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महत्वपूर्ण लेख संपादकीय

हामिद अंसारी के दोगले राष्ट्रवाद का उभरता रोग और उसका उपचार

 

स्वतंत्र भारत में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को जिस प्रकार अपने राजनीतिक चिंतन का मूल केंद्र बनाकर भारत ने आगे बढ़ना आरंभ किया वह हमारे देश के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हुआ है । हमारे राजनीतिज्ञों ने स्वाधीनता प्राप्ति के तत्काल पश्चात मुस्लिम तुष्टीकरण का नाम ही धर्मनिरपेक्षता मान लिया । राजनीति के विषय में यह सर्व स्वीकृत तथ्य है कि यदि राजनीति पक्षपाती होकर तुष्टीकरण की नीति अपनाती है तो वह पथ भ्रष्ट हो जाती है । जिससे समाज में अराजकता, अस्तव्यस्तता और अन्य प्रकार की सामाजिक विसंगतियां उत्पन्न होती हैं। नागरिकों में परस्पर वैमनस्यता का भाव बढ़ता है और सामाजिक विसंगतियां दिन प्रतिदिन विस्फोटक होती चली जाती हैं । राजनीतिज्ञों के दृष्टिकोण में जब सांप्रदायिकता घुस जाती है और सांप्रदायिक आधार पर वे व्यक्ति – व्यक्ति के मध्य अंतर करने लगते हैं तो नागरिकों में भी यह भाव तेजी से विकास करता है । धर्मनिरपेक्षता के पाले से मारे हुए नेताओं के इसी चिंतन ने भारत में पिछले 74 वर्ष में बहुत सारी सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों को जन्म दिया है। कई नेता इन्हीं विसंगतियों का लाभ उठाकर आगे बढ़ने में सफल हुए हैं। भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी इन विसंगतियों और धर्मनिरपेक्षता की इसी मूर्खतापूर्ण अवधारणा का लाभ उठाकर देश के उपराष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंच गए । यद्यपि उन्होंने एक बार नहीं कई बार भारत विरोधी बयान दिए हैं । जिनसे मुस्लिम सांप्रदायिकता को प्रोत्साहन मिलता हुआ स्पष्ट दिखाई देता है ।


उपराष्ट्रपति पद से विदा होने के उपरांत हामिद अंसारी ने जिस प्रकार के बयान दिए हैं यदि उनका सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि वह किसी अदृश्य भय से ग्रसित हैं। लगता है उनका ‘पापबोध और पापबोझ’ अब उन पर हावी होने लगा है । वह समझ गए लगते हैं कि इतिहास उनका किस प्रकार के उपराष्ट्रपति के रूप में चित्रण करेगा ? क्योंकि अब ‘मौलाना आजाद छाप’ इतिहास तो अतीत की बात होने जा रहा है । अब इतिहास उन निष्पक्ष लोगों के माध्यम से लिखा जाएगा जो दिन को दिन और रात को रात कहेंगे । ऐसे में हामिद अंसारी के राष्ट्र विरोधी विचार जब समीक्षित होकर इतिहास की कसौटी पर कसे जाएंगे तो निश्चय ही उनका स्थान वह नहीं होगा जो वह ‘मौलाना आजाद छाप’ इतिहास में प्राप्त कर सकते थे । हामिद अंसारी कई बार यह कह चुके हैं कि इस समय देश की संविधानिक संस्थाएं खतरे में हैं ।वास्तव में यह खतरा कुछ भी नहीं है । कई स्थानों पर अब मुस्लिम तुष्टीकरण को न अपनाकर संविधान के अनुसार काम किया जा रहा है। जिससे हामिद अंसारी जैसे लोगों को मलाई मिलनी बंद हो गई है। बस, उस मलाई के छीने जाने का गम ही इन्हें सताये जा रहा है। अब श्री अंसारी ने राष्ट्रवाद के साथ आक्रामकता को जोड़ा है और इसे बीमारी बताया है। आपको याद होगा कि श्री अंसारी पूर्व में राष्ट्रवाद को ‘जहर’ भी बता चुके हैं।


अब 20 नवंबर को श्री अंसारी ने ‘धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद’ को दो भयंकर बीमारियों के रूप में निरूपित किया है । जिससे राजनीति के कुरुक्षेत्र में भूचाल आ गया है। सभी योद्धा पक्ष विपक्ष में शस्त्र लेकर मैदान में उतर आए हैं। श्री अंसारी जैसे लोगों का अधिक बोलने का एक उद्देश्य यह भी होता है कि वह कुछ न कुछ ऐसा बोलें जिससे उनका नाम मीडिया में छाए और यदि ऐसा है तो श्री अंसारी अपने उद्देश्य में सफल हो गए हैं।
वास्तव में श्री अंसारी और उन जैसे अनेकों लोग जिस प्रकार के दोगले राष्ट्रवाद को अपनाकर हिंदू विरोध की राजनीति करते रहे हैं उनके लिए शुद्ध राष्ट्रवाद और निष्पक्ष शासन व्यवस्था निश्चय ही एक बीमारी दिखने स्वाभाविक हैं। देश में इस समय राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ी जा रही है। जो इस देश के हितों के अनुकूल है और इस देश के प्रत्येक नागरिक को इस बात के लिए प्रेरित करती है कि वह जाति ,संप्रदाय, क्षेत्र, भाषा आदि के संकीर्ण विचार से ऊपर उठकर केवल और केवल राष्ट्र के लिए सोचे। वह अपने लिए या अपनी जाति या संप्रदाय के लिए न सोच कर सबके लिए सोचे। राजनीति में राष्ट्रवाद की इस परिभाषा के अनुसार संकीर्णता के स्थान पर व्यापक दृष्टिकोण को स्थान दिया जा रहा है और यही पंथनिरपेक्षता व निष्पक्ष शासन व्यवस्था का सबसे पहला और सबसे प्रमुख उद्देश्य है।
जहां तक आक्रामक राष्ट्रवाद की बात है तो देश में जिस प्रकार का राष्ट्रवाद इस समय नया स्वरूप ले रहा है , वह इस देश की धर्म ,संस्कृति और इतिहास की परंपराओं को अक्षुण्ण और सुरक्षित बनाए रखने के लिए आत्मरक्षा में उठाया गया एक ऐसा सराहनीय कार्य है जिससे भारत भारत के रूप में जीवित रह सकेगा और सम्मान के साथ विश्व का नेतृत्व करने के लिए अपने आप को समर्पित कर सकेगा। निश्चय ही भारत-पाकिस्तान से भय खाकर अपने इस्लामीकरण की प्रक्रिया को तेज करने वाला ना होकर पाकिस्तान जैसे उन सभी शत्रु राष्ट्रों का विनाश करने के लिए उठ खड़ा होने वाला भारत होगा जो विश्व गुरु के सिंहासन की ओर बढ़ने का साहस रखना रखने वाला होगा ।
राष्ट्रवाद की नई किंतु वास्तविक परिभाषा से उन लोगों के माथे पर सलवटें पड़नी स्वाभाविक हैं जो अब तक की दोगली व्यवस्था के कारण कुछ विशेष अधिकार प्राप्त करते रहे थे। निश्चय ही श्री अंसारी उसी दोगले राष्ट्रवाद की अवधारणा को बनाए रखना चाहते हैं जिससे देश का इस्लामीकरण करने में उन्हें सुविधा हो सके।
देश के पूर्व उपराष्ट्रपति श्री अंसारी ने अपने उपरोक्त विचार कॉन्ग्रेस सांसद शशि थरूर की किताब ‘The Battle of Belonging’ के आभासी विमोचन के अवसर पर व्यक्त किए हैं। उन्होंने देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि देश ऐसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विचारधाराओं की वजह से ख़तरे में नज़र आ रहा है जो उसे ‘हम और वह’ की श्रेणी में विभाजित करने का प्रयास कर रही हैं।
महामारी को केंद्र में रखते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा, “कोरोना से पहले ही हमारा देश दो बड़ी महामारियों को झेल चुका है, धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद। धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद की तुलना में देशभक्ति कहीं अधिक सकारात्मक अवधारणा है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि यह सांस्कृतिक और सैन्य दृष्टिकोण से रक्षात्मक है।”
अंसारी ने कहा, “4 वर्षों की छोटी अवधि में भारत ने उदार राष्ट्रवाद के बुनियादी दृष्टिकोण से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राजनीतिक छवि निर्मित करने तक एक लंबी यात्रा तय की है, जो सार्वजनिक क्षेत्र में पूर्णतः स्थापित हो चुकी है।” उन्होंने कहा कि अभी तक हमारे व्यावहारिक मूल्य एक बहुआयामी समाज की अस्तित्वगत वास्तविकता, लोकतांत्रिक राजनीति और धर्मनिरपेक्ष राज्य की तरह प्रस्तुत किए जाते थे। इन सारी बातों को स्वतंत्रता आंदोलन तक स्वीकार किया जाता था, यह बातें संविधान के समानांतर थीं और संविधान की प्रस्तावना में निहित थीं। भारतीय समाज का बहुआयामी पहलू इसमें विद्यमान 4635 समुदायों से ही स्पष्ट होता है।
महामारी को उल्लेख करते हुए हामिद अंसारी ने कहा, “कोविड 19 एक भयावह महामारी है लेकिन इसके पहले हमारा समाज दो महामारियों का शिकार हो चुका है, धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद। धार्मिक अवधारणा को धर्म के आधार पर किए जाने वाले ढोंग के रूप में परिभाषित किया जा रहा है और आक्रामक राष्ट्रवाद के बारे में पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है। यह विचारधारा के लिहाज़ से जहर जैसा है जो किसी संकोच के बिना लोगों के व्यक्तिगत अधिकारों पर अतिक्रमण करता है और अधिकारों को क्षीण करता है।”
वैसे श्री अंसारी को यह स्पष्ट होना चाहिए कि भारतवर्ष में इस्लामिक शासन व्यवस्था सबसे अधिक अन्यायकारी और मजहबी रही है। जिसने इस देश में लाखों नहीं करोड़ों लोगों को उत्पीड़ित किया है। इतिहास की इस महाभयंकर बीमारी पर भी श्री अंसारी जैसे लोगों को बोलना चाहिए और यह स्वीकार करना चाहिए कि अब इस प्रकार की मजहबी शिक्षा और राजनीति पर पूर्ण प्रतिबंध लगना चाहिए, जो किसी भी संप्रदाय के प्रति अन्याय को प्रोत्साहित करने वाली हो या लव जिहाद जैसी घृणास्पद सोच के वशीभूत होकर किसी संप्रदाय की बहू बेटियों के साथ अत्याचार करने के लिए किसी वर्ग विशेष को प्रेरित करती हो।
श्री अंसारी जैसे लोगों को इस बात पर भी अपने ही स्पष्ट विचार देने चाहिए कि जनसंख्या विस्फोट इस देश की सबसे भयंकर बीमारी है। जो अभी कैंसर की भांति भीतर ही भीतर पनपते पनपते अपनी अंतिम अवस्था की ओर जा रही है। निश्चय ही इस महा भयंकर बीमारी की चपेट में आने से पहले भारत को जनसंख्या नियंत्रण कानून लाकर अपनी रक्षा करनी चाहिए । यदि श्री अंसारी जैसे लोग इस प्रकार की स्पष्ट और राष्ट्रहित को साधने वाली राजनीति करते हुए दिखाई देंगे तो निश्चय ही वह इतिहास की दृष्टि में सम्मानित स्थान प्राप्त कर पाएंगे और जो भी उन्होंने अब तक किया है उसकी क्षतिपूर्ति करने में भी सफल हो जाएंगे। इतना ही नहीं, उनके भीतर आज जिस प्रकार का भय दिखाई दे रहा है, उनके इस प्रकार के आचरण से वह भी दूर हो जाएगा।

राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

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