भारत के संविधान के आपत्तिजनक अनुच्छेदों पर यदि विचार किया जाए तो जहां भारत के विधानमंडलों के किसी प्रतिनिधि के लिए अर्हता या योग्यता की बात कही गई है , वहां पर केवल इतना कह दिया गया है कि :-
1 -वह भारत का नागरिक हो,
2 – दिवालिया घोषित ना हो
3 – 25 वर्ष की अवस्था पूर्ण कर चुका हो
4 – किसी न्यायालय से सजायाफ्ता मुजरिम ना हो ।
निश्चित रूप से संविधान के इस प्रावधान में गधा घोड़े सब एक भाव बेचने की व्यवस्था कर दी गई है । लोकतंत्र में एक साधारण से साधारण व्यक्ति को भी ऊंचे पद पर पहुंचाने के इस अवैज्ञानिक और अतार्किक प्रावधान में बहुत भारी दोष है और यदि विचार किया जाए तो वर्तमान भारत की दुर्दशा का कारण केवल यही है कि हमारे प्रतिनिधियों के लिए किसी प्रकार की योग्यता शैक्षणिक नहीं रखी गई है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के किसी एक जिले को चलाने के लिए तो उच्च शिक्षा प्राप्त जिलाधिकारी और एसएसपी की आवश्यकता होती है परंतु देश को चलाने के लिए अंगूठा टेक आदमी भी योग्य माना जाता है।
मैंने इस संबंध में अपनी एक पुस्तक ‘भारतीय संविधान के कुछ आपत्तिजनक अनुच्छेद’ में विस्तार से प्रकाश डाला है।
गधा घोड़े सब को एक समान समझकर और एक भाव देकर हम कैसी कैसी मूर्खताएं करते चले आए हैं या कर रहे हैं ? – इसका ताजा उदाहरण हमें बिहार के शिक्षा मंत्री के रूप में देखने को मिला है ।
खबर है कि बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के बनते ही विवाद शुरू हो गया। ताजा मामला मंत्रियों की नियुक्ति को लेकर है। पहली बार मंत्री बनाए गए डॉ. मेवालाल चौधरी एक कार्यक्रम में राष्ट्रगान गा रहे हैं, लेकिन वह उसे पूरा नहीं बोल सके। राष्ट्रीय जनता दल ने इस कार्यक्रम का एक वीडियो ट्विटर पर शेयर किया है। उसमें यह साफ-साफ दिख रहा है। डॉ. मेवालाल चौधरी को सीएम नीतीश कुमार ने शिक्षा जैसा अहम विभाग सौंपा है।
खास बात यह है कि डॉ. मेवालाल चौधरी पहले भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं और उन पर अपने कार्यकाल के दौरान 2012 में 161 सहायक प्राध्यापक-जूनियर साइंटिस्ट के पदों पर हुई बहाली में बड़े पैमाने पर धांधली और पैसों के लेन-देन के आरोप लग चुके हैं। इस मामले में उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी। बाद में उन्होंने कोर्ट से अंतरिम जमानत ले ली थी।
राष्ट्रीय जनता दल ने उनको शिक्षा मंत्री बनाए जाने पर भी सवाल उठाया है। आरजेडी ने ट्वीट कर कहा, ‘जिस भ्रष्टाचारी विधायक को सुशील मोदी खोज रहे थे, उसे नीतीश ने मंत्री बना दिया।’
भरत को श्रीराम एक आदर्श राजा के गुण बता रहे हैं, दृष्टि में आदर्श राजा वह है जो भगवान् में विश्वास रखता हो। क्योंकि राजा का राज्य भी भगवान् के द्वारा बनायीं गयी इस सृष्टि का ही हिस्सा है और इस हिस्से को सँभालने का काम राजा का ही है। इसीलिए उसे आस्तिक होना चाहिए।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम चंद्र जी के अनुसार राजा ऐसा होना चाहिए जो प्रजा के हित के लिए हमेशा सत्य बोले और सत्य को स्वीकार करने का साहस भी रखे।
आदर्श राजा वह है, जिसे कभी क्रोध न आये और अगर आये तो अपने ऊपर आये। आदर्श राजा वह है, जो दूरदृष्टि रखता हो ।
भरत को राजा के अन्य गुण बताते हुए श्री राम कहते हैं कि आदर्श राजा वह है जो प्रजा के दुःख को उतनी ही गहराई से महसूस करे जैसा वह अपने दुःख को महसूस करता है। राजा से अपेक्षा की जाती है कि राज्य कोष से एक भी पैसा अपने पास न रखे।
राजा का यह भी अनिवार्य गुण है कि वह हमेशा दुश्मन से लड़ने के लिए तैयार रहे और जिसके पास परिस्थियों से लड़ने या सामना करने के लिए योजना हमेशा तैयार रहे। जो प्रजा के हित में फैसला लेने में जरा भी समय न लगाता हो।जो प्रतिदिन वेद, ज्ञान और ग्रंथों का ध्यान करता हो। जो हमेशा राज्य की समृद्धि के लिए चिंता करता हो।अपनी मान्यताओं और परम्पराओं से दूर न हटे।
अब आप विचार कीजिए कि भारत के वर्तमान संविधान में किसी प्रतिनिधि के लिए डाली गई योग्यता पूर्ण हैं या मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा बताई गई उपरोक्त योग्यताएं पूर्ण हैं?
यदि हमारे वैदिक वांग्मय में दी गई उपरोक्त योग्यताओं को या वैदिक राज्य व्यवस्था में अन्य महापुरुषों द्वारा इस संबंध में डाली गई व्यवस्थाओं को पढ़ समझ कर वर्तमान संविधान में उनको स्थान दिया जाता तो बिहार के वर्तमान शिक्षा मंत्री जैसी शर्मनाक स्थिति से बचा जा सकता था ।अभी भी समय है कि भारतीय संविधान की पूर्ण समीक्षा कर इसको वैदिक स्वरूप दिया जाए । राम और कृष्ण के देश में ऐसे रूखे सूखे संविधान का क्या औचित्य जो अपने प्रतिनिधियों के लिए समुचित योग्यताओं का भी निर्धारण न कर सके ?
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत