उधर कांग्रेस की इस पशोपेश का पूरा लाभ भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी चुनावी मैदान को पूरी तरह अपने पक्ष में करके लेने पर आमादा हैं। वह पी.एम. और उनकी पार्टी पर जोरदार हमला रोजाना बोल रहे हैं और कांग्रेस को वह सचमुच बचाव की मुद्रा में ले आने में सफल रहे हैं। कांग्रेस के लिए उन्होंने अपना पहला हमला स्वयं को राष्ट्रवादी हिंदू कहकर बोला तो दूसरा कांग्रेस के खाद्य सुरक्षा कानून का मखौल उड़ाकर बोला है। तीसरा हमला नरेन्द्र मोदी ने ‘कांग्रेेस को धर्मनिरपेक्षता के बुरके में छिपी हुई’ कहकर बोला है। कांग्रेस के पास अभी तक नरेन्द्र मोदी के इन हमलों का कोई जवाब नही है। उसके रणनीतिकार इन बमों की काट करने के बजाए इनकी मारक क्षमता को देखकर परेशान हैं। वे हतप्रभ हैं और उनसे कोई जवाब देते नही बन रहा है।
नरेन्द्र मोदी के स्वयं को राष्ट्रवादी हिंदू कहने पर पूरा बवाल मचा है। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने धर्मनिरपेक्षता की पंगु परिभाषा को जिस प्रकार शुद्घ करके धर्मनिरपेक्ष नेताओं को बताया है कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ कानून के समक्ष सभी समान और तुष्टिकरण किसी का नही है, उससे भी अभी तक धर्मनिरपेक्षता को अपने अपने ढंग से परिभाषित करने वाले नेताओं को कुछ सोचने पर विवश होना पड़ा है। हिंदुत्व के मुताबिक यह देश सबका है और इसके आर्थिक संसाधनों पर प्रत्येक नागरिक का अधिकार है। सम्प्रदाय के आधार पर यहां किसी का पक्ष पोषण नही होता है और ना ही किसी का शोषण होता है। इससे बेहतर कोई पंथनिरपेक्ष शासन नही हो सकता। साम्प्रदायिकता सचमुच वही है जिससे कुछ नेताओं ने एक सम्प्रदाय विशेष को तुष्टिकरण के माध्यम से अपना केवल वोट बैंक समझना शुरू किया और आज तक कर रहे हैं। जिन लोगों ने देश के आर्थिक संसाधनों पर पहला हक केवल मुस्लिमों का माना और शरीयत के प्राविधानों को लागू करने की छूट देकर देश में ‘दो विधान’ की खुली पैरोकारी की वही तो साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं। एक राष्ट्रवादी हिंदू इस प्रकार की सोच नही रखता। इसलिए कोई हिंदुत्ववादी व्यक्ति साम्प्रदायिक नही हो सकता। इस देश में जैन, बौद्घ, सिक्ख, ईसाई, पारसी आदि सदियों से रहते आये हैं और रह रहे हैं। उन्हें कभी भी पूजा विधि की भिन्नता के आधार पर इस देश के बहुसंख्यकों ने देश छोड़ने के लिए नही कहा और ना ही किसी भी प्रकार से उत्पीड़ित करने का प्रयास किया। पूजाविधि वैसे भी हिंदू समाज में एक नही अनेक हैं, जब ये आपस में सहिष्णु हैं तो दूसरे की पूजाविधि पर इन्हें स्वभावत: ही कोई परेशानी नही होती, उन्होंने उस विधा में जीना सीख लिया है और इसे अपने जीवन का श्रंगार और संस्कार बना लिया है।
यहां तक कि दस हिंदुओं की उपस्थिति में एक मुसलमान अपनी नमाज आराम से पढ़ लेता है उसे कभी तंग नही किया जाता, क्योंकि वह भी उनकी नजरों में एक इंसान है। यही सोच और परिवेश सच्ची भारतीयता है। नरेन्द्र मोदी ने इस सच को गुजरात के मानचित्र में देश के लोगों को उतारकर दिखाया है।
हमारा मानना है कि भारतीयता की इसी पहचान को कायम रखने के लिए ही देश का शासन कृत संकल्प हो। फिर चाहे शासन भाजपा का हो या कांग्रेस का अथवा किसी अन्य पार्टी या गठबंधन का। भारत में ना तो मुस्लिम कोई समस्या है और ना ही कोई अन्य वर्ग या सम्प्रदाय। यहां की वास्तविक समस्या है शासन की छद्म धर्मनिरपेक्षता और अतार्किक तुष्टिकरण की नीति। यदि ये दोनों चीजें ठीक कर ली जाएं तो सारे देश का माहौल सुधर सकता है।
हम चाहेंगे कि अगला चुनाव छद्म धर्मनिरपेक्षता व तुष्टिकरण बनाम वास्तविक पंथ निरपेक्षता अथवा हिंदुत्व के नाम पर लड़ा जाए। जिससे देश की परंपराओं और ऐतिहासिक विरासत में आस्था या अनास्था रखने वाले लोगों का पता जनता को चल सके। कांग्रेस नमो को गाली देने की बजाए इन दोनों हिंदुओं पर अपनी स्थिति साफ करे। देश की जनता अब स्पष्टता चाहती है और देश के राजनीतिक दलों व उनके नेताओं से देश के प्रति पूरी पारदर्शिता और ईमानदारी बरतने की अपेक्षा करती है। देश को गुमराह करते करते बहुत कुछ क्षति पहुंचायी जा चुकी है। अब यह सिलसिला बंद होन चाहिए। यह कहना ठीक है कि विचार धारा चाहे हिंदुत्व की हो चाहे धर्मनिरपेक्षतावादिता की इनसे खाने को कुछ नही मिलता है। वास्तव में राजनीतिक विचारधाराएं ही होती हैं जो देश को दिशा देती हैं। अब तक कांग्रेस की विचारधारा ने जो कुछ किया है वह सबके सामने है। अब नमो की हिंदुत्व की विचारधारा को भी देखा जाए। परंतु शर्त ये है कि इसके लिए वह पूरी ईमानदारी से काम करें उनका हिंदुत्व भी कहीं तुष्टिकरण में अटल जी की सरकार का अनुयायी न होकर रह जाए और ना ही कहीं आडवाणी के जिन्ना प्रेम में कहीं जाकर प्रकट हो। सबके लिए काम हो, सबके लिए संरक्षण हो और प्रत्येक आतंकी के लिए हाथ में मजबूत डंडा हो-बस देश की आवाज केवल और केवल यही चाहती है। क्योंकि यह सच है कि देश में कानून व्यवस्था तभी मजबूत रह सकती है जब शासन के डंडे का आतंक समाज की व्यवस्था को दूषित करने वाले लोगों के मन मस्तिष्क में पहले से ही विद्यमान हो। साम्प्रदायिक दंगे समस्याओं के समाधान नही हैं, बल्कि इनसे समस्याएं और उलझती हैं, जबकि इस देश में दंगों की खेती को कुछ लोगों ने अपना कारोवार बना लिया है। अब समय आ गया है कि ऐसी सोच पर लगाम लगनी ही चाहिए।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।