हिन्दी सिनेमा, जिसे बॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दी भाषा में फ़िल्म बनाने का उद्योग है। बॉलीवुड नाम अंग्रेज़ी सिनेमा उद्योग हॉलिवुड के तर्ज़ पर रखा गया है। हिन्दी फ़िल्म उद्योग मुख्यतः मुम्बई शहर में बसा है। ये फ़िल्में हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और दुनिया के कई देशों के लोगों के दिलों की धड़कन हैं। हर फ़िल्म में कई संगीतमय गाने होते हैं। इन फ़िल्मों में हिन्दी की “हिन्दुस्तानी” शैली का चलन है। हिन्दी और उर्दू (खड़ीबोली) के साथ साथ अवधी, बम्बईया हिन्दी, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी बोलियाँ भी संवाद और गानों में उपयुक्त होते हैं। प्यार, देशभक्ति, परिवार, अपराध, भय, इत्यादि मुख्य विषय होते हैं। ज़्यादातर गाने उर्दू शायरी पर आधारित होते हैं।1895 में लूमियर ब्रदर्स ने पेरिस सैलून सभाभवन में इंजन ट्रेन की पहली फिल्म प्रदर्शित की थी। इन्हीं लूमियर ब्रदर्श ने 7 जुलाई 1896 को बंबई के वाटसन होटल में फिल्म का पहला शो भी दिखाया था। एक रुपया प्रति व्यक्ति प्रवेश शुल्क देकर बंबई के संभ्रात वर्ग ने वाह-वाह और करतल ध्वनि के साथ इसका स्वागत किया। उसी दिन भारतीय सिनेमा का जन्म हुआ था। जनसमूह की जोशीली प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित होकर नावेल्टी थियेटर में इसे फिर प्रदर्शित किया गया और निम्न वर्ग तथा अभिजात्य दोनों वर्गों को लुभाने के लिए टिकट की कई दरें रखी गईं। रूढ़िवादी महिलाओं के लिए जनाना शो भी चलाया गया। सबसे सस्ती सीट चार आने की थी और एक शताब्दी बाद भी यही चवन्नी वाले ही सिनेमा की शोभा बढ़ाते थे।
बॉलीवुड मनोरंजन के साथ ही सामाजिक संदेश देने का एक बड़ा माध्यम है। एक समय था जब हिन्दी फिल्म जगत में एक से बढ़कर एक पारिवारिक और धार्मिक फिल्मों से भारतीय संस्कृति को जीवित रख, आने वाली युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कारों से अवगत करवाया जाता था। परन्तु जैसे-जैसे फिल्म जगत में पश्चिमी सभ्यता और तस्करों का शिकंजा फिल्म जगत पर हावी होता गया, भारतीय संस्कृति लगभग गायब ही हो गयी। तस्करों का बोलबाला होने से नायिका केवल शो-पीस एवं आकर्षण वस्तु बन कर रह गयी है और भारतीय नारी की गरिमा लुप्त हो गयी।
काफी दिनों से बॉलीवुड में जड़ जमा चुकी एक विचारधार, जो अपने को प्रगतिशील, उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष बताती है, हिन्दू धर्म के खिलाफ काम करती है। यह विचारधारा प्रगतिशीलता और अंधविश्वास दूर करने के नाम पर हिन्दुओं की धार्मिक आस्था पर हमला करती हैं, वहीं दूसरी तरफ इस्लाम के प्रति उदासीन बने रहती है। यहां तक कि उनके अंधविश्वास को धार्मिक आस्था का रूप देकर फिल्म में पेश करती हैं और उचित ठहराने की कोशिश करती है।
बॉलिवुड में हिन्दुओं को बदनाम करने के खास मकसद से फिल्में बनाई जाती हैं और उसमें विदेशी पैसे लगाए जाते हैं। पटकथा से लेकर संवाद तक ऐसे तैयार किए जाते हैं, जो हिन्दुओं की धार्मिक आस्था के खिलाफ होते हैं। वहीं इस्लाम को बढ़ावा देते नजर आते हैं, वहीं हिन्दू धर्म के प्रतीकों का मजाक उड़ाया जाता है। हिन्दू देवी-देवताओं, पुजारी और मंदिरों को उपहास के रूप में पेश किया जाता है और उनकी नकारात्मक छवि बनाने की कोशिश की जाती है। हिन्दुओं की आस्था को खुलेपन और धर्मनिरपेक्षता की भेंट चढ़ा दी जाती है।
आज समय बदल रहा है। @SecularBolly जैसे ट्विटर एकाउंट के अलावा बॉलीवुड में ऐसे फिल्म निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और अभिनेत्री सामने आ रहे हैं, जो वर्षों से पैर जमा चुके सेक्युलरों को खुली चुनौती दे रहे हैं और उनका पर्दाफाश कर रहे हैं। यही वजह है कि आज बॉलीवुड में भी स्वच्छ भारत अभियान शुरू हो चुका है। हिन्दू विरोधी फिल्म बनाने पर खुलकर विरोध हो रहा है। सोशल मीडिया में उनके बहिष्कार के लिए ट्रेंड चलाया जा रहा है, जिसका नतीजा है कि आज फिल्में फ्लॉप हो रही हैं। फिल्म ‘लक्ष्मी’ इसका ताजा उदाहरण है।