बिहार में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में सीमांचल ने ओवैसी के जिन 5 विधायकों को चुनकर भेजा था उन्होंने अपना रंग पहले दिन ही दिखा दिया , जब उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि वे हिंदुस्तान के संविधान के नाम पर शपथ नहीं लेंगे। इस छोटी सी घटना से उन छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों की आंखें खुल जानी चाहिए जो भाषा के नाम पर हिंदी की उपेक्षा कर उर्दू को प्राथमिकता देते हैं और अपनी तुष्टीकरण की मूर्खतापूर्ण नीतियों के कारण मुस्लिम तुष्टिकरण को अपनी धर्मनिरपेक्ष राजनीति का प्रमुख हथियार बनाकर अपनी राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि में लगे रहते हैं । यह घटना दिखने में छोटी सी लगती है परंतु इसके दूरगामी परिणाम होंगे। विशेष रुप से तब जब अभी कुछ समय पहले वृहत्तर बांग्लादेश बनाने की एक गुप्त योजना का पता चला था जिसमें बिहार का कुछ क्षेत्र ,कुछ क्षेत्र उड़ीसा का और सारा बंगाल व कुछ आसाम की तरफ का क्षेत्र लेकर उस पर काम किया जा रहा है।
इस देश का हिंदू ऐसी घटनाओं को अधिक गंभीरता से नहीं लेता। यह धर्मनिरपेक्ष बना अपने राष्ट्र धर्म को त्याग देता है और कोई ना कोई जिन्नाह अलग-अलग कालखंडों में खड़ा होकर देश के टुकड़े कराने में सफल हो जाता है। अब हमारे देखते-देखते एक जिन्नाह ओवैसी के रूप में खड़ा हो रहा है और हम उसकी ओर से वैसे ही आंखें मूंदे बैठे हैं जैसे कबूतर आती हुई बिल्ली को देखकर आंखें बंद कर लेता है। हमारा यह कबूतरी धर्म ही सच्ची धर्मनिरपेक्षता है जो हमारे आत्मविनाश का कारण बन रही है। प्रत्येक सांप्रदायिक मुसलमान ओवैसी के साथ खड़ा है और प्रत्येक धर्मनिरपेक्ष हिंदू या तो विनाश की रखी जा रही नई नींव के प्रति उदासीन है या उसे किसी न किसी प्रकार समर्थन दे रहा है । …. हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा ?
17वीं बिहार विधानसभा में पहुंचे ओवैसी के विधायकों ने शपथ पत्र में लिखे हिंदुस्तान शब्द पर आपत्ति की और हिंदुस्तान की जगह भारत बोलने पर अड़े। इस पर बीजेपी विधायक ने कहा जो हिंदुस्तान नहीे बोल सकते उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए । विधायक अख्तरुल इमान ने उर्दू भाषा में शपथ ली और इस दौरान हिंदुस्तान के बदले भारत शब्द का इस्तेमाल किया।
अख्तरुल का नाम जैसे ही शपथ के लिए पुकारा गया, उन्होंने हिंदुस्तान शब्द पर आपत्ति जता दी। उन्हें उर्दू में शपथ लेनी थी। प्रोटेम स्पीकर जीतनराम मांझी से उन्होंने हिंदुस्तान के बदले भारत शब्द बोलने की अनुमति मांगी। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा में शपथ लेते वक्त भारत के संविधान शब्द का प्रयोग किया जाता है। मैथिली भाषा में भी यही शब्द आता है, लेकिन उर्दू में शपथ के लिए जो प्रपत्र दिया गया है, उसमें भारत के बदले हिंदुस्तान लिखा गया है। अख्तरुल ने कहा कि वह भारत के संविधान के नाम पर शपथ लेंगे, न कि हिंदुस्तान के संविधान के नाम पर। अख्तरुल की आपत्ति पर प्रोटेम स्पीकर जीतनराम मांझी ने कहा कि ऐसा पहली बार तो हो नहीं रहा है। पहले भी उर्दू भाषा में शपथ के प्रपत्र में भारत की जगह हिंदुस्तान ही लिखा रहता था। दोनों नाम में शब्दों के अलावा और कोई फर्क भी नहीं है। मांझी के आग्रह का भी अख्तरुल पर कोई असर नहीं पड़ा और वह हिंदुस्तान के बदले भारत शब्द के उच्चारण पर ही अड़े रहे।
शपथ ग्रहण के बाद पत्रकारों से बातचीत के क्रम में अख्तरउल इमाम ने कहा कि भारत शब्द के अनुवाद पर उनका विरोध था। इसके अतिरिक्त कोई और मसला नहीं था। वहीं उर्दू में शपथ की जो कॉपी दी जाती है वह बेहतर नहीं होती है। कागज और उसकी टाइपिंग भी स्तरीय नहीं होती।
यहां पर हम यदि इतिहास के झरोखों से आती हुई सांप्रदायिकता की प्रदूषित हवा की ओर ध्यान करें तो पता चलता है कि जिस प्रकार आज हम बिहार के सीमांचल से चुनकर आए ओवैसी के 5 विधायकों की इस घटना पर मौन हैं वैसे ही कभी हम ईरान में हो रहे उस परिवर्तन के खिलाफ भी मौन रहे थे जिसने धीरे-धीरे इस आर्यान प्रांत को ईरान में परिवर्तित कर इस्लाम बहुल बना दिया और फिर वहां से हिंदुत्व को बोरिया बिस्तर बांधने के लिए मजबूर किया। इसी प्रकार की उदासीनता हमने कभी अफगानिस्तान के प्रति बरती थी , जब वहां हिंदुत्व का विनाश कर इस्लाम का प्रचार प्रसार किया जा रहा था और यही हमने पाकिस्तान के बनते समय 1947 में भी गलती की थी।
हम गलतियों से शिक्षा लेने को तैयार नहीं होते । बार-बार हम बीती हुई घटनाओं को यह कहकर भूलने का प्रयास करते हैं कि अब 1947 को गुजरे इतने समय हो गए और अफगानिस्तान की घटना या ईरान की घटना को घटित हुए इतने वर्ष हो गए … समय बदल गया है, … बदले समय के साथ रहना सीखो… ऐसे उपदेशक धर्मनिरपेक्ष लेखक ,कवि और तथाकथित बुद्धिजीवी मंच पर आकर हमें फिर से कबूतरी धर्म की शिक्षा देने लगते हैं । हम अपने राष्ट्रधर्म को भूलकर फिर अपने परंपरागत कबूतरी धर्म को अपना लेते हैं, बिना इस बात का ध्यान किए कि उसने हमें अतीत में किस प्रकार खून के आंसू रुलाने के लिए बाध्य किया है?
भारत को हिंदुस्तान कहकर बोलने वाले भी मुसलमान ही थे और अब हिंदुस्तान को भारत कहकर बोलने वाले भी ये मुसलमान ही हैं । तब उन्हें यह हिंदुओं का स्थान दिखाई देता था और आज हिंदुओं का स्थान अर्थात हिंदुस्तान कहने से उन्हें इसमें हिंदू राष्ट्र की गंध आती है। जिसे वह सहन करने को तैयार नहीं हैं। यद्यपि यह पूर्णतया सत्य है कि जब तक भारतवर्ष में हिंदू बहुसंख्या में है तब तक यहां पर धर्मनिरपेक्षता का वर्तमान सिद्धांत लागू रह सकता है। जैसे ही मुस्लिम 40 % हो जाएगा तुरंत इसको इस्लामिक राष्ट्र बनाने की तैयारी जोरों से आरंभ हो जाएगी,। उस समय एक भी हिंदू चूँ तक नहीं कर पाएगा और तब उसके जो फलितार्थ हमारे सामने आएंगे वह सारे संसार से हिंदुओं के सर्वनाश के रूप में देखने को मिलेंगे। जिस कार्य को पूर्ण होने से रोकने के लिए हमारे वीर बहादुर पूर्वजों ने सदियों तक खून बहाया, उसे हम धर्म निरपेक्षता के मूर्खतापूर्ण सिद्धांत के आधार पर मात्र 100 वर्ष में ही पूर्ण होते देख सकते हैं।
आज हमें ओवैसी के 5 विधायकों की मानसिकता को पहचानना होगा । गहरी नींद को त्याग कर अपने पूर्वजों के बलिदानों को ध्यान में रखकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए जागृत होना ही हिंदू के सामने एकमात्र विकल्प है। निश्चित रूप से विकल्पविहीन संकल्प ही हमारी नैया पार कर सकता है अन्यथा सारे संसार से अपना अस्तित्व मिटते देखने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। निश्चित रूप से सावरकर जी और महर्षि दयानंद जी के पदचिन्हों पर चलने की आवश्यकता है।
छद्म धर्मनिरपेक्षता की राजनीति के चलते ओवैसी को निरंतर ऊर्जा मिलती जा रही है। वह कुछ उसी प्रकार ऊर्जावान होता जा रहा है जैसे कभी जिन्नाह को कांग्रेस की मूर्खताओं के कारण ऊर्जा मिलती रही थी। जिन्ना ने कांग्रेस की कमजोरी और घटनाक्रम से उत्साहित होकर 1940 में लाहौर में घोषणा की थी कि उपमहाद्वीप में एक नहीं अपितु दो राष्ट्र हैं। जिन्नाह ने उस समय यह भी कहा था कि आजादी को उन दोनों के सह-अस्तित्व को इस स्वरूप में समायोजित करना होगा जो उन क्षेत्रों को स्वायत्तता और सार्वभौमिकता दे जिनमें मुसलमान बहुसंख्यक हैं।
1945 में जब राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव हुए तो उस समय तक जिन्नाह की मुस्लिम लीग मुसलमानों के हृदय में पूरा स्थान बना चुकी थी। यही कारण था कि पूरे देश के 93% मुसलमानों ने मुस्लिम लीग को इसलिए मत दिया था कि वह अलग पाकिस्तान बनाना चाहती थी। उस समय उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने सबसे अधिक मुस्लिम लीग का समर्थन सबसे अधिक किया था। आज भी मुसलमान जिस प्रकार ओवैसी या उसके जैसी अन्य मुस्लिमपरस्त पार्टियों के प्रति अपना ध्रुवीकरण करता जा रहा है उसके दृष्टिगत यह समझ लेना चाहिए कि खतरा 1947 से भी अधिक गहरा है। उस समय मुसलमानों ने यह नहीं देखा था कि पाकिस्तान यदि बनेगा भी तो उसका अपना क्षेत्र उस भावी पाकिस्तान में जाएगा या नहीं ? उन्होंने केवल यह देखा था कि हम एक अलग देश लेंगे और अपने उस देश में जाकर रहेंगे। यही स्थिति आज भी बनती जा रही है।
जैसे ओवैसी आज सभी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों को झांसा देने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा है, वही स्थिति उस समय जिन्ना की थी। उसने भी कांग्रेस को झांसा देने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। जैसे कांग्रेस उस समय जिन्नाह के झांसे में आकर उसे कायदे आजम कहे जा रही थी, वही स्थिति आज के धर्मनिरपेक्ष दलों की है। वे ओवैसी के झांसे में आ रहे हैं और उसे फिर एक ‘कायदे आजम’ बनाने बनाते जा रहे हैं। जिन्नाह उस समय वास्तविक महत्व प्राप्त करने के लिए अवास्तविक मांगों को सौदेबाजी के रूप में कॉंग्रेस के सामने रख रहा था? बस ,यही वह स्थिति थी जिसे कांग्रेस समझ नहीं पा रही थी या समझ कर भी समझने का प्रयास नहीं कर रही थी।
आज भी ओवैसी अपने वास्तविक उद्देश्य को पीछे रखकर अवास्तविक मांगों को सामने लाने का प्रयास कर रहा है।
हमें यह तथ्य भी ध्यान रखना चाहिए कि महायुद्ध के दौरान भारत छोड़ो आंदोलन छेडऩे के अपराध में जेल में बंद नेहरू और उनके सहयोगियों को जून में रिहा कर दिया गया और सर्दियों में प्रांतों और केंद्र के चुनाव हुए जो 1935 के मताधिकार पर ही आधारित थे। नतीजे कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी की तरह थे और होने भी चाहिए थे।
मुस्लिम लीग न सिमटी थी और न ओझल हुई थी। अपने संगठन को खड़ा करने के, उसकी सदस्यता बढ़ाने के, अपना दैनिक पत्र निकालने के और जिन प्रांतीय सरकारों से अब तक उन्हें दूर रखा गया था उनमें अपने कदम जमाने के कामों में जिन्नाह ने महायुद्ध के दौर का सदुपयोग किया था। 1936 में एक ठंडा पड़ चुका उबाल कहकर नकार दी गई मुस्लिम लीग ने 1945-46 में भारी जीत प्राप्त की। उसने केंद्र के चुनावों में हर एक मुस्लिम सीट और प्रांतीय चुनावों में 89 प्रतिशत मुस्लिम सीटें जीत लीं। मुसलमानों के बीच अब उनकी प्रतिष्ठा वैसी हो चली थी जैसी हिंदुओं में कांग्रेस की थी।
देश में नए जिन्नाह का अवतार हो चुका है और हम आज भी गांधीवाद की आरती उतारने में लगे हैं। ‘जय भीम और जय मीम’ के माध्यम से नया जिन्नाह अपना सपना साकार करता जा रहा है। उसने घोषणा कर दी है कि अब वह बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी अपना दमखम दिखाएगा। केवल 5 विधायकों के आ जाने से उसका कितना हौसला बढ़ गया है ? यह समझने की आवश्यकता है। वैसे इन पांचों विधायकों ने हिंदुस्तान शब्द न बोलकर हिंदुस्तान के हिंदुओं को यह बता दिया है कि अब समय सोने का नहीं अपितु जागने का है। इसे यदि हामिद अंसारी जैसे लोग भारत का ‘आक्रामक राष्ट्रवाद’ कहें तो कहते रहें, अंततः सबसे पहले देश को बचाने की चिंता करना प्रत्येक देशवासी का काम है। हामिद अंसारी भी यह समझ लें कि अब भारत किसी भी व्यक्ति को गांधीवादी दृष्टिकोण अपनाकर अपने कलेजा को खाने की अनुमति नहीं दे सकता।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत