बेटे को दें स्वर्ग सुख, बेटी भोगे नर्क ।
लानत ऐसी सोच पर, करती इनमे फर्क ।।
कम अकलों की वजह से देश हुआ बरबाद ।
बेटी को जो समझते, घर का एक अवसाद ।।
बेटी हरेक सुलक्षणी, बेटे अधिक कपूत ।
बेटी घर को पालती, अलग जा बसे पूत ।।
रहती है ससुराल में, मन भटके निज ग्राम ।
माँ-पापा के हाल ले, किसी तरह अविराम ।।
अधिक पुत्र उद्दण्ड हैं, बेटी ढकती पाप ।
किन्तु पुत्र की चाहना, रखते क्यों माँ- बाप ।।
घर में भाई मारता, बाहर लुच्चों से तंग ।
घर बाहर दोनों जगह, बेटी बनी पतंग ।।
क्या माता और पिता भी, दोनों होते एक ।
कन्या हो यदि कोख में, देते दुर्जन फेंक ।।
जिस माँ के वात्सल्य का,गाते गान पुराण ।
माता से डायन बने, ले बेटी के प्राण ।
झूठे मान – विधान पर, बेटी तोली जाय ।
कन्या भ्रूणविनाश की, परम्परा की जाय ।।
कन्या आती कोख में, लेते हैं जंचवाय ।
माँ-बापू एकराय से, देते कत्ल कराय ।।
बंद करो अपराध यह, बेटी है हर नेक ।
बेटी प्रेम प्रसाद है, हीरा है हर एक ।।
-डा.राज सक्सेना