रमेश सर्राफ धमोरा
बिहार के चुनाव परिणामों ने देशभर में दरकते एनडीए के रिश्तों को एक बार फिर नए सिरे से मजबूती प्रदान की है। जनता दल (यू) को कम सीटें मिलने पर भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने से भविष्य में एनडीए में और नए दलों के शामिल होने का रास्ता खुलेगा।
बिहार विधानसभा के चुनावों ने भारतीय जनता पार्टी को एक नई संजीवनी प्रदान की है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद देश के कई प्रदेशों में लगातार पिछड़ती जा रही भाजपा के लिए बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम एक अच्छी खबर लेकर आए हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के बल पर भाजपा अगले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनावों में भी अपना पूरा दमखम दिखायेगी। बिहार विधान सभा के चुनाव में भाजपा के शानदार प्रदर्शन से एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन सकी।
हालांकि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) का प्रदर्शन पहले की तुलना में बहुत खराब रहा है। लेकिन भाजपा ने अपनी सीटों में आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ोतरी करके नीतीश कुमार के सातवीं बार मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। बिहार विधानसभा में भाजपा ने 74 सीटें जीत कर अपनी स्थिति पहले से काफी मजबूत कर ली है। 2015 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मात्र 53 सीटें ही मिली थीं। लेकिन इस बार भाजपा ने 21 सीटों की बढ़ोतरी की है।
बिहार में भाजपा कुल 110 सीटों पर चुनाव लड़ कर 74 सीटें जीती है। इस तरह भाजपा के जीतने का स्ट्राइक रेट 68 प्रतिशत के करीब रहा है। जो अन्य पार्टियों की तुलना में सबसे ज्यादा है। बिहार में पिछली बार के चुनाव की तुलना में इस बार भाजपा के वोट प्रतिशत में कमी आई है। भाजपा को इस बार के विधानसभा चुनाव में 19.46 प्रतिशत वोट मिले हैं। हालांकि पिछली बार की तुलना में इस बार भाजपा ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बिहार में एनडीए गठबंधन के तहत 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ कर 23.58 प्रतिशत वोट प्राप्त कर सभी 17 सीटें जीती थीं।
2019 के लोकसभा चुनाव में मिली जबरदस्त सफलता के बाद प्रदेशों के चुनावों में भाजपा का ग्राफ तेजी से गिरता जा रहा था। कई प्रदेशों में वह सत्ता से बाहर हो गई थी। ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव में मिली जीत ने भाजपा कार्यकर्ताओं को खासा उत्साहित किया है। बिहार विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी संगठन ने पूरी एकजुटता के साथ चुनाव लड़ा जिससे उन्हें सफलता मिली। इस बार के चुनाव में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यू) को मात्र 43 सीटें ही मिली हैं। उनके वोट प्रतिशत व सीटों की संख्या में काफी कमी आई है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने उन्हीं को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया है ताकि एनडीए गठबंधन कहीं कमजोर ना पड़े। बिहार के चुनाव परिणामों ने देशभर में दरकते एनडीए के रिश्तों को एक बार फिर नए सिरे से मजबूती प्रदान की है। जनता दल (यू) को कम सीटें मिलने पर भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने से भविष्य में एनडीए में और नए दलों के शामिल होने का रास्ता खुलेगा।
2019 के लोकसभा चुनाव के कुछ समय बाद महाराष्ट्र व हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को पहले की तुलना में कम सीटें मिली थीं। भाजपा को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 105 सीटें और 25.75 प्रतिशत वोट मिले थे। 2014 के विधानसभा चुनाव की तुलना में भाजपा को 17 सीटें व करीबन 2 प्रतिशत वोट कम मिले थे। इसी तरह हरियाणा में भाजपा मात्र 40 सीटें ही जीत सकी थी। उसे 36.39 प्रतिशत वोट मिले। जबकि उससे पहले भाजपा के पास 47 सीटें थीं। हरियाणा में तो दुष्यंत चैटाला की जजपा पार्टी के साथ गठबंधन करके भाजपा ने जैसे-तैसे सरकार बना ली मगर महाराष्ट्र उसके हाथ से निकल गया था। वहां शिवसेना ने एनडीए से अलग होकर कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी।
2019 में झारखंड विधानसभा के चुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को झारखंड में मात्र 25 सीटें व 31.3 प्रतिशत वोट मिले। जबकि उससे पहले उसके पास 43 सीटें थीं। 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा। भाजपा 3 सीटों से बढ़कर आठ पर पहुंची तथा उसे 38.51 प्रतिशत वोट मिले। दिल्ली में भाजपा की सीट व वोट प्रतिशत बढ़ने के बावजूद भी वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। जबकि उससे पूर्व लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर भाजपा प्रत्याशी बड़े अंतर से जीते थे।
हाल ही में संपन्न 11 राज्यों की 59 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भाजपा ने 40 सीटें जीतकर विरोधी दलों को कड़ी शिकस्त दी है। भाजपा ने मध्य प्रदेश में कांग्रेसी विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बनाई थी। वहां 28 सीटों के उपचुनाव हुये, जिन पर भाजपा के शिवराज सिंह सरकार का भविष्य टिका था। लेकिन वहां भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 19 सीटें जीतकर अपने सरकार को सुरक्षित कर लिया। मध्य प्रदेश उपचुनाव में भाजपा को 49.46 प्रतिशत मत मिले।
गुजरात विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने सभी आठों सीटें जीत कर क्लीन स्वीप कर दिया। वहां भाजपा को 55.06 प्रतिशत वोट मिले। उपचुनावों में शानदार प्रदर्शन करने पर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को हटाये लाने की खबरों पर विराम लगेगा। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 7 में से 6 सीटें जीत कर मुख्यमंत्री योगी के कामों पर जनता की मोहर लगवा ली। यहां भाजपा को 36.73 प्रतिशत वोट मिले। कर्नाटक में भाजपा ने दोनों सीटें जीतीं व 51.71 प्रतिशत वोट हासिल किए। तेलंगाना की एकमात्र सीट भाजपा की झोली में आ गई। यहां भाजपा को 38.47 प्रतिशत वोट मिले।
मणिपुर में भाजपा ने 5 में से 4 सीटें जीतीं व 40.54 प्रतिशत वोट प्राप्त किए। झारखंड में भाजपा दोनों ही सीटों पर हार गई मगर उसे 42.17 प्रतिशत वोट मिले। उड़ीसा की दोनों सीटों पर भाजपा हार कर भी 35.64 प्रतिशत वोट ले गई। नागालैंड की दोनों सीटों पर भाजपा हार गई वहां उसे 14.50 प्रतिशत वोट मिले। छत्तीसगढ़ की एकमात्र सीट पर भी भाजपा ने हारने के उपरांत भी 30.45 प्रतिशत वोट हासिल किये हैं। हरियाणा की एक सीट के उपचुनाव में भाजपा जीत नहीं सकी। लेकिन उसे 40.70 प्रतिशत वोट मिले। विधानसभा उपचुनावों में भाजपा के जीतने का रेट 66 प्रतिशत से अधिक रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव के साथ देश के 11 अन्य प्रांतों में हुए विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन कर यह दिखा दिया है कि उसकी ताकत में कोई कमी नहीं हुई है। पार्टी आज भी पूरे दमखम के साथ विरोधी दलों को पटखनी देने की ताकत रखती है।
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