरी दुनिया में फैल रहा था, अफ्रीका, यूरोप, एशिया में, ईरान, इराक, तुर्की में, पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस आदि देशों में तो बढ़ता जा रहा था। लेकिन जब अपने देश में आया तो उसके बारे में अल्ताफ हुसैन हाली ने कहा –
वह दीने-हिजाजी का बेबाक बेड़ा, निशां जिसका अक्साए-आलम में पहुँचा,
मजाहम हुआ कोई खतरा न जिसका, न अमन में अटका, न कुल्जम में झिझका,
किये पै सिपर जिसने सातों समंदर, वह डूबा दहाने में गंगा के आकर।
वह इस्लाम क्यों डूब गया गंगा के किनारे आकर के? इसी बात को अल्लामा इकबाल ने कहा कि
यूनान,मिश्र, रोमा, सब मिट गए जहाँ से, लेकिन बाकी नामों निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा।
कुछ विशेष बात है अपने देश में। इस विशेष बात को ही मैं भारतीय धरोहर कहता हूँ। यह भारतीय धरोहर है जिसके कारण भारतीय संस्कृति बची रही है, जिसके कारण यह देश बचा रहा है। भारतीय धरोहर आकाश की तरह विशाल है। भारतीय संस्कृति का सबसे पहला संदेश यही था कि सबसे पहले मानव का निर्माण करो। इसलिए वेदों का आदेश था मनुर्भव। मनुष्य बनेगा तो फिर बाकी सब भी सीख लेगा। आज जो भी समस्याएं हैं, वे इसलिए हैं कि हमने भारतीय धरोहर को भुला दिया।
शिक्षा मंत्रालय को आज मानव संसाधन विकास मंत्रालय कहते हैं। यानी मानव को मशीन की तरह, जमीन की तरह, पैसे की तरह एक संसाधन मान लिया। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम ऐसी शिक्षा व्यवस्था बनाएं जो भारतीय धरोहर से हमारा परिचय करवा सके। किले समाप्त हो जाते हैं, महल नष्ट हो जाते हैं, सोना-चाँदी की कीमत भी समाप्त हो जाती है। हमारी भारतीय धरोहर ने कहा कि हमेशा रहने वाली सबसे मूल्यवान वस्तु ज्ञान है। उस ज्ञान को हम वेद कहते हैं। हम केवल अपना गणित नहीं भूले, हम वेद को भी भूल गए। जो अपने मूल को भूल जाता है, वह आगे कैसे बढ़ेगा? भारत यदि दुनिया का सिरमौर था, तो केवल वेद के कारण था। लेकिन आज वेदों की कथाएं होना बंद हो गई हैं। वेदों का पठन-पाठन बंद हो गया है। महर्षि दयानंद ने कहा कि यदि इस देश को पुन: दुनिया का सिरमौर बनाना है तो उसका एकमात्र रास्ता है कि हमें वेद के रास्ते पर चलना पड़ेगा।
वेद स्वत: प्रमाण हैं। वेद केवल पाँच हजार वर्ष से नहीं हैं। आज भी हम संकल्प पाठ करते हैं तो उसमें कहते हैं कि इस पृथिवी को बने हुए एक अरब, 97 करोड़ वर्ष हो गए है। फिर वेद केवल पाँच हजार वर्ष के कैसे होंगे। आज केवल गणित का विषय उलटा नहीं हुआ है, बहुत सारे विषय उलटे हो गए हैं। सारी दुनिया परेशान है। इसलिए हमें ऋषियों के ग्रंथों को पढऩा होगा। उनके आधार पर जब शिक्षा पद्धति आएगी, तब इस देश का सुधार और उद्धार होगा, तब दुनिया में शान्ति आएगी।
( 2018 में दिए गए वक्तव्य से )

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