राष्ट्र-चिंतन
नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी की मूर्खता का दुष्परिणाम है चीन की गुंडई
तिब्बत की आजादी को अचूक हथियार बनाओ
विष्णुगुप्त
तिब्बत पर नेहरू और अटल की भूलें और कूटनीतिक मूर्खता अब हमारी सीमा की सुरक्षा पर संकट कारण और हमारे जवानों की जानं गंवाने के कारण बन गयी हैं। जवाहरलाल नेहरू पर तो चीन की दोस्ती का भूत सवार था, चीन और पाकिस्तान परस्ती उन पर हावी थी जिसके कारण उन्होनंे तिब्बत की स्वतंत्रता को अक्षुण नहीं रख सके और तिब्बत पर चीन का कब्जा होने दिया। जब चीन भारत पर आक्रमण कर, हमारी सीमा पर कब्जा करने की साजिश कर रहा था तब उस समय जवाहरलाल नेहरू हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा दे रहे थे, सीमा की सुरक्षा और सेना की मजबूती उनके एजेंडे से बाहर ही था। नेहरू की गलतफहमी थी कि चीन की कम्युनिस्ट तानाशाह माओ त्से तुग तिब्बत की तरह हमारी सीमा भूमि पर न तो कब्जा करेेगा और न ही हम पर आक्रमण करेगा। माओ त्से तुंग कहा करता था कि सत्ता और शक्ति बन्दूक की गोली से निकलती है, जिसने तिब्बत की आजादी को लहूलुहान कर कब्जा किया था, जिसने तिब्बत पर कब्जा करने के लिए हजारों निहत्थे बौद्ध भिक्षुओं का नरसंहार किया था, बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा को भारत भागने के लिए बाध्य किया था, जिसके लिए शांति और सौहार्द कोई नीति नहीं थी उस पर विश्वास करना ही नेहरू की मूर्खता थी। हमारे लिए नेहरू की मूर्खता कितना घातक, कितना खतरनाक और कितना वीभत्स साबित हुई थी, यह भी उल्लेखनीय है। माओ त्से तुंग ने न कवेल भारत पर आक्रमण किया था बल्कि हमारी 90 हजार वर्ग भूमि पर कब्जा कर लिया था, पांच हजार से अधिक हमारे सैनिकों को मार डाला था। चीन की दादागिरी और गुडई देखिये कि हमारी कब्जाई भूमि को वह छोड़ने के लिए तैयार नहीं है पर वह लद्दाख और सिक्किम-अरूणाचल प्रदेश को भी अपना अंग मानने की धुर्तता करने से बाज नहीं आता है।
दूसरी मूर्खता अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी। अटल बिहारी वाजपेयी की मूर्खता हमारे लिए बहुत भारी पड़ी है। जवाहरलाल नेहरू के रास्ते पर अटल बिहारी वाजपेयी क्यों चले? नेहरू का हिन्दी-चीनी भाई-भाई की कूटनीति का हस्र वाजपेयी को क्यों नही मालूम था? चीन की विश्वासघाती चरित्र , अटल बिहारी वाजपेयी को क्यों नहीं मालूम था? चीन हमारा असली शत्रू है, यह अटल बिहारी वाजपेयी को क्यों नहीं मालूम था? जबकि पूरा देश यह मानता है कि हमारा असली दुश्मन चीन ही है। अटल बिहारी वाजपयी के मंत्रिमडल में शामिल और तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीस बार-बार कहते थे कि हमारा असली दुश्मन पाकिस्तान नहीं है बल्कि असली दुश्मन तो चीन है, चीन से ही भारत को असली खतरा है, पाकिस्तान के आतंकवाद और पाकिस्तान की युद्धक मानसिकता के पीछे चीन ही है। इसलिए चीन पर विश्वास करना भारत को महंगा पडेगा। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि तिब्बत के प्रति अटल बिहारी वाजपेयी की कूटनीतिक मूर्खता क्या थी? उनकी कूटनीतिक मूर्खता तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार करने की थी। अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में चीन के साथ एक समझौता किया था उस समझौते में अटल बिहारी वाजपेयी ने तिब्बत पर चीन का अधिकार मान लिया था और यह भी शर्त्र स्वीकार कर ली थी कि भारत भविष्य में कभी-भी तिब्बत की आजादी का प्रश्न नहीं उठायेगा। जब यह समझौता सामने आया था तब देश में हाहाकार मच गया था। राजनीतिज्ञों और सुरक्षा विशेषज्ञों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी थी और इस मूर्खता को देश की सुरक्षा के लिए घातक मान लिया गया था। उस समय तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने यह तर्क दी थी कि चूंकि सिक्किम पर चीन ने भारत का अंग स्वीकार कर लिया है, इसलिए तिब्बत की आजादी का प्रश्न हमनें छोड़ दिया। सिक्किम तो हमारा अभिन्न अंग है। इसलिए इस पर चीन के दावे का प्रश्न ही कहां उठता था? फिर चीन की कारस्तानी देखिये, विश्वासघाती चरित्र देखिये। अब फिर चीन सिक्किम को अपना अंग कहने लगा है।
चीन के खिलाफ तिब्बत का हमारा अचूक हथियार होता था। जब भी चीन हमारे खिलाफ बोलता था, जब भी चीन पाकिस्तान के समर्थन में बोलता था, जब भी चीन अतंर्राष्टीय मंचों पर भारत के खिलाफ बोलता था, चीन जब भी कश्मीर पर पाकिस्तान की भाषा का इस्तेमाल करता था तब भारत तिब्बत की आजादी का प्रश्न उठा कर चीन की बोलती बंद कर देता था। तिब्बत में मानवाधिकार का घोर उल्लंघन का प्रश्न हमारे लिए अति महत्वपूर्ण होता था, तिब्बत में घोर मानवाधिकार हनन का प्रश्न हम दुनिया के सामने लाकर चीन का असली चेहरा दिखा देते थे। तिब्बत की आजादी और तिब्बत का स्वतंत्र आकार हमारे देश की जनता चाहती रही हे। राममनोहर लोहिया और समाजवादी तबका चीन के खिलाफ हमेशा सक्रिच रहते थे और तिब्बत की आजादी का प्रश्न उठाते रहते थे। राममनोहर लोहिया की मृत्यु के बाद जार्ज फर्नाडीस ने तिब्बत की आजादी का मशाल जलाते रहे थे। पर धीरे-धीरे समाजवादियों और गांधी जनों का जातीय और क्षेत्रीय करण होता चलेगा और उनकी मित्रता उस कम्युनिस्ट जमात से हो गयी जिस कम्युनिस्ट जमात ने चीनी आक्रमण और अपने सेनिकों के नरसंहार का समर्थन किया था और माओ त्से तुंग के अपना प्रधानमंत्री माना था, आक्रमणकारी चीनी सैनिकों के समर्थन और स्वागत में बैनर आदि लगाये थे, सिर्फ इतना ही नहीं आयुघ कारखानों में हड़ताल भी करायी थी ताकि भारतीय सैनिकों के पास हथियार न पहुंच सके।
हमारी सरकारों की मूर्खता यहीं तक सीमित नहीं है। मूर्खता और भी हैं। जिनका परीक्षण होना चाहिए। देश की जनता को यह जानना चाहिए कि तिब्बत और चीन की कसौटी पर मूर्खता की एक लंबी फेहरिस्त है। पीवी नरसिंह राव और मनमोहन सिंह की मूर्खता भी बहुत आघात वाली है और अभी-अभी जो हमारे 20 से अधिक सैनिक चीन के हाथों मारे गये हैं उसके पीछे पीवी नरसिंह राव और मनमोहन सिंह की मूर्खता ही है। पीवी नरसिंह राव 1996 में चीन के साथ एक संधि की थी जिसमं लद्दाख के आस-पास सैनिकों के बीच तकरार के समय हथियारों का उपयोग नहीं करने की बात थी। उस समय देश का रक्षा मंत्री शरद पवार थे। इसी तरह की चीन के साथ एक संधि मनमोहन सिंह ने की थी। इन संधिचों के कारण भारतीय सैनिकों के हाथ बंधे हुए थे। जब राहुल गांधी ने प्रश्न दागा था कि भारतीय सैनिकों को हथियारों के उपयोग का आदेश क्यों नहीं दिया गया था। राहुल गांधी के इस प्रश्न का भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने जवाब देते हुए साफ कहा था कि कांग्रेस के राज में 1996 और 2005 में चीन के साथ संधि हुई थी, जिसके कारण भारतीय सैनिक हथियारों का प्रयोग नहीं कर सकते थे। एक तथ्य और भी है। अमेरिका नही चाहता था कि चीन संयुक्त राष्टसंघ की सुरक्षा परिषद का सदस्च बनें। एशिया क्षेत्र से अमेरिका ने भारत को सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाना चाहता था, अमेरिका ने पेशकस भी की थी। पर जवाहरलाल नेहरू ने भारत को सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाने से साफ इनकार कर दिया था और कहा था कि मेरा बड़ा भाई चीन है, इसलिए चीन को ही सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाया जाना चाहिए। अगर भारत आज सुरक्षा परिषद का सदस्य होता तो निश्चित मानिये कि चीन की गुंडई का हम आसान शिकार कभी भी नहीं होते।
चीन ने एक तरह से विश्वासघात किया है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उसने संधि तोड़ी है। नुकीली छडि़यों और घातक रडों से हमला कर हमारे सैनिकों का नरसंहार किया है। ऐसे में हमें भी इन सभी संधियों से हट जाना चाहिए। तिब्बत की आजादी के प्रश्न को अब हमें उठाना ही चाहिए। तिब्बत में घोर मानवाधिकार हनन के प्रश्न को भी उठाना चाहिए। चीन का आईना दिखाना चाहिए तुम हमारी सीमाओं का अतिक्रमण करोंगे और कब्जा करोगे तो फिर हम अपने तिब्बत के अचूक हथियार का भी प्रयोग करेंगे। तिब्बत में बौद्ध भिक्षुओं के शांतिपूर्ण आंदोलन को समर्थन देंगे। लद्दाख के अंदर में हमारे सैनिकों ने जो वीरता दिखायी है वह हमारे लिए गर्व और प्रेरणा की बात है। पहली बार चीन के खिलाफ हमारे सैनिकों ने न केवल तन कर खड़ा हुए बल्कि चीनी सैनिकों को सबक भी सिखाया है। चीन के अगर पांच-दस सैनिक भी मरे होंगे तो फिर यह घटना चीन के लिए सबक देता रहेगा और उसकी यह खुशफहमी भी टूट चुकी है कि भारतीय सैनिक और भारत की सरकार पहले जैसा आत्मसमर्पण कारी होंगे। नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से सैनिकों को छूट दी है और लद्दाख सहित अन्य क्षेत्रों की सीमा पर सैनिक और हथियारों की तैनाती शुरू की है, वह प्रशंसा की बात है। हमें उम्मीद है कि नरेन्द्र मोदी अब तिब्बत की आजादी का प्रश्न उठा कर चीन की हैकड़ी तोडने का काम करेंगे।