दक्षिणांचल में बढ़ेगी “मोदी मैजिक” की गति ?
*राष्ट्र-चिंतन*
*विष्णुगुप्त*
दक्षिणांचल भाजपा की सबसे कमजोर कडी रही है। इसीलिए भाजपा की अब दक्षिणाचंल की ओर दृष्टि लगी हुई है। दक्षिणाचंल में भाजपा के लिए संभावनाएं भी कम नहीं है। नये जोश के साथ भाजपा अब दक्षिणाचंल में सक्रिय ही नहीं हो रही है बल्कि अभियानी भी है। अब भाजपा के पास दो-दो राजनीतिक ब्रम्हास्र है जिसके सहारे वह दक्षिणाचंल में अपने विरोधियों को परास्त करेंगी, मतदाताओं को आकर्षिक कर अपना विस्तार करेगी। ये दो ब्रम्हास्र हैं, एक हिन्दुत्व और दूसरा ‘ मोदी मैजिक ‘ है। काफी समय पहले से दक्षिणांचल में भाजपा अपने आधार का विस्तार करने की कोशिश कर रही थी और अपनी संभावनाएं तलाश रही थी पर इसमें असफलताएं ही हाथ लग रही थी, हिन्दुत्व का ब्रम्हास्र बहुत ज्यादा कारगर नहीं हो पा रहा था।
इसके पीछे कारण यह था कि हिन्दुत्व के सामने भाषा का प्रश्न अति महत्वपूर्ण बन जा रहा था। दक्षिणाचंल में भाषा की समस्या और अस्मिता भी जगजाहिर है। पूरी राजनीति भाषा के प्रश्न पर मजबूती के साथ खडी रहती है। कभी भाजपा का हिन्दी प्रेम दक्षिणाचंल में समस्या खडी करती थी और संदेश यह जाता था कि भाजपा दक्षिणाचंल की भाषा का अंत चाहती है, दक्षिणांचल की भाषा की कब्र पर अपना विस्तार करना चाहती थी। आजादी के बाद दक्षिणाचंल में भाषा की लड़ाई और हिन्दी को थोपने की तथाकथित कोशिश के प्रति जनाक्रोश उत्पन्न हुआ और यह जनाक्रोश राजनीति को अपने शिकंजे में कसने का काम किया। जबकि देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी मानी गयी थी पर हिन्दी को पूरे देश की भाषा बनाने की चरण बद्ध योजना थी। अब भाजपा के लिए हिन्दी प्रेम भी कोई बेड़ियां नहीं है। अब भाजपा देशज भाषा के विकास और उन्नति की बात करती है। इसलिए दक्षिणांचल की भाषाओं की अस्मिता को अक्षुण रख कर भाजपा अपना विस्तार कर सकती है।
अभी-अभी भाजपा के महारथी अमित शाह दक्षिणांचल के दौरे कर आये हैं। उनका यह दौरा शुद्ध रूप से पार्टी का दक्षिणांचल में विस्तार करना है और अगले लोेकसभा चुनावों मे सीटें जीतने की कोशिश के रूप में देखा जाता है। अमित शाह कहीं भी जाते हैं और कोई कदम उठाते हैं तो फिर सुर्खियां बनती हैं, तरह-तरह की अटकलें लगायी जाती है। अमित शाह ने खुद कह दिया कि अब भाजपा दक्षिणांचल में भी मजबूत होकर उभरेगी। जहां तक अमित शाह की दक्षिणांचल दौरे की सफलता की बात है तो इसमें दो मत नहीं कि उनका यह दौरा बहुत ही सफल रहा है, अपने उद्देश्य में अमित शाह सफल जरूर हुए हैं। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में जिस तरह से अमित शाह का स्वागत हुआ और जिस तरह की भीड़ जुटी थी उस पर निष्कर्ष बहुत ही सकरात्मक निकला है। इसलिए कि भीड़ उत्साहित थी, भीड़ हिन्दुत्व और मोदी मैजिक से प्रभावित थी। जहां-जहां हिन्दुंत्व और मोदी मैजिक का उभार और जोश देखा जाता है वहां-वहां भाजपा के लिए अवसर तथा संभावनाएं होती हैं।
दक्षिाणांचल का श्रीगणेश चैन्नई से करने का उद्देश्य क्या है? दक्षिणांचल की राजनीति में तमिलनाडु और चैन्नई का महत्व भी जगजाहिर है। जिस तरह से उत्तरांचल की राजनीति दिल्ली, पश्चिमंाचल की राजनीति मुबंई और पूर्वांचल की राजनीति असम से गतिशील होती है, सक्रिय होती है और प्रभावित होती है उसी प्रकार से दक्षिणांचल की राजनीति का संदेश और प्रभाव चैन्नई से ही प्रसारित होता है। यह धारणा बैठी हुई है कि जिस पार्टी का तमिलनाडु में पकड होगी उस पार्टी का दक्षिणांचल पर भी पकड मजबूत होगी। अब तक तमिलनाडु पर किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल नहीं बल्कि क्षेत्रीय राजनीतिक दल की पकड रही है। बदल-बदल कर क्षेत्रीय राजनीति ही तमिलनाडु पर राज करती है। कभी द्रमुक और तो कभी अन्नाद्रमुक मेंसत्ता हस्तांतरित होती रही है। कांग्रेस पार्टी इन्ही दोनों पार्टियों के बीच झूलती रही है। कम्युनिस्ट पार्टियां भी इन्ही दोनों क्षेत्रीय राजनीति के सहारे खडी रहती हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों ने द्रमुक के साथ मिल कर चुनाव लडी थी। पिछले लोकसभा चुनाव में द्रमुक और कांग्रेस तथा कम्युनिस्ट पार्टियों को अच्छी सफलताएं भी मिली थी।
द्रमुक और अन्नाद्रमुक विचारधारा से कम और व्यक्तित्व से अधिक चमत्कृत रही है। इन्हें व्यक्ति आधारित पार्टियां कहना कोई अतिशोयेक्ति नहीं होनी चाहिए। द्रमुक जहां करूणानिधि के व्यक्तित्व से और वही अन्नाद्रमुक एमजी रामचन्द्रण की व्यक्तित्व से फली-फूली हैं। तमिल ही नहीं बल्कि कन्नड और तेलगू राजनीति में व्यक्तित्व का आकर्षण बहुत ही ज्यादा रहा है। खासकर अभिनेताओं से आम जनता कुछ ज्यादा ही प्रभावित रहती है। अभिनेताओं को दक्षिणांचल में भगवान की तरह देखा जाता है, अभिनेताओं के नाम पर जान भी लोग दे देते हैं। तमिलनाडु में एमजी रामचन्द्रण अभिनेता थे, करूणानिधि भी अभिनेता थे, आंध प्रदेश में कभी एनटी रामाराव अभिनेता थे, एनटी रामाराव ने एकाएक तुलगू देशम पार्टी बनायी और इन्दिरा गांधी की होश उडाते हुए आंध प्रदेश की सरकार पर कब्जा कर लिया था। अब आंध्र प्रदेश की राजनीति में अभिनेता प्रेम कुछ कम हुआ है। तमिलनाडु में करूणानिधि की अस्मिता की चमक ढीली पडी है, उनके विरासत के कई सौदागर है, एमजी रामचन्द्रन की विरासत बनी जयललिता का अवसान हो चुका है। इस लिए अब तमिलनाडु की राजनीति में अभिनेता प्रेम या फिर व्यक्ति आधारित राजनीति की बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। ऐसे राजनीकांत कभी कभार राजनीति में कूदने का आभास देते रहते हैं पर अभी तक रजनीकांत की स्पष्ट सक्रियता सामने नहीं आयी है। रजनीकांत की अंदर खाने में भाजपा से ज्यादा पटती है। उधर एक दूसरे अभिनेता कमल हासन का उछल-कूद कोई खास सक्रियता सुनिश्चित नहीं कर सका है।
दक्षिणांचल क्षेत्र में तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलगाना, कर्नाटक और केरल मुख्य राज्य हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान में तमिलनाडु को छोडकर अन्य प्रदेशों में भाजपा की उपस्थिति बहुत ज्यादा कमजोर नहीं है। कर्नाटक में भाजपा की सरकार है। त्रिपुरा में भी भाजपा की सरकार है। त्रिपुरा में भाजपा ने 30 सालों से जमी कम्युनिस्टों की सरकार को हवाहवाई की है और अपनी सरकार बनायी है। त्रिुपरा में अपनी उपपलब्धि को भाजपा विशेष मान कर चल रही है। कर्नाटक में भाजपा की सरकार की शक्ति तमिलनाडु ही नहीं बल्कि आंध्र प्रदेश और तेलगाना तक की राजनीति को प्रभावित कर रही है। आंध प्रदेश में वाइएस चन्द्रशेखर की विरासत की सरकार है जबकि तेलगाना के मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव की सरकार है। आंधप्रदेश में एनटी रामाराव के विरासत चन्द्रबाबू नायहू का अवसान जारी है। आंध प्रदेश में भाजपा मुख्य विपक्ष की भूमिका निभाने की कोशिश कर रही है। जबकि तेलंगाना में भाजपा की उम्मीद कुछ ज्यादा ही है। के चन्द्रशेखर राव लंबे समय से मुख्यमंत्री जरूर हैं और उनकी अपने राज्य पर पकड़ भी मजबूत है पर अब लोगों में नाराजगी भी बढ रही है। पिछले लोकसभा चुनावों में इसका संकेत मिला था। के चन्द्रशेखर राव की बेटी खुद लोकसभा चुनाव हार गयी थी। भाजपा भी यहां पर लोकसभा की चार सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। लगभग 20 प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब हुई थी। अविभाजित आंध्र प्रदेश में कभी भाजपा का प्रभाव भी रहा था। यहां पर हिन्दुत्व का भी प्रभाव रहा है। के चन्द्रशेखर राव कभी संघ के ही स्वयं सेवक थे। अविभाजित आंध्र प्रदेश में संघ और भाजपा का प्रभाव का एक बडा उदाहरण यह है कि 1984 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा एक लोकसभा सीट जीतने में कामयाब हुई थी। तब भाजपा के उम्मीदवार ने बाद में प्रधानमंत्री बने नरसिम्हा राव को हराया था। तेलंगाना में कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है, इसलिए यहां पर भाजपा के लिए बहुत बडी संभावनाएं बनी हैं।
दक्षिणांचल में भाजपा की सबसे कमजोर कडी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी और उनकी सरकार है। अन्नादमुक की शक्ति भी दो भागों में विभाजित हो गयी है। पिछले लोकसभा के चुनावों में पलानीस्वामी का जादू नहीं चल पाया था। पलानीस्वामी विफल साबित हुए थे। द्रमुक ने पलानीस्वामी को पटकनी दे दी थी। जहां तक पलानीस्वामी की सरकार की बात है तो फिर आक्रोश भी कम नहीं है। पलानीस्वामी उस तरह की राजनीतिक हैसियत और विशेषताएं नहीं रखते हैं जिस तरह की हैसियत और विशेषताएं जयललिता के पास हुआ करती थी। नरेन्द्र मोदी की केन्द्रीय सरकार की कोशिश पलानीस्वामी सरकार को मदद करने की है, इसलिए केन्द्र की योजनाएं भी तेजी से तमिलनाडु में चल रही है। अगर पलानीस्वामी अपने जादू चलाने में सफल हुए तो फिर 2024 में नरेन्द्र मोदी के लिए वरदान भी साबित हो सकते हैं। अभी तक के संकेतों के अनुसार तमिलनाडु में भाजपा और अन्नाद्रमुक मिल कर ही चुनाव लडेंगे। भाजपा की यह कोशिश है कि अगर 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तरांचल, पश्चिमांचल, पूर्वांचल में नुकसान हुआ तो उसकी भरपाई दक्षिणांचल से किया जा सके। दक्षिणांचल में तमिलनाडु ही भाजपा के विस्तार और संभावनाओं के केन्द्र में है। अगर दक्षिणांचल में हिन्दुत्व और मोदी मैजिक का जादू चला तो फिर 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और मोदी अपनी जीत की हैट्रिक मना सकते हैं।
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