दीपावली का त्यौहार जिस दिन मनाया जाता है, उसे से दो दिन पहले और दो दिन बाद तक कोई ना कोई आयोजन चल रहे होते हैं। इनकी शुरुआत धन्वन्तरि की उपासना यानी धनतेरस से शुरू हो जाती है। अगर आप स्वस्थ नहीं हैं, तो कोई सुख लेने में समर्थ ही नहीं होंगे। मिठाई जैसी चीज़ें खरीदने के पैसे होने का क्या फायदा जब आप डाईबिटिज जैसी बिमारियों की वजह से उसे खा ही ना सकें ? आयुर्वेद चुंकि बिमारी के बाद की ही रोकथाम पर नहीं, बल्कि पहले से उसके बचाव का प्रबंध रखने में विश्वास रखता है इसलिए धन धन्य से जुड़ा ये पर्व उनसे ही शुरू होता है।
क्रम में दुसरे स्थान पर नरक निवारण चतुर्दशी है जिसे दो रूपों में देख सकते हैं। एक तो “नरक मचाना” गंदगी फैलाने को कहा जाता है। स्वच्छता के बिना ना स्वास्थ्य होगा, ना वैभव, इसलिए ये स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने का दिन भी है। इस दिन जो नरकासुर मारा गया था, ये वही था जिसने कई हजार कन्याओं का हरण कर रखा था और उन्हें छुड़ा कर श्री कृष्ण वापस ले आये थे। किन्हीं कारणों से जो लक्ष्मी बाहर चली गई हैं, उसे वापस लाने के प्रयासों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, ये भी इस दिन याद कर सकते हैं।
दीपावली तीसरी होती है, जिस दिन हिन्दुओं में नए बही खाते, और कई नए प्रयासों को शुरू करने का दिन माना जाता है। आयातित अंधविश्वासों के जो हालेलुइया पोषक ये सिखाते हैं कि अमावास की रात भयावह या अशुभ होती है, इस दिन उन्हें ये जरूर याद दिलाइये कि ऐसी मूर्खताएं हिन्दुओं में नहीं चलती। दीपावली अमावस्या को ही शुरू होती है, और हम लोग ना तो आयातित विचारधाराओं की तरह किसी को वाणिज्य-व्यवसाय जैसे कर्मों के कारण अपना शत्रु मानते हैं, ना अमावस्या पर कोई काम शुरू करने से बेवजह परहेज रखते हैं।
पशु-पक्षी और पर्यावरण में मनुष्यों के योगदान जैसी चीज़ों के लिए भी हिन्दुओं के त्योहारों की महत्ता होती है। दीपावली के अगले दिन होने वाली गोवर्धन पूजा, घर के पालतू पशुओं के लिए होती है। फिरंगी हमलावरों के दौर में कुत्तों को पालने पर रोक लग गई, और आज भी दिल्ली जैसे कई शहरों में गाय पालने पर पाबन्दी है। कभी छल और कभी बल से परम्पराओं को गायब करने और अर्थोपार्जन के तरीकों से रोकने के प्रयास जारी रहे हैं। ऐसे त्यौहार में जब आपके लिए गोवर्धन पूजा पर कोई बसहा बरद, कोई गाय ना हो, तो हमलावरों का शोषण भी याद रखिये।
ये त्यौहार भाई दूज पर समाप्त होता है जब भाई अपनी बहनों से मिलने उनके घर जाते थे। अकेले मनाई जाने वाली खुशियाँ अधूरी सी होती हैं। अपने ससुराल पक्ष से, सिर्फ रक्त सम्बन्धी ही नहीं, शादी के जरिये बने संबंधों को ये याद रखना और जोड़ना याद रखना ही चाहिए। वैसे तो पत्नी के भाई से जुड़ी कुछ कहावतें भी हमने सुनी हैं, इसलिए इसे कोई भूलता होगा, ऐसा तो हमें बिलकुल नहीं लगता। बाकी चार दिन का जिक्र किया है इसलिए इसका नाम लिख देने की खानापूर्ति करनी पड़ी है।
भाई दूज के ही दिन बिहार के कई इलाकों में चित्रगुप्त पूजा भी होती है। ये सभी जगह मनाया जाता है या नहीं ये नहीं पता। कलम-दवात की पूजा और यमराज के पास लेखा जोखा रखने वाले चित्रगुप्त की पूजा इस दिन शायद कायस्थ बिरादरी के लोग हर जगह ही करते होंगे। आपके काम करने के औजार (चाहे वो कलम
ही क्यों ना हो) भी महत्वपूर्ण होते हैं, इसे भी त्योहारों के जरिये याद दिला दिया जाता है। कोई सभ्यता-संस्कृति जितनी पुरानी होगी उसमें एक प्रतीक के जरिये सौ बातें कहने का गुण भी उतना ही बढ़ता जाता है। हमारे त्यौहार प्रतीक हैं, उनके पीछे के महत्व, त्यौहार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।
बाकी जब इतनी दूर पढ़ ही लिया है तो भगवद्गीता के दुसरे अध्याय का तीसरा श्लोक भी याद दिलाते चलें :-
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।
इसका मोटे तौर पर मतलब बताया जाता है कि हे पार्थ कायर मत बनो। यह तुम्हारे लिये अशोभनीय है? हे परंतप हृदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्यागकर खड़े हो जाओ। इसपर ध्यान दिलाने की वजह इसका पहला शब्द “क्लीव” है, आम तौर पर इसका अर्थ सिर्फ “नपुंसक” बता कर छोड़ दिया जाता है। लेकिन इस शब्द का मतलब उतना ही नहीं होता। ये अक्सर क्रॉस ड्रेसर के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द होता है, यानि कोई ऐसा जिसने स्त्रियों के से कपड़े पहने हों मगर पुरुष हो, या फिर पुरुषों के से कपड़े पहने हुए कोई स्त्री हो।
नौटंकी में राजा, व्यवसायी, पंडित बना कोई व्यक्ति जिसने सिर्फ रूप बदल लिया हो लेकिन गुण उसमें ना हो, उसके लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे क्रॉस ड्रेसर कई बार नर होने पर भी मादा की, या मादा होते हुए भी नर होने की नौटंकी करते करते अपनी ही हरकतों से अपनी पोल खोल देते हैं। चश्मा, बढ़ी दाढ़ी, बिखरे बाल, कुर्ता-झोला धारी ऐसे कई बुद्धिपिशाचों की पोल खुलना भी वैसा ही है। ऐसी बेइज्जती करवाने वाली हरकतें नहीं करनी चाहिए, यही श्री कृष्ण यहाँ अर्जुन को समझा रहे होते हैं।
✍🏻आनन्द कुमार