आज का चिंतन-08/07/2013
अपने अरमानों को साकार करें
संतति या सुपात्रों में
डॉ. दीपक आचार्य
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आम तौर पर हममें से कई लोग ऎसे होते हैं जो समय निकल जाने के बाद ही समझदार हो पाते हैं और जब तक अकल आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसी प्रकार कई लोग समय से पहले समझदार हो जाते हैं और ऎसे में भी वे इच्छित कार्यों को नहीं कर पाते हैं। खूब सारे लोग ताजिन्दगी मूर्ख और नासमझ बने रहते हैं मगर उन्हें अपनी मृत्यु तक यही भ्रम बना रहता है कि वे ही हैं जो दुनिया के सबसे बड़े समझदार हैं।
अधिकांश लोग ऎसे हैं जो कई प्रकार की सम सामयिक मुसीबतों, प्रतिकूलताओं, विपन्नताओं आदि की वजह से अपेक्षित जीवन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इसी प्रकार काफी लोग भाग्य एवं परिस्थितियों के विपरीत होने, अवसरों, प्रेरणा तथा प्रोत्साहन एवं संबलन के अभाव, उपयुक्त माहौल नहीं मिलने आदि वजहों से लक्ष्यों में पिछड़ जाते हैं।हममें से पिंचानवे फीसदी लोगों को यदि पूछा जाए तो सारे के सारे यही कहने लगेंंगे कि वे जो बनना चाहते थे वह बन नहीं पाए, पीछे रह गए तथा कुछ अनुकूलताएं होती तो आज जाने किसी और अच्छे मुकाम पर होते।इस प्रकार की बातें आम जनजीवन और आदमियों में सामान्य हैं और सार्वभौमिक सत्य के रूप में इसे हर कहीं बड़ी ही सहजता के साथ स्वीकार जाता रहा है।
इन परिस्थितियों और जीवन में कुछ न कुछ शेष होने की स्थितियों के निराकरण का एकमात्र उपाय यही है कि जो पद-प्रतिष्ठा और कद हम हासिल नहीं कर पाए, जो अच्छे काम हम नहीं कर पाए उन्हें मूत्र्त रूप देने के लिए योग्य सुपात्रों का चयन करें और इनके माध्यम से अपने स्वप्नों को आकार प्रदान करें ताकि हमारे अपने जीवन में जिन लक्ष्यों की प्राप्ति के मामले में शून्यता दिख रही है उसे समाप्त किया जा सके।ये सुपात्र अपनी संतति हो सकती है, अपने घर-परिवार और कुटुम्ब के बच्चे हो सकते हैं, अपने शिष्य या अपने इलाकों के योग्य विद्यार्थी या युवा भी हो सकते हैं जिनमें प्रतिभाएं हों तथा निरन्तर विकास के लिए आगे बढ़ने की योग्यता, स्वाभिमान और संस्कार हों तथा थोड़ा बहुत संबल दिए जाने पर वे अपने आप प्रतिभाओं को निखार कर आगे बढ़ने की सारी क्षमताओं को धारण करते हों।
इससे अपने सम सामयिक और सामाजिक उत्तरदायित्वों की पूर्णता एवं वर्तमान पीढ़ी के सुनहरे भविष्य के निर्माण में अपनी भागीदारी का फर्ज तो अदा होगा ही, इससे भी बढ़कर दूसरी उपलब्धि यह होगी कि अपने जीवन की शून्यता को दूसरों में परिपूर्ण देखकर हमारे जीवन में वंचित रहे लक्ष्य की पूर्ति होगी तथा पूरी जिन्दगी भर रहने वाला मलाल अपने आप खत्म हो जाएगा।लेकिन अपनी दिली भावनाओं और लक्ष्यों को आकार देने के लिए यह जरूरी है कि हम मानवीय संवेदनाओं, परोपकार, सेवा भावनाओं के साथ ही पूरी उदारता को जीवन में भरपूर स्थान दें और जिस किसी पात्र के लिए हमारे मन में तीव्र विकास में भागीदारी निभाने की इच्छा हो, उसके लिए दिल खोल कर काम करें और इस कार्य को एक मिशन की तरह पूरा करें।
यदि हम अपने जीवन में एकमात्र इसी लक्ष्य में सफल हो जाएं तो हमारा जीवन आशातीत सफलता की परिपक्वता और जीवन लक्ष्यों की पूर्णता का जो सुकून पाएंगे वह हमारे जीवन में आनंद और आत्मतुष्टि का इतना ज्वार उमड़ा देगा कि हमें जीवन में अंतिम समय तक यह तुष्टि नियतिम रूप से आनंद प्रदान करती रहेगी।आज पात्र लोगों को आगे लाने तथा उन्हें हर प्रकार का संबल प्रदान करते हुए उनके भविष्य के निर्माण में जुटना दुनिया का सर्वोपरि धर्म और मानवीय फर्ज है। इसमें जो लोग भागीदार हैं सचमुच में उन्हीं दैवदूतों का जीवन धन्य है।बाकी जिन कामों में लोग तन-मन-धन लगा रहे हैं वे घास काटने के सिवा कुछ नहीं कर रहे हैं। निर्माण और विकास की बुनियादी श्रेष्ठ एवं आदर्शों से सम्पन्न नागरिकों पर निर्भर है और जब यह इकाई सुदृढ़ होगी, तभी समाज और राष्ट्र की नींव को मजबूती तथा भावी तरक्की का आधार प्राप्त होगा।