वैदिक साधन आश्रम तपोवन में सामवेद पारायण यज्ञ संपन्न
ओ३म्
‘ईश्वर परम दयालु एवं सबसे महान है: स्वामी चित्तेश्वरानन्द’
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वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में सात दिवसीय सामवेद पारायण एवं गायत्री यज्ञ सोमवार दिनांक 2-11-2020 से आरम्भ होकर रविवार दिनांक8-11-2020 को निर्विघ्न समाप्त हुआ। समापन दिवस पर प्रातः 7.00 बजे से प्रातः 9.30 बजे तक यज्ञ सम्पन्न किया गया। इस यज्ञ के अनन्तर यज्ञ की पूर्णाहुति, बलिवैश्वदेव यज्ञ, यजमानों को आशीर्वाद, सामूहिक यज्ञ प्रार्थना एवं शान्तिपाठ आदि की क्रियायें भी सम्पन्न की गईं। इसके बाद सभी यजमानों एवं यज्ञ में उपस्थित धर्म प्रेमियों ने यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी से आशीर्वाद लिया तथा यज्ञ कराने वाले सभी लोगों व विद्वानों से आशीर्वाद लेते हुए अपनी श्रद्धा के अनुसार उन्हें कुछ द्रव्य आदि भेंट किये। भजन एवं व्याख्यान का कार्यक्रम आश्रम के सभागार में प्रातः 10.00 बजे से आरम्भ हुआ। यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने सभी यजमानों की ओर से ईश्वर से सामूहिक प्रार्थना भी की थी।
उनकी प्रार्थना में ईश्वर को सम्बोधित कर कहा गया कि हे परमेश्वर! आप परमदयालु हो, हम आपका वन्दन करते हैं। आप हमें उदार बनायें। आप सबसे महान हैं। आपने हमें इस महान देश भारत में जन्म दिया है। यहां हमें शुद्ध वायु, जल, अन्न, अनेक धातुएं तथा अनेकानेक सुख प्रदान करने वाले पदार्थ प्राप्त हो रहे हैं। आप सब प्राणियों के जीवन का आधार हैं। आपने ही सृष्टि के आदि में अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न चार ऋषियों को सुख व मोक्षदायक वेदों का ज्ञान दिया था। हम लाखों वर्ष तक उस ज्ञान के आधार पर चले, विश्व का मार्गदर्शन किया और बाद में वेदों के मार्ग से भटक गये। हम इसके बाद आलस्य प्रमाद और अन्धविश्वासों में फंस गये। हम देख रहे हैं कि संसार में अशान्ति व हिंसा फैल रही है। ऐसा अविद्या के कारण हो रहा है।
हे ईश्वर! आपकी कृपा से स्वामी दयानन्द के रूप में एक महान आत्मा ने विगत शताब्दी में भारत में जन्म लिया। उसने हमें वेद ज्ञान से परिचित कराया। देश के अनेक लोगों ने उनका विरोध किया। उन्हें मार दिया गया। इससे उनके द्वारा किया जा रहा वेदों के प्रकाश का कार्य अवरुद्ध हो गया। हे भगवन्! हम वेदों पर चलने वाले हों। आप हमारी रक्षा करें। देश के सभी लोगों की कोरोना महामारी से रक्षा करें। देश में एक महान आत्मा को भेजिये जो ऋषि दयानन्द के समान वेदों का प्रचार व प्रसार करे और लोगों को वेदों से परिचित कराते हुए इसके सिद्धान्तों को मनवा सके तथा जिससे देश व विश्व में सद्धर्म वैदिक धर्म की स्थापना हो सके।
हे प्रभु! हम आपकी कृपा से सुरक्षित रहें। आप हमारे देश के यशस्वी देशभक्त प्रधान मंत्री की रक्षा करें। उन्हें बल व शक्ति प्रदान करें। देश के प्रधानमंत्री देश को अपराधरहित करने में सफल हों। हमारा देश विश्व का उन्नत व विकसित देश बने। हमारा देश वेदों के ज्ञान से ओतप्रोत विश्व का धर्म गुरु व आध्यात्मिक देश बने। हमारा देश सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हो। हम सभी देशवासी धन व ऐश्वर्य से सम्पन्न हों। वैदिक धर्म एवं संस्कृति की विश्व में उन्नति हो। हम आपके ज्ञान व आनन्द से सराबोर हों। हमारा यह सामवेद पारायण एवं गायत्री यज्ञ जन-जन के लिये कल्याणकारी हो। देश व विश्व में सर्वत्र सुख व शान्ति हो। हम अपनी नई पीढ़ी को वेदों का सन्देश दे सकें। सबका मंगल व कल्याण हो। इन्हीं शब्दों के साथ स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने अपनी प्रार्थना पूर्ण की। यज्ञ का संचालन करने वाले वैदिक विद्वान श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने अन्त में कहा कि हमारे यज्ञ के निर्विघ्न पूर्ण होने के लिये परम पिता परमात्मा का कोटि कोटि धन्यवाद है।
सभागार में कार्यक्रम आश्रम के न्यासी व सदस्य श्री विजय आर्य जी की अध्यक्षता में हुआ। कार्यक्रम के आरम्भ में श्री रमेश चन्द्र स्नेही जी ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘वह कौन आया रोशन हो गई दुनिया जिसकी बात से। वेद की पुस्तक हाथ में लेकर हाथ में निकला था जो गुजरात से।।’ आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने आश्रम का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि आर्यसमाज के प्रसिद्ध विद्वान व संन्यासी महात्मा आनन्द स्वामी जी आश्रम की स्थापना से पूर्व इस आश्रम के निकट के वनों में सन् 1947 से 1949 तक योग साधना करने आया करते थे। यह उनकी पसन्द का साधना करने के उपयुक्त स्थान था। वर्तमान में इस आश्रम को स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने अपनी साधना से पवित्र किया है। विगत अनेक वर्षों से स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी यहां फरवरी-मार्च के महीने में चतुर्वेद पारायण यज्ञ कराते हैं। आश्रम की प्रमुख गतिविधियों में आश्रम द्वारा संचालित एक तपोवन विद्या निकेतन जूनियर हाईस्कूल है। इस विद्यालय में 400 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। उच्च शिक्षा स्तर तथा शिक्षकों की उत्तमता के कारण यह विद्यालय इस क्षेत्र के अभिभावकों का सबसे पसन्दीदा विद्यालय है। आश्रम में प्रतिदिन दोनों समय यज्ञ होता है। आर्यजगत् के प्रसिद्ध विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी आश्रम में निवास करते हैं और वर्ष में अनेक बार यहां युवक व युवतियों के लिये योग साधना एवं जीवन निर्माण शिविर लगाते हैं। आश्रम से एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जाता है जिसका नाम ‘‘पवमान” है। इसके बाद मंत्री जी ने आश्रम की गतिविधियों के संचालन में प्रमुख सहयोगी व साधन धर्मप्रेमियों के दान की चर्चा की और लोगों से मुक्त हस्त से आश्रम की सहायता करने का अनुरोध किया जिससे आश्रम के सभी कार्य सुगमतापूर्वक चलते रहें। इसी क्रम में कार्यक्रम के संचालक श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि हमारे देश का प्राचीन नाम आर्यावर्त है। सृष्टि के आरम्भ व इसके बाद के हजारों वर्ष तक आर्यावर्त के अतिरिक्त संसार में कोई देश नहीं था। हमारा सन्देश था कि सब मिलकर आपस में प्रीति पूर्वक रहें। श्री सत्यार्थी जी ने कहा कि आर्यसमाज के हम लोग हम एक जुगनु की तरह हैं जो भले ही सूर्य के समान प्रकाश देने वाले भले ही न बन सकें, जुगनु की तरह टिमटिमा तो सकते ही हैं। इसके बाद देवबन्द से पधारे भजनोपदेशक श्री राजवीर आर्य जी ने एक भजन गाया जिसके बोल थे ‘मुर्दा है वो जो स्वाभिमानी नहीं हैं, जिस इंसा की आंखों में पानी नहीं है। विधाता मेरी कौम को क्या गया है, ये जिन्दा तो है जिन्दगानी नहीं है।।’
श्री राजवीर आर्य जी के भजन के बाद द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की छात्रा सुश्री दीप्ति आर्या जी का व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा कि सामवेद उपासना का वेद है। उपासना सर्वव्यापक ईश्वर की ही की जाती है। उन्होंने कहा कि उपासना निकट बैठने को कहते हैं। संसार में मनुष्यों के कर्मों में विचित्रता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल मिलता है। अतः इसीलिये ही कोई राजा तो कोई रंक है। दीप्ति आर्या जी ने पूछा कि मनुष्य का इस संसार में सखा कौन है? इसका उत्तर यह है कि परमात्मा ही सब प्राणियों व जीवों का सखा है। उन्होंने कहा कि परमात्मा सभी प्रकार के धन एवं ऐश्वयों को देने वाला है। परमात्मा वह है जो कभी किसी से पराजित नहीं होता। वह हम सब मनुष्यों द्वारा स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना करने योग्य है। दीप्ति आर्या जी ने कहा कि गुरुकुलों में छात्र व छात्राओं से अनुशासन का दृणता से पालन कराया जाता है। उन्होंने मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा तथा मानवता का उल्लेख किया और इन पर विस्तार से प्रकाश भी डाला।
आचार्या दीप्ति आर्या ने आगे कहा कि हमारी शिक्षा नीति हमें मानव बनने की प्रेरणा नहीं देती। मनुष्य संसार में खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है। उन्होंने कहा कि वेदों के अनुसार हमें कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिये। हमें रात्रि शयन से पूर्व दिन में किये गये अपने कार्यों का निरीक्षण करना चाहिये। हमें सोचना चाहिए कि कहीं हम परमात्मा से दूर तो नही जा रहे हैं। हम सबको प्रतिदिन ईश्वर के उपकारों को स्मरण करके उसकी उपासना करनी चाहिये। उन्होंने बताया कि कि त्यागपूर्वक जीवन व्यतीत करना वेदों का सन्देश है। दीप्ति आर्या जी ने कहा कि मनुष्य जब मरता है तो अपने साथ अपने कर्म संचय को लेकर जाता है, इसलिये मनुष्य को शुद्ध व पवित्र कर्म ही करने चाहिये, अशुभ व पाप कर्म नहीं करने चाहिये। अपने व्याख्यान को विराम देते हुए गुरुकुलीय शिक्षा में दीक्षित स्नातिका दीप्ति आर्या जी ने श्रोताओं को कहा कि अपने जीवन को नैतिक मूल्यों से सम्पन्न कीजिये और प्रतिदिन प्रातः व सायं वैदिक विधि से ईश्वर की उपासना कीजिये। दीप्ति आर्या जी के सम्बोधन के बाद एक बालक ने एक गीत सुनाया जिसके शब्द थे ‘कैसी भारी भूल हुई थी क्या दिलों में ठान लिया। जब इस देश के लोगों ने पत्थर को ईश्वर मान लिया।।’ इस गीत की उपस्थित सभी लोग ने पसन्द किया।
इसके बाद भी कार्यक्रम जारी रहा और इसमें मुख्यतः डा. महावीर मुमुक्षु, मुरादाबाद तथा आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी के व्याख्यान सहित आर्य भजनोपदेशक श्री नरेश दत्त आर्य जी के भजन हुए। इन उपदेशों एवं भजनों को हम एक पृथक लेख के माध्यम से प्रस्तुत करेंगे। कार्यक्रम यथासमय सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य