सभी राष्ट्रवादियों के लिए यह एक बहुत ही उत्साहजनक खबर है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) अपनी वीरता ,शौर्य और पराक्रम के लिए इतिहास में विशेष सम्मानित स्थान रखने वाले सम्राट पृथ्वीराज चौहान से संबंधित संग्रहालय बनाएगा। इसे किला राय पिथौरा में बनाया जाएगा। इसके लिए योजना बन चुकी है। इस किले में पहले से बने भवन का विस्तार किया जाएगा। भवन के तैयार होने के बाद इसमें संग्रहालय स्थापित होगा जो मुख्यरूप से पृथ्वीराज चौहान को समर्पित होगा।
एएसआइ ने अपने अधिकारियों से कहा है कि जहां जहां भी चौहान से संबंधित दस्तावेज और पुरावशेष उपलब्ध हैं उन्हें एकत्रित करें और इस संग्रहालय के लिए उपलब्ध कराएं। आने वाले एक साल के अंदर संग्रहालय स्थापित हाे सकेगा। जगमोहन के केंद्रीय शहरी विकास मंत्री के कार्यकाल में किला राय पिथौरा का कायाकल्प किया गया था। इससे पूर्व यह उपेक्षित टीले की तरह था। इसके आसपास रहने वाले झुग्गी वासियों के चलते गंदगी रहती थी। जगमोहन ने अपने प्रयासों से दिल्ली विकास प्राधिकरण को सक्रिय करके विकास योजनाओं को बनवाकर इसके संरक्षण और विकास कार्य को क्रियांवित किया। उस समय टीले का छोटा हिस्सा ही संरक्षित था। जगमोहन के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बनने पर इस पूरे टीले को संरक्षित करने के साथ इसकी विस्तृत खुदाई का प्रबंध भी किया गया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसका संरक्षण कराया। उसी समय यहां संरक्षण केंद्र भवन बनाया गया। इसके ऊपर पृथ्वीराज चौहान की एक भव्य मूर्ति स्थापित की गई। मगर संरक्षण केंद्र भवन को अब विस्तार किया जा रहा है।
डीडीए ने 2002 में इस पार्क को विकसित कर के एएसआइ को सौंप दिया था। तब से यह एएसआइ के पास है। पूर्व केंद्रीय मंत्री जगमोहन अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि जब पृथ्वीराज चौहान राजा बने तो उन्होंने लाल कोट का विस्तार करते हुए एक विशाल किला बनवाया। वास्तविकता में लाल कोट किला राय पिथौरा पहली दिल्ली है। तोमरों और चौहान ने लाल कोट के भीतर अनेक मंदिरों का निर्माण किया। जिसे मुसलमानों ने गिरा दिया और उनके पत्थरों का मुख्यत: कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद के लिए पुन: इस्तेमाल किया गया। अमीर खुसरों ने भी अनंगपाल तंवर के महल का वर्णन किया है। बताया जाता है कि कुतुबुद्दीन तथा इल्तुतमिश ने राय पिथौरा के दुर्ग को ही अपना आवास बनाया था।
किला राय पिथौरा को दिल्ली के सात शहरों में प्रथम होने का गौरव प्राप्त है, जिसका निर्माण 1180-1186 के बीच में हुआ। इसका संबंध महान गुर्जर शासक पृथ्वीराज चौहान से है। जिनकी वीरता की कहानियों के बारे में आज भी लोग स्वयं को गौरवांवित अनुभव करते हैं। उल्लेखनीय है कि पृथ्वीराज चौहान ने अंतिम हिंदू सम्राट के रूप में दिल्ली में सुदृढ़ केंद्रीय सत्ता की स्थापना की थी। जो मुसलमानों के विरुद्ध प्रतिरोध की कहानियों के लोकप्रिय नायक रहे हैं। लाल कोट का विस्तार उन्होंने आसपास पत्थरों की विशाल प्राचीरें और द्वार बनाकर किया। यह दिल्ली का प्रथम नगर किला राय पिथौरा के नाम से विख्यात है। राय पिथौरा की दिल्ली के बारह दरवाजे थे। मुख्यरूप से प्रेस एंक्लेव रोड पर राय पिथौरा के किले के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
हमारा मानना है कि नई दिल्ली के पुराने किले में भारत के सभी महान हिंदू शासकों की प्रतिमाएं स्थापित की जाएं। सरकार को चाहिए कि वहां प्रत्येक हिंदू शासक की प्रतिमा के नीचे उसका जीवन वृत्त संक्षेप में लिखवाया जाए । जिससे कि पर्यटकों को अपने देश के गौरवशाली हिंदू इतिहास का बोध हो सके। इस किले के भीतर ही गुर्जर प्रतिहार शासकों के उन महान कार्यों का उल्लेख भी किया जाना चाहिए जिनके चलते इन शासकों ने मुसलमानों का निरंतर 300 वर्ष तक प्रतिरोध किया था । तुर्कों व मुगलों से देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले हिंदू वीरों की प्रतिमाएं भी यहां स्थापित कराई जानी चाहिए। उनके नीचे भी ऐसे वीरों की संक्षिप्त कहानी लिखी जानी चाहिए। वर्तमान में सरकार का अपने इतिहास नायकों की ओर ध्यान जाना बहुत ही गौरव बोध कराने वाला है। अभी इस दिशा में चाहे शुरुआती कदम ही उठाए जा रहे हैं परंतु हमें विश्वास है कि देर सबेर हमारी इस मांग पर भी विचार किया जाएगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत