ओ३म्
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श्री दौलत सिह राणा जी देहरादून के अग्रणीय ऋषि दयानन्द जी के भक्तों में से एक हैं। आप देहरादून के रैफल होम की कालोनी ‘शिव-सदन’ में अपनी पत्नी श्रीमती उषा राणा जी के साथ निवास करते हैं। आपकी एक पुत्री है जो पीएनबी बैंक में अधिकारी है। वह देहरादून से लगभग100 किमी. दूर पर्वतीय क्षेत्र में कार्यरत है। राणा जी अपने आयु के83 वें वर्ष में चल रहे हैं। आप को लगभग12 वर्ष की आयु में पौड़ी में रहते हुए कुष्ठ रोग हो गया था। इस कारण आपको उपचार के लिये देहरादून आना पड़ा। छूत का रोग होने के कारण उनके गांव व परिवारजनों ने उनकी उपेक्षा की थी। राणा जी के माता-पिता बचपन में रोग होने से पूर्व मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। अतः आपको अनेक प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक वेदनायें सहन करनी पड़ी। अपने आत्म एवं मानसिक बल से आपने सभी कष्टों का धैर्य एवं साहस के साथ सामना किया। आपने देहरादून में एक ईसाई संस्था रैफेल होम में अपना निःशुल्क उपचार कराया और कई वर्ष के उपचार के बाद आप स्वस्थ हो गये।
उपचार के दिनों में आप को यहां कर्णप्रयाग पर्वतीय स्थान के एक शिक्षक श्री उदय सिंह जी मिले। वह सत्यार्थप्रकाश एवं आर्यसमाज से प्रभावित व्यक्ति थे। राणा जी की पढ़ने में गहरी रुचि को देखकर उन्होंने उन्हें सत्यार्थप्रकाश पढ़ने की प्रेरणा की थी। राणा जी ने अपने चिकित्सालय के पुस्तकालय में सत्यार्थप्रकाश ढूंढा जो उन्हें प्राप्त हो गया। लगभग 20 वर्ष की आयु में राणा जी ने उसे पढ़ा और वह उससे अत्यन्त प्रभावित हुए। उनमें आर्यसमाज के सत्संगों में जाने की इच्छा हुई। मास्टर उदय सिंह जी ने उन्हें आर्यसमाज धामावाला का पता बताया। वह आर्यसमाज के प्रत्येक सत्संग में आने लगे। कुष्ठ रोगी होने के कारण वह मन्दिर के हाल में न बैठ कर सभागार के बाहर ही बैठ कर सत्संग सुनते थे। वर्षों बीत गये। उनका आत्मा वैदिकधर्म और आर्यसमाज की विचारधारा के संस्कारों से युक्त हो गया। बाद में आर्यसमाज के विद्वान और आर्यसमाज धामावाला देहरादून के सदस्य प्रा. अनूप सिंह जी ने राणा जी की प्रतिभा को जाना। जब सन् 1994-1995 में प्रा. अनूप सिह जी आर्यसमाज धामावाला में अधिकारी थे, उनकी प्रेरणा से राणा जी का आर्यसमाज में प्रथमवार प्रवचन हुआ था जिसे सभी सदस्यों व श्रोताओं ने पसन्द किया था। इसके बाद प्रा. अनूप सिंह जी तथा आर्यसमाज के प्रशासक श्री राजेन्द्र काम्बोज जी के कार्यकाल वर्ष 1995-1995 में समय समय पर राणा जी के आर्यसमाज में प्रवचन हुए। हमने उनके प्रवचन वेद प्रचार समिति के सत्संगो में भी समय समय पर कराये। वह हमारे साथ सन्1997 में हिण्डोन सिटी में आयोजित पं. लेखराम बलिदान शताब्दी समारोह में भी गये थे। वहां उनका एक संक्षिप्त प्रवचन भी हुआ था। आर्य साहित्य को पढ़ने का उनको शौक है और अब भी वह स्वाध्याय करते हैं।
श्री राणा जी एक अच्छे कवि भी हैं। वह हिन्दी एवं गढ़वाली में कवितायें लिखते हैं। उनकी कवितायें वीर रस प्रधान होती हैं। पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम जी ने भी रैफल होम में आयोजित एक समारोह में राणा जी की उनके जीवन पर एक कविता सुनी तो वह गदगद हो गये थे और उन्होंने अपने आसन से उठ कर और राणा जी के समीप माइक के पास जाकर उनके कन्धे पर हाथ रखकर अंग्रेजी शब्दों में अनेक प्रंशसात्मक शब्द कहे थे।
राणा जी रैफेल होम में एक छोटे से निवास में रहते हैं। आपका निवास अत्यन्त स्वच्छ एवं साज सज्जा में युक्त रहता है। विदेशी अतिथियों ने अनेक बार इसके चलचित्र वा वीडीयों भी बनाये हैं जिसे रैफेल होम की ओर से विदेशों में दिखाया गया है। राणा जी के स्पान्सर यूरोप के देशों में हैं। उनका कक्ष इतना विशेष है कि उसमें राष्ट्रपति श्री वी.वी. गिरी जी भी आ चुके है। एक बार पूर्व राष्ट्रपति श्री नीलम संजीवरेड्डी जी भी आये थे। पूर्व राष्ट्रपति की धर्मपत्नी बेगम आबिदा अहमद भी पधार चुकी हैं। विदेशी अतिथि अब भी प्रायः आते रहते हैं। सभी लोग राणा जी से मिलकर और उनके विचारों को सुनकर प्रसन्न होते हैं। राणा जी ने धर्म रक्षा के लिये निकटवर्ती स्थान पर एक पौराणिक मन्दिर के निर्माण की प्रेरणा व सहायता भी की थी जिससे निर्धन व असहाय लोगों को विधर्मी बनने से रोका जा सके। अनेक लोगों को प्रेरणा कर आपने विधर्मी होने से रोका भी है।
राणा जी की ऋषि भक्ति अद्वितीय है। जिन विपरीत परिस्थितियों ने राणा जी ने अपना जीवन व्यतीत किया है उसमें सभी व्यक्ति जी नहीं सके। उनका जीवन संघर्ष, पीड़ाओं, उपेक्षाओं, अभावों तथा अन्याय आदि से भरा हुआ जीवन है। ऐसा होने पर भी उन्हें किसी से द्वेष नहीं है। वह ईश्वर के सच्चे उपासक हैं। देश भक्ति की भावनाओं से हर क्षण सराबोर रहते हैं। देश की वर्तमान स्थिति से वह चिन्तित रहते हैं। उन्हें ज्ञात है कि हिन्दू जाति का भविष्य अत्यन्त अवनति को प्राप्त हो सकता है। हिन्दुओं की अपने हितों के प्रति उपेक्षा रखना, परस्पर संगठित न होना आदि अनेक बातें उन्हें अधिक कष्ट देती हैं। हम जैसे अपने मित्रों को वह अपनी पीड़ा बताते हैं। इसका समाधान न तो आर्यसमाज कर सकता है और न ही हिन्दू संगठन ही कर रहे हैं। भारत के प्रधान मंत्री, गृहमंत्री और श्री आदित्य नाथ योगी जी की क्षमता में उनका विश्वास है व वह उनके प्रशंसक हैं। उनके अनेक गुण हैं जिन सबका यहां उल्लेख यहां विस्तार भय से नहीं कर पा रहे हैं।
हमने आज श्री दौलत सिंह राणा जी से अपनी भेंट का परिचय देने के लिये यह कुछ पंक्तियां लिखी हैं। राणा जी से आज अनेक विषयों पर बातें र्हुइं। उनका जीवन अत्यन्त कष्टपूर्ण हैं। दो वर्ष पूर्व उनकी धर्मपत्नी के पैर में सैपटिक रोग हो जाने के कारण उनके उस पैर को घुटने से ऊपर से कटवाना पड़ा था। अभी दूसरा कृत्रिम पैर लगने की प्रक्रिया चल रही है। पुत्री भी बाहर रहती है और साप्ताहिक अवकाश के दिन आ पाती है। ऐसी स्थिति में राणा जी व उनकी पत्नी को अनेक कष्ट उठाने पड़ रहे हैं। आर्यसमाज से भी कभी कोई उनका समाचार जानने व सहानुभूति के दो शब्द कहने पहुंचता नहीं है। आचार्य डा. धनंजय गुरुकुल पौंधा, श्री प्रेमप्रकाश शर्मा मंत्री वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून हमारे साथ उनके निवास पर उत्सव आदि की जानकारी देने जाते रहे हैं। आर्य विद्वान डा. नवदीप कुमार भी कुछ वर्ष पूर्व उनसे जाकर मिले थे। 20-25 वर्ष पूर्व एक दो बार उनके निवास पर आर्यसमाज के सत्संग में हमारे अनेक मित्र उनके निवास पर गये थे। हम श्री दौलत सिंह राणा जी के स्वस्थ एवं सुखी जीवन की कामना करते हैं। इस परिचय को हम यहीं पर विराम देते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य