Categories
आज का चिंतन

आज का चिंतन-23/07/2013

पागलों से कम नहीं हैं ये भी

भगवान बचाए इनसे

डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
पागलों की खूब सारी किस्में आदिकाल से रही हैं। अब इनमें आधुनिकताओं और नवाचारों का भरपूर इस्तेमाल होता जा रहा है। आधुनिक जमाने के पागलों की हरकतें भी आधुनिक हैं और इनके व्यवहार में भी नयापन, जो हमेशा नए-नए प्रयोगों में रमता हुआ जमाने भर को कभी आप्त और कभी विस्मय मुग्ध, तो कभी भयग्रस्त कर देता है।पागलों और सनकियों की एक अजीब किस्म पिछले कुछ समय से हमारे आस-पास से लेकर दूरदराज तक व्याप्त है।god इनका दिग्दर्शन कभी प्रसन्नता तो कभी नाराजगी का माहौल खड़ा कर देने को काफी है। कुछ शुरू से पागल हैं, कुछ को जमाने ने पागल कर दिया है और कुछ ऎसे हैं जो खुद की हरकतों के मारे पागल हैं।  कोई कम है तो कोई ज्यादा।खूब सारे पागलों को हम रोजमर्रा की जिन्दगी में देखते-निहारते और अनुभव करते हैं। पागलों में गिनती के लोगों को छोड़कर हर कोई कहीं न कहीं पगलाहट में डूबा हुआ है। कोई जमीन-जायदाद के लिए पागल हो रहा है, कोई सौंदर्य और सुरा-सुन्दरी में, कोई सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए पागल हुआ जा रहा है, कोई दर्जा पाने के लिए, तो कोई रोजाना अपनी झूठी वाहवाही सुनने और चापलुसी का अनुभव करने में, कोई पॉवर का इस्तेमाल कर पागल होते हुए ब्रेक फेल हुई गाड़ी की तरह उन्मुक्त हो चला है, कोई इतना सनकी है कि खुद के आनंद को खूंटी पर टांग कर दूसरों के सुख को छीनने के प्रयासों में दिन-रात एक कर रहा है।कोई अपनी घर-गृहस्थी में पागल है, कोई दुनियादारी और दुकान-दफ्तर में। न्यूनाधिक रूप से कोई न कोई किसी न किसी प्रकार के पागलपन और सनक से घिरा हुआ जरूर है। अब परंपरागत पागलो में नए किस्म के पागल भी धड़ाधड़ शामिल होते जा रहे हैं। इनका व्यक्तित्व और लोक व्यवहार दोनों को ही सनक या पागलपन से घिरा हुआ माना जा सकता है।इन्हीं में कुछ पागलों को हम रोजाना देखते और भोगते हैं। बिना जरूरत के बिजली-पानी  और पेट्रोल-डीजल-केरोसिन का इस्तेमाल करने वाले,  धूप न हो तब भी आँखों पर काले चश्मे चढ़ाये रखने वाले,  सार्वजनिक समारोहों और स्थलों पर आदरणीय और बड़े लोगों के समक्ष बातें करते हुए चश्मे को सर पर चढ़ाये रखकर अहंकार और मूर्खता का परिचय देने वाले, पर्याप्त पार्किंग स्पेस होते हुए  भी अपने वाहनों को बीच रास्ते खड़े कर देने वाले, वाहनों में सवार होते हुए सड़कों के बीच में बातें करने वाले, वाहन चलाते हुए मोबाइल पर बातचीत करने और ईयर फोन डालकर गाने सुनने वाले, गानों और भजनों को सुनने का शौक पालते हुए रेल या बस में अथवा दूसरे सार्वजनिक स्थलों में अपने मोबाइल को तेज आवाज में बजाने वाले,  केले के छिलकों को सरे राह फेंकने वाले, थोड़ी-थोड़ी दूर में हर कहीं थूक देने वाले, गुटका और पान की पीक छोड़ने वाले, अपने शरीर के अंगों को बार-बार खुजलाने, हिलाने तथा मैल खरोंचने वाले, अपने दाँतों से नाखुन चबाने वाले, कान में आलपिन या सली डालकर मैल निकालने की आदत पालने वाले, सभा-संगोष्ठी या समारोह के दौरान आपस में बातचीत और अखबार पढ़ने वाले, बिना किसी कारण के अपने वाहनों की घंटी या हॉर्न को तेज आवाज में चलाने वाले, सड़कों पर आते-जाते, सफर के दौरान रेल-बस में आते-जाते, आपसी बातचीत में जोर से बोल कर औरों को डिस्टर्ब करने वाले, दूसरे लोगों की बातचीत में दखल देने और सुनने वाले, अखबार या मैग्जीन पढ़ते हुए लोगो के पास या पीछे आकर पाठक बनने वाले, बिना किसी बात के बार-बार फोन और एसएमएस करने वाले, पढ़ाई-लिखाई और अपने काम की बजाय मोबाइल पर बातचीत, गाने सुनने, फेसबुक तथा अन्य साईट्स चलाने वाले, एसएमएस को फोरवर्ड करने की आदत पाले हुए, टेम्पों और दूसरे वाहनों में तेज आवाज में गाने सुनवाने और सुनने वाले, अपने काम-धाम को छोड़कर चौराहों, गलियों, पाटों, पेढ़ियों व सर्कलों, दुकानों के आगे बैठकर घंटों बतियाने वाले, मन्दिरों में डेरे जमाकर दुनिया जहान की बातें करने वाले, मन्दिरों में माइक का इस्तेमाल करने वाले आदि आदि।ये सभी विशेषताएं यह स्पष्ट बताती हैं कि ये हरकतें करने वाले सामान्य नहीं हैं बल्कि किसी न किसी रूप में असंतुष्ट, अतृप्त और उद्विग्न हैं और इसी कारण से असामान्य हरकतें करते रहते हैं। इस वैज्ञानिक युग में आविष्कारों के साथ ही नई-नई किस्मों के पागलों का आविष्कार भी हो रहा है। इन्हें देखें और अपने आप मूल्यांकन करें। कहीं हम या हमारे घर-परिवार अथवा पास-पड़ोस या अपने क्षेत्र के लोग तो कहीं इस तरह के असामान्य नहीं हैं।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version