सत्यार्थ प्रकाश : सृष्टि उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय विषय
*सत्यार्थ प्रकाश*
अथ अष्टम समुल्लास
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ऋग्वेद- मंडल-१०-सूक्त-१२९-मन्त्र-७
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तर्ज-संग्राम जिंदगी है—
ईश्वर की वेद वाणी,
कर आचमन ओ प्राणी।
जिससे बना जगत यह,
पा थाह बन के ज्ञानी।
ईश्वर की वेदवाणी,
कर–
ऋग्वेद दशवें मंडल का,
सूक्त एकसौ उन्तीस।
है मन्त्र सातवाँ जिसका,
विविध रचना जगदीश।
वही ही रचयिता सृष्टि,
स्वामी परम महा ज्ञानी।।
ईश्वर की वेदवाणी—-
१- हे अंग प्यारे मानव,
तू जान प्रभु वह प्यारा।
उससे जगत बना यह,
स्थित, प्रलय हो सारा।
उससे पृथक न कोई,
विभु एक वह लासानी- (अद्वितीय)।।
२- बनने से पहले सारा,
अंधकार ही घना था।
था रात्रि रूप भारा,
कारण प्रकृति पड़ा था।
किया कार्यरूप परिणित,
सामर्थ्य महा विज्ञानी।।
ईश्वर की वेदवाणी–
३- रवि शशि जो तेज वाले,
या सूक्ष्म वा विशाले।
इस सृष्टि से भी पहले,
वर्तमान देखा भाले।
हर काल प्रभु है रहता,
आधार बन निशानी (परमचेतना)।।
ईश्वर की वेद वाणी—-
आओ करें हम उसकी,
अति प्रेम से यूँ भक्ति।
दे हवि मगन हो अंतर,
भर लें विज्ञान शक्ति।
हो विमल ध्याते ध्याते,
खो जाएं बनकर ध्यानी।।
ईश्वर की वेद वाणी—
-दर्शनाचार्या विमलेश बंसल आर्या-दिल्ली
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ओम नमस्ते , वेद वाणी से बढ़कर तो कोई दीवानी नहीं है धन्य है वह महापुरुष महर्षि दयानंद सरस्वती जी जिन्होंने हमारी आंखों से पर्दा उठाने के लिए अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश लिखा जिन के चरणों में कोटि-कोटि नमन