पुराने युग में न जीएं
आधुनिकताओं को अपनाएं
डॉ. दीपक आचार्य9413306077
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नए जमाने की तकनीकों और विधियों का प्रयोग हर युग की जरूरत रही है और कोई सा युग ऎसा नहीं रहा जब कुछ न कुछ नया नहीं हुआ हो। दुनिया की प्रत्येक इकाई से लेकर जमाने भर के लिए हर युग ने कुछ न कुछ नया दिया ही है और इसका उपयोग क्रमशः जगती में उत्तरोत्तर व्यापक होता रहा है।परिवर्तन सृष्टि का नियम है और जो परिवर्तन स्वीकार योग्य हैं उन्हें स्वीकार किए जाने में प्रसन्नता होनी चाहिए। लेकिन कई परिवर्तन ऎसे होते हैं जो सहज स्वीकार्य नहीं हुआ करते हैं। हालांकि ऎसे परिवर्तनों में से कई सारे ऎसे होेते हैं जो व्यक्ति,परिवार, समाज और क्षेत्र तक के लिए लाभकारी होते हैं।
प्राचीन संस्कारों, परंपराओं और आदर्शों से बंधे रहकर जो भी परिवर्तन स्वीकार्य हैं उन्हें दिल से स्वीकार किया जाना चाहिए और इसके लिए कोई दूराग्रह या पूर्वाग्रह नहीं होने चाहिएं। लेकिन जिन परिवर्तनों से व्यक्ति, समाज और संस्कृति पर बुरा प्रभाव पड़ता है उन्हें स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
आज सृष्टि से परिवर्तनों का मायाजाल रह-रहकर परिभ्रमण कर रहा है। हमारे जीवन-व्यवहार, कथनी-करनी, कामकाज और रहन-सहन से लेकर सभी मामलों में व्यापक अंतर आ गया है।हमनें कई परिवर्तनों को स्वीकार किया है। इनमें कई परिवर्तन अच्छे हैं, और कुछेक आत्मघाती भी। इनके बावजूद हममें से कई सारे लोग ऎसे हैं जिन्होंने वे परिवर्तन स्वीकार नहीं किए हैं जो हमारे कामों, जीवनशैली और व्यवहार को आसान करते हैं तथा हमसे जुड़े हुए और लोगों से लेकर समाज और क्षेत्र तक के लिए लाभकारी व उन्नतिदायक हैं।आज संचार क्रांति का युग है और ऎसे में पूरी दुनिया सिमट गई है। इसके बावजूद हममें से कई लोग ऎसे हैं जो परंपरागत पोंगापंथी और यथास्थितिवादी हैं।
हालात ये हैं कि बहुत ही कम खर्च में हम टेलीफोन या मोबाइल का इस्तेमाल करके अपने कामों को आसान बना सकते हैं और वह भी नगण्य खर्च पर। लेकिन हममें से कई लोग ऎसे हैं जो इन सुविधाओं का उपयोग करने की बजाय प्रत्यक्ष मुलाकातों में विश्वास करते हैं और इसके लिए दूसरे लोगों को बेवजह तंग करने की मानसिकता रखते हैं।आज जो काम फोन या मोबाइल पर हो सकता है उसके लिए किसी को बुलाने या बुलाकर बातचीत करने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए लेकिन ऎसे पुरातन विचारों के लोग छोटी-मोटी बातों के लिए भी लोगों को बुलाकर बात करने की आदत अपना लेते हैं। इससे दूसरे लोगों को कितना श्रम, समय व अर्थ का अपव्यय होता है, तकलीफ होती है इसका अनुमान इन लोगों को नहीं होता।
यही कारण है कि नई तकनीकों के इस्तेमाल से परहेज रखने वाले लोग आम लोगों में लोकप्रियता प्राप्त नहीं कर पाते हैं और लोग इनसे मन ही मन कुढ़ते रहते हैं। इसी प्रकार आजकल कई बैठकें और आयोजन ऎसे हो गए हैं जो जमाने की रफ्तार को देखते हुए निरर्थक हैं और इन्हें टाईम वेस्ट करने के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता है।
यही स्थिति निमंत्रण पत्रों के वितरण को लेकर है। एसएमएस और संचार की कई सुविधाओं की बजाय घर-घर कार्ड पहुंचाने की समस्या कई बार इतनी विकराल हो जाती है कि यह दुनिया का सबसे घृणित और बोरियत भरा काम महसूस होता है।इन स्थितियों में पुरानी परंपराओं को समाप्त किया जाना समय की आवश्यकता हो गया है। यही स्थिति कई आयोजनों में होती है जहाँ सिर्फ औपचारिकताओं के निर्वाह के लिए जाने कितने ही पृष्ठों की प्रोसिडिंग का वाचन परंपरा हो गया है जिसमें काफी सारा समय नष्ट होता है।
यही स्थिति कम्प्यूटर और नेटवर्क के बारे में हैं। कई लोग जानबूझकर इनसे दूरी बनाए रखते हैं और यह धारणा बना लेते हैं कि इनसे कार्यभार बढ़ जाएगा और फिर दूसरे-दूसरे कामों में लगा दिया जाकर भार ढोने वाला बना दिया जाएगा।लेकिन ऎसे लोगों को अपनी अरुचि का खामियाजा बाद में भुगतना पड़ता है जब उन्हें इन आधुनिक विधाओें की अहमियत का पता चलता है।
इसी प्रकार कई सारे लोग हैं जो आधुनिक विधाओं को अपनाने से परहेज रखते हैं। इन सभी लोगों को एक उम्र के बाद इस बात का मलाल रहता है कि वे इन नई विधाओं से नहीं जुड़ सके और इस कारण उनकी तरक्की की रफ्तार इसी वजह से थमी रही अन्यथा वे इससे कई गुना ज्यादा कर सकते थे।
ऎसे खूब लोग हमारे आस-पास भी हैं जो मौका मिलने पर कुछ कर नहीं पाए और अब पछता रहे हैं। व्यक्तित्व के विकास एवं निर्माण को और अधिक आभामय बनाने के लिए अपनी जड़ों और केन्द्र से जुड़े रहकर जो भी सकारात्मक एवं रचनात्मक आधुनिक आयाम हमारे सामने हैं उन्हें सहज तथा प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करें तथा इनके माध्यम से अपनी बुनियाद को मजबूत करें।
हमेशा नई बातों को स्वीकारें, नई विधाओं को आत्मसात करें और अपने व्यक्तित्व को इतनी ऊँचाइयां प्रदान करें कि ये जमाने भर में प्रेरणा का संचार कर सकने की स्थिति में हों। आज वो लोग सबसे ज्यादा लोकप्रियता प्राप्त करते हैं जो औरों का कम से कम समय लेकर अपनी बात परोसते हैं और बेवजह किसी को भौतिक रूप से उपस्थिति के लिए बाध्य नहीं करते।