मध्यप्रदेश का अपनापन लिए शिवराज सिंह चौहान
मनोज कुमार
भाजपा के लिए, खासतौर पर शिवराजसिंह चौहान के लिए यह मानस बन जाता तो चुनौती भरा था लेकिन उन्होंने जनता के सामने जाकर अपनी बात रखी। जनकल्याणकारी योजनाओं से आम आदमी की भलाई और प्रदेश के विकास का अपना एजेंडा रखा।
आम धारणा है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है। इस बीना पर देखें तो शिवराज सिंह चौहान इस धारणा को खंडित करते हुए चुनौती को संभावना में बदलते दिखते हैं। साल 2005, माह नवम्बर को जब वे पहली दफा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं तो बहुत उम्मीद उनसे नहीं होती है लेकिन यही शिवराजसिंह चौहान जब साल 2020, माह नवम्बर के उप-चुनाव में बाजी पलटते हुए अपनी सरकार के लिए पूर्ण बहुमत का आंकड़ा जुटा लेते हैं तो वे प्रदेश की, राजनीति की उम्मीद बन जाते हैं। एक ऐसी उम्मीद जो प्रदेश को दिशा और दृष्टि ही नहीं देते हैं बल्कि वे आम आदमी के मुख्यमंत्री के रूप में बनी साख को और मजबूत बनाते हैं। वे एक ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में स्वयं को बना चुके हैं जिनसे कोई भी, कभी भी मिल सकता है। वे किसी भी आम आदमी से ना केवल मिलते हैं बल्कि उसकी पीठ पर भरोसे का हाथ रखते हैं। यह भरोसा उनकी गुडविल है तो विनम्रता उन्हें और ऊंचा बनाती है। विधानसभा चुनाव में वे अपना सिक्का जमा चुके थे लेकिन 2020 का उप-चुनाव उनके लिए अग्रि-परीक्षा के समान थी। इस परीक्षा में खरा उतरने का अर्थ था देश की पहली पंक्ति के सुदीर्घ अनुभव वाले राजनेताओं की पंक्ति में शामिल हो जाना। वे परीक्षा में खरे उतरे और कहना ना होगा कि कामयाब रहे।
मध्य प्रदेश में इतने बड़े उप-चुनाव की स्थिति एक बड़े दल-बदल के कारण उत्पन्न हुई थी। कांग्रेस इस बात को स्थापित करने में जुट गई थी कि कांग्रेस छोडक़र भाजपा में जाने वाले विधायक बिकाऊ हैं। भाजपा के लिए, खासतौर पर शिवराजसिंह चौहान के लिए यह मानस बन जाता तो चुनौती भरा था लेकिन उन्होंने जनता के सामने जाकर अपनी बात रखी। जनकल्याणकारी योजनाओं से आम आदमी की भलाई और प्रदेश के विकास का अपना एजेंडा रखा। पांव-पांव वाले शिवराजसिंह चौहान ने उन सभी क्षेत्रों का तूफानी दौरा किया और लोगों को समझाया कि सच क्या है? लोगों को शिवराज सिंह पर, उनके शासन पर और उनकी बातों पर पूरा भरोसा था। हालांकि परिणाम आने तक एक कुलबुलाहट थी लेकिन जब परिणाम आया तो भरोसे की जीत हुई। शिवराजसिंह चौहान के लिए नवम्बर, 2020 एक बार फिर कामयाबी का महीना साबित हुआ।
एक बड़ी चुनौती को सहजता से शिवराज सिंह चौहान ने कामयाबी में बदल दिया तो यह उनकी विनम्रता का परिणाम था। चुनावी सभाओं के दौरान जब वे घुटने के बल खड़े होकर अपनी जनता का अभिवादन कर रहे थे तो विरोधी दलों ने उनका परिहास किया। तंज कसे लेकिन विनम्र शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ‘जनता उनकी भगवान है और वे आगे भी उनके समक्ष नतमस्तक रहेंगे।’ कहना ना होगा कि उनकी यह विनम्रता मतदाताओं के मन में बैठ गई। विरोधियों को उनके ताने, उन्हीं पर भारी पड़ा जब चुनाव परिणाम सामने आया।
किसी भी चुनाव में मुद्दों की बड़ी अहमियत होती है लेकिन मध्यप्रदेश के हालिया उप-चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विनम्रता ने परिणाम को बदल दिया। यह परिणाम मुद्दे को लेकर नहीं था बल्कि यह परिणाम शिवराज सिंह चौहान के व्यक्तित्व एवं उनकी विनम्रता का था। बीते 13 साल और अब लगभग 9 माह के शासन में प्रदेश की जनता शिवराज सिंह चौहान को ही अपना सबकुछ मान बैठी है। मतदाताओं को इस बात का रंज भी नहीं था कि किसने पाला बदला और किसकी सरकार गयी। वे शिवराज सरकार के भरोसे थे और शिवराज सिंह के भरोसे को कायम रखा।
कोई 9 महीने पहले सत्ता में शिवराज सिंह की वापसी होती है तो मध्यप्रदेश की जनता ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया था। शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री के रूप में आम आदमी के बीच कभी गए ही नहीं। कभी मामा बनकर तो कभी भाई बनकर, किसी का बेटा बन गए तो दोस्त के रूप में सहजता से मिलते रहे। इस चुनाव में भी उनका यही रूप था। फकत आम आदमी का। यही तो शिवराज सिंह की यूएसपी है और इसी के बूते वे रिकार्ड तोड़ टाइम से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। यह संभव हुआ शिवराज सिंह चौहान की विनम्रता से। उनकी सादगी से और निश्च्छल भाव से।
शिवराज सिंह चौहान राजनीति करते हैं लेकिन प्रदेश की जनता के साथ नहीं। यह बार-बार और कई बार साबित हो चुका है। किसानों को राहत देने की बात हो, आदिवासियों के हितों की रक्षा करने का मुद्दा हो, बेटी-बहनों को सुरक्षा देने का मामला हो या बुर्जुगजनों को सम्मान देने का। हर बार उन्होंने अपने वायदे को निभाया है। कोरोना संकट के समय शासकीय कर्मचारियों के वेतन-भत्ते में आंशिक कटौती का सरकार ने ऐलान किया लेकिन शिवराज सिंह सरकार के प्रति ऐसा विश्वास कि लोगों ने इस कटौती को भी सरकार के साथ सहयोग के रूप में लिया और प्रचंड बहुमत से सरकार का साथ दिया। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि शासकीय अधिकारी-कर्मचारियों को आंशिक ही सही, आर्थिक नुकसान होने के बाद भी सरकार के साथ खड़े रहे, यह विश्वास केवल शिवराज सिंह चौहान ने जीता है। वहीं मध्यप्रदेश में कर्मचारी विरोधी होने के आरोप के साथ कांग्रेस की सरकार सत्ता गंवा चुकी है। यह महीन सा फर्क दिखता है शिवराज सिंह सरकार की लोकप्रियता में।
शिवराज सिंह चौहान के कार्य-व्यवहार में चौथे बार मुख्यमंत्री होने का ताब नहीं है बल्कि विनम्र होने का ऐसा भाव है जिससे कोई भी आदमी उनकी ओर खींचा चला आता है। वे पल-पल आम आदमी की चिंता करते हैं। इस बात से किसी को शिकायत नहीं हो सकती है। यही कारण है कि त्योहार के पहले अग्रिम भुगतान के अपने वायदे को पूरा किया। किसानों की कर्जमाफी से राहत की हवा बह ही है। कोरोना के कारण उनकी महत्वपूर्ण कार्यक्रम ‘मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन’ योजना स्थगित है जिसे वे जल्द ही शुरू करना चाहते हैं। यकिन किया जाना चाहिए कि एक बार फिर तीर्थ दर्शन के लिए गाड़ी दौड़ पडेगी।
वक्त हमेशा परीक्षा लेता है और शिवराज सिंह चौहान भी इससे परे नहीं हैं। फर्क इतना है कि शिवराज सिंह चौहान हर परीक्षा के बाद और खरे होकर उतरे हैं। इस बार का उप-चुनाव भी उनकी परीक्षा थी जिसमें वे सौफीसदी खरे उतरे हैं। कोरोना संकट के समय स्वयं मैदान में उतर गए थे। खुद कोरोना पीडि़त होने के बाद भी प्रदेश के कामकाज में बाधा नहीं आने दी। लॉकडाउन में घर लौट रहे मजदूरों को ना केवल वापसी की सुविधा दी बल्कि उनके मन में यह भरोसा उत्पन्न करने में कामयाब रहे कि सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह उनके साथ हैं। उनके रहने-खाने से लेकर रोजगार तक का प्रबंध शिवराज सिंह सरकार ने किया। उन्होंने ना केवल मध्यप्रदेश के श्रमजीवी परिवारों के लिए किया बल्कि आसपास के प्रदेशों के श्रमजीवी परिवार का साथ दिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की यह दरियादिली इस बात का गवाह है कि मध्यप्रदेश कहने के लिए नहीं बल्कि सचमुच में देश का ह्दयप्रदेश है। सत्ता के सिंहासन पर बैठे शिवराज सिंह चौहान से मिलने के बाद आपको एक पल के लिए भी नहीं लगेगा कि वे चौथी दफा के मुख्यमंत्री हैं। वही सहज व्यवहार, वही पहनावा और वही मध्यप्रदेश का अपनापन लिए शिवराज सिंह चौहान।