कुलथी की दाल – जो पत्थर को भी गला देती है

ममता रानी

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

जी हाँ, प्रकृति की गोद में कई सारे ऐसे स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ हैं, जो हमें बड़ी सहजता से अनेक असाध्य रोगों से बचाते हैं। ऐसा ही एक खाद्य पदार्थ है कुलथी। कुलथी लाल-भूरे रंग का एक दलहन है जिसे दाल के रूप में खाने की परंपरा रही है। मकर संक्रांति के दूसरे दिन खिचड़ी खाने की जो परंपरा थी, उसमें कुलथी के दाल की ही खिचड़ी बनती थी। आज भी बिहार के गाँवों में कुछ लोग इस परंपरा को निभाते हैं। आज की पीढ़ी जानती ही नहीं कि चना, मूंग, अरहर, मसूर, उड़द की भांति कुलथी भी एक दाल है। जो कुछेक लोग कुलथी का नाम जानते भी हैं, वे भी इसे पथरी की दवा के रूप में ही जानते हैं, किसी स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में नहीं।
हालांकि यह सही बात है कि कुलथी पथरी यानी कि शरीर में विभिन्न स्थानों में बनने वाले पत्थर का रामबाण इलाज है। पथरी शरीर के किसी भी अंग में हो, चाहे गुर्दे में या गॉल ब्लाडर में या फिर पेंक्रियाज में, कुलथी के नियमित सेवन से वह गल कर मूत्र मार्ग से सरलता से बाहर निकल जाती है। प्रसिद्ध योगगुरू स्वामी रामदेव बताते हैं, कि पथरी शरीर के किसी भी अंग यहाँ तक कि गले में भी हो सकती है और वह काफी कष्टदायक होती है। कुलथी की दाल शरीर में कहीं की भी पथरी को गलाने में सक्षम है। पथरी बनने का कारण है आधुनिक खानपान। अधिक तला-भुना खाने तथा पानी कम पीने से शरीर में कैल्शियम जमा होने लगता है जो कालांतर में छोटे-छोटे पत्थरों का रूप लेने लगता है। अधिकांशत: पथरी का निर्माण गुर्दे, मूत्रमार्ग तथा गॉल ब्लाडर में होता है। एलोपैथी में इसका एक ही इलाज है, ऑपरेशन यानी कि शल्य चिकित्सा।
ऑपरेशन से पथरी निकल जाती है, परंतु उसके बनने की प्रक्रिया समाप्त नहीं होती। वह दोबारा से बन सकती है। इसलिए ऑपरेशन इसका स्थायी समाधान नहीं है। कुलथी दाल में विटामिन ए की काफी अधिक मात्रा होती है, जो शरीर में पथरी को बनने से रोकता है। साथ ही यह शरीर में कोलेस्ट्राल बनने से भी रोकता है। पथरी हो जाने पर कुलथी की दाल को रात को पानी में भिगो कर सुबह उसका पानी पीना चाहिए। कुलथी का क्वाथ भी बना कर पीया जा सकता है। चूंकि यह स्वाद में अत्यंत कसैला होता है, इसलिए इसमें थोड़ा मीठा भी मिला सकते हैं।
कुलथी केवल पथरी में ही लाभकारी हो, ऐसा नहीं है। इसके अलावा भी कुलथी में बहुत सारे गुण हैं। कुलथी मोटापा रोकने में भी कारगर है क्योंकि इसमें वसा की मात्रा काफी कम होती है। कुलथी में प्रोटीन, विटामिन और आयरन प्रचूर मात्रा में होता है। स्त्रियों की माहवारी तथा श्वेत प्रदर की समस्या में भी कुलथी की दाल का सेवन काफी लाभ पहुँचाता है। कुलथी में विटामिन बी कॉम्पलेक्स और फाइबर की मात्रा भी काफी होती है। कुलथी की दाल आमवात के रोगियों के लिए भी काफी लाभकारी है। कुलथी मधुमेह के रोगियों के लिए भी उपयोगी है। इसके सेवन से मधुमेह नियंत्रित रहता है।
प्रश्न उठता है कि इतनी गुणकारी कुलथी की दाल हमारी रसोई से बाहर क्यों निकल गई? इसके दो कारण हैं। कुलथी तो हमारे दैनिक भोजन का हिस्सा थी। फिर वह आज की गृहणियों की सूची में क्यों नहीं है? कुलथी का स्वाद थोड़ा कसैला होता है। यह आसानी से गलती भी नहीं है। इसलिए इसे पकाना थोड़ा कठिन होता है। समझा जाता है कि इसलिए भी आज की व्यस्त गृहणियां इसे छोड़ चुकी हैं। परंतु यदि हम इसे पकाने की अपनी परंपरा को याद करें तो इसे फिर से अपने नियमित भोजन में शामिल कर सकते हैं। इससे न केवल हमें एक अति स्वादिष्ट व्यंजन मिलेगा, बल्कि यह हमें पथरी समेत अनेक रोगों से भी बचाएगा। यदि हम सप्ताह में एक बार नियम से कुलथी की दाल खाएं तो पथरी से हमेशा के लिए मुक्त रह सकते हैं।

Kulath-Ki-Dalकुलथी की दाल साबुत रूप में बाजार में मिलती है। साबुत कुलथी को पकाना कठिन होता है। इसे पहले तवे पर हल्का गर्म कर लें। फिर सिल पर हल्का सा चला कर दरड़ लें। दरडऩे के बाद दाल को छिलके से अलग कर लें। इस दरड़ी हुई दाल को एयरटाइट डब्बे में बंद करके रखें। यह महीनों तक खराब नहीं होगी और कभी भी बनाई जा सकती है। इस दरड़ी हुई दाल को बनाने की विधि यहाँ दी जा रही है।
कुलथी की दाल की विधि

सामग्री
कुलथी की दाल -100 ग्राम
अरहर या मसूर की दाल – 50 ग्राम
छोटा बैंगन – एक
मध्यम आकार के टमाटर – दो
नमक और हल्दी – स्वादानुसार
छौंक के लिए एक बड़ा चम्मच सरसों तेल, जीरा, लहसुन की 4-5 कलियां छिली और कटी हुई, एक चुटकी हींग और लाल मिर्च

निर्माण विधि
कुलथी की दरड़ी हुई दाल को धोकर थोड़ी देर के लिए पानी में भिगो दें। फिर कूकर में पर्याप्त पानी डाल कर दाल डालें और उसमें बैंगन और टमाटर भी काट कर डाल दें। नमक और हल्दी डाल कर कूकर में दाल को तेज आँच पर पकाएं। कूकर के पहली सीटी देने के बाद आँच धीमी कर दें। 25 मिनट तक धीमी आँच पर दाल को पकने दें। कुलथी की दाल थोड़ी देर से गलती है, इसलिए इसके पकने में सामान्य दाल से लगभग दोगुणा समय लगता है। पकने के बाद कूकर खोल कर देख लें कि दाल ठीक से गल गई है कि नहीं। कड़छी से इसे ठीक से मिला लें।
तड़का पैन में सरसों का तेल गरम करें। उसमें पहले हींग डालें, फिर लहसुन की कटी हुई कलियां। लहसुन के लाल होने पर जीरा और लाल मिर्च डालें और दाल में इसका छौंक लगाएं। इस छौंक से कुलथी का कसैलापन जाता रहता है। कुलथी की स्वादिष्ट दाल तैयार है। इसे हरे धनिये के पत्ते से सजाएं और चावल या रोटी के साथ गरम गरम परोसें।

नोट: लहसुन-प्याज न खाने वाले लहसुन छोड़ सकते हैं। जिन्हें पथरी की शिकायत बढ़ी हुई हो, वे टमाटर के स्थान पर अमचुर पाउडर का प्रयोग कर सकते हैं।

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