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इतिहास के पन्नों से भयानक राजनीतिक षडयंत्र

इतिहास पर गांधीवाद की छाया, अध्याय -16 (1) गांधीवाद और डॉक्टर अंबेडकर

 

गांधीवाद और डॉक्टर अम्बेडकर

आजकल ‘सोशल मीडिया’ पर ऐसी पोस्ट अक्सर आपको पढ़ने को मिल जाएंगी जिनको देखकर लगता है जैसे डॉ अम्बेडकर जी मुस्लिम धर्म की मान्यताओं से बहुत अधिक सहमत थे और मुस्लिम व दलित समाज के लोग ही वास्तविक भारतीय हैं , शेष सभी लोग विदेशी हैं। ऐसी पोस्ट डालने वाले माँ भारती से द्वेष रखते हैं जो कि जानबूझकर देश में ऐसा परिवेश सृजित कर रहे हैं कि बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के विषय में ऐसा लगने लगे जैसे वह ब्राह्मण विरोधी और मुस्लिम प्रेमी थे। जबकि सच इसके विपरीत है । बाबासाहेब ने जहाँ तथाकथित उस ब्राह्मणवाद का विरोध किया जो किसी वर्ग विशेष के अधिकारों का हनन करने की व्यवस्था करता था , वहीं उन्होंने वंचित और दलित समाज को मुस्लिमों के जाल में न फंसने के लिए भी समय-समय पर आवश्यक चेतावनी दी। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में पाकिस्तान के बनाने में मुस्लिमों के विचारों की गहन समीक्षा की ।


जो लोग आज हरिजनों को मुस्लिम प्रेम का पाठ पढ़ा रहे हैं और इस सारे कार्य को बाबासाहेब अम्बेडकर के विचारों के अनुकूल सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं , उन्हें यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए । इसके साथ – साथ जो लोग इस प्रकार के षड़यंत्र को भारत में असफल करना चाहते हैं , उन्हें भी तर्क देने के लिए इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए । क्योंकि इसमें बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने बहुत कुछ ऐसा स्पष्ट किया है जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है , जब यह पुस्तक लिखी गई थी। सचमुच इस पुस्तक में उन्होंने बहुत कुछ स्पष्ट किया है।

मुस्लिम भाईचारा केवल मुसलमानों के लिए है

मुस्लिमों के भ्रातृभाव की चर्चा अक्सर होती है और इस मजहब को अमन का धर्म सिद्ध करने का भी प्रयास किया जाता है । जबकि सच यह है कि मुस्लिमों का भाईचारा सार्वभौम नहीं है , ना ही यह सार्वजनीन है । यह एक मुस्लिम का दूसरे मुस्लिम के प्रति है , इससे अन्यत्र किसी काफिर या विधर्मी के लिए नहीं।
अपनी उपरोक्त पुस्तक में बाबासाहेब लिखते हैं — -”इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद यह करता है, वह बिल्कुल मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृत्व है। यह बंधुत्व है, परन्तु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्रुता ही है। इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है और स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता, क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती, बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा हैं। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे सोचना अत्यन्त दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन है, वहीं उसका अपना विश्वास है। दूसरे शब्दों में, इस्लाम सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट सम्बन्धी मानने की इज़ाजत नहीं देता। सम्भवतः यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे एक महान भारतीय, परन्तु सच्चे मुसलमान ने, अपने, शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया।”
बाबा साहेब की इस चेतावनी को हमारे दलित भाइयों को इस समय अवश्य समझना चाहिए । जिन लोगों ने 1947 में इस चेतावनी को नहीं समझा था उन्होंने पाकिस्तान या बांग्लादेश में जाकर या रहकर इसके घातक परिणाम भुगतकर देख भी लिए हैं । इतना ही नहीं अभी हरियाणा के मेवात में जो कुछ हमारे हरिजन भाइयों के साथ मुस्लिमों ने किया है वह भी इसी असावधानी का परिणाम है कि लोगों ने बाबा साहेब की चेतावनी को समझा नहीं।

 

डॉ राकेश कुमार आर्य

सम्पादक : उगता भारत

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