एक पुरानी फिल्म “अदालत” का बहुचर्चित गीत “सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया…” कांग्रेस पर शत-प्रतिशत चरितार्थ हो रहा है। आज एक के बाद एक कांग्रेसी पार्टी के पतन पर जो चीख-पुकार कर रहे हैं, असली जिम्मेदार ये ही लोग हैं, जो सीताराम केसरी को अध्यक्ष पद से हटाकर सोनिया गाँधी को अध्यक्ष बनाने के समय उठी आवाज़ को दबाने में परिवार की गुलामी करते हुए, विरोध स्वरों को मुखरित नहीं होने दिया। पार्टी में इतने दिग्गज नेता होते हुए गुलामों की भांति अनुभवहीन गाँधी परिवार की गुलामी करना कांग्रेस को भारी पड़ रहा है।
2004 में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाए जाने का भी विरोध हुआ, लेकिन नगाड़े की आवाज़ में तूती की आवाज़ किसी ने नहीं सुनी। फिर 2014 में मोदी लहर को रोकने अरविन्द केजरीवाल को प्रोत्साहित करने पर भी विरोध को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। परिवार की गुलामी की पराकाष्ठा तो उस समय भी उजागर हो गयी थी, जब राहुल को अध्यक्ष बनाये जाने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, “जितनी जल्दी हो राहुल बाबा को अध्यक्ष बनाइए।” किसी ने लेशमात्र भी मंथन करने का साहस नहीं किया कि आखिर किस कारण विपक्ष खेमे से राहुल के अध्यक्ष बनाये जाने की आवाज़ उठी है? कदम-कदम पर हिन्दू और हिन्दुत्व को नीचा दिखाना, इस्लामिक आतंकवादियों को बचाने बेकसूर हिन्दू साधु और संतों को जेलों में डालना, जेलों में उन्हें प्रताड़ित करना, और भी अनेकों ऐसे कारण है जिनकी वजह से कांग्रेस की हालत चुनाव-दर-चुनाव पतली हो रही है।
हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों और कई राज्यों के उपचुनावों में लचर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस पार्टी को अपने ही दिग्गज नेताओं से तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इस कड़ी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के बाद अब यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम ने बयान दिया है। उन्होंने कांग्रेस के नीतिगत ढाँचे की आलोचना करते हुए कहा कि पार्टी के प्रदर्शन में पिछले कुछ समय से लगातार गिरावट ही आई है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को इतना साहसी बनना होगा कि गिरावट के उन कारणों को पहचाने और उन पर काम करे।
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम की तरफ से यह प्रतिक्रिया बिहार विधानसभा और मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश उपचुनाव में दयनीय प्रदर्शन के बाद सामने आई है। चिदंबरम ने कहा कि कांग्रेस ने अपनी संगठनात्मक क्षमता से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा। दैनिक भास्कर को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कांग्रेस के प्रदर्शन पर खुल कर आलोचना की। चिदंबरम ने कहा कि उपचुनाव इस बात प्रमाण हैं कि कांग्रेस की संगठनात्मक दृष्टिकोण से कोई पकड़ नहीं रह गई है। इतना ही नहीं जिन राज्यों में उपचुनाव हुए हैं उनमें कांग्रेस कमज़ोर ही हुई है।
महागठबंधन की हार अपना नज़रिया रखते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि महागठबंधन के जीतने की उम्मीदें थीं फिर भी हम जीतते जीतते हार गए। इन तमाम आलोचनात्मक दलीलों के बाद कांग्रेस पार्टी के लिए आशावादी नज़र आते हुए उन्होंने कहा कि कुछ ही समय पहले कांग्रेस ने हिन्दी बेल्ट 3 राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में जीत हासिल की थी।
इसके बाद एआईएमआईएम और सीपीआई (एमएल) का उल्लेख करते हुए चिदंबरम ने कहा कि छोटे दल अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं क्योंकि इनकी ज़मीनी स्तर पर पकड़ बेहद मजबूत है। कांग्रेस, राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन की सबसे कमज़ोर कड़ी साबित हुई है। पार्टी को तमाम तरह के बदलावों की ज़रूरत है और ऐसे बदलाव नहीं होने की सूरत में राजनीतिक नुकसान बढ़ता ही जाएगा।
अंत में कांग्रेस नेता ने कहा कि पार्टी ने अपनी संगठनात्मक क्षमता से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा। यह एक बड़ा कारण था कि कांग्रेस इतनी कम सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि भाजपा और उसके सहयोगी दल पिछले 20 वर्षों से चुनाव जीत रहे हैं। पार्टी को सिर्फ 45 उम्मीदवार उतारने चाहिए थे, शायद तब बेहतर नतीजे हासिल होते। इसके ठीक पहले कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी संगठन के शीर्ष नेतृत्व पर कई सवाल खड़े किए थे।
उनका कहना था कि हार दर हार के बाद पार्टी के नेतृत्व ने इस प्रक्रिया को अपनी नियति मान कर स्वीकार कर लिया। कपिल सिब्बल के इस बयान पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सलमान खुर्शीद ने आलोचना की थी। इन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि पार्टी के भीतर रह कर पार्टी को नुकसान पहुँचाने वाले नेता खुद बाहर चले जाएं। इसके अलावा लोकसभा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन ने भी कपिल सिब्बल के बयान पर प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि कपिल सिब्बल को पार्टी छोड़ ही देनी चाहिए।