भारत के लिए दिल में बहुत कालिमा लिए हैं महबूबा मुफ्ती

 

 

श्याम सुंदर भाटिया

कश्मीर की फ़िज़ा बदली-बदली सी है। हवा जहरीली है। शब्द कठोर हैं। सूबे के नजरबंद नेताओं को भले ही आजाद कर दिया गया हो, लेकिन उनके मंसूबे बेहद खतरनाक हैं। इनमें महबूबा मुफ़्ती खूब आग उगल रही हैं। अनुच्छेद 370 और 35ए की विदाई के बाद सूबे में तेजी से बहाल हो रहे अमन पर पलीता लगाने की कोशिश हो रही है। गुपकार की छतरी के नीचे सारे मुखालिफ लामबंद हो रहे हैं। गुपकार का लीडर नेशनल कांफ्रेंस के फ़ारुक़ अब्दुल्ला को चुन लिया गया है। वह 370 की बहाली के लिए चीन की शरण में जाने को आतुर हैं तो पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती की जुबां विषैली और तेवर भी देशद्रोह की मानिंद हैं। आपा तक खो बैठी हैं। कहती हैं, डाकुओं ने डाके में हमारा झंडा छीन लिया है।  कश्मीर के पुराने स्टेटस की बहाली होने तक तिरंगा नहीं उठाऊंगी। चुनाव लड़ने में भी कोई दिलचस्पी नहीं है। जम्मू-कश्मीर को पुराना दर्जा वापस दिलाने में जमीं-आसमां एक कर देंगे। महबूबा के तल्ख तेवर यहीं नहीं थमे, बोलीं, भारत सिर्फ जम्मू-कश्मीर की जमीन चाहता है, वहां के लोग नहीं। कश्मीरी युवाओं को भी जमकर भड़का रहीं हैं। कहती हैं, कश्मीरी युवाओं को सुरक्षित रखने के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं। शिवसेना सांसद संजय राउत गुपकार के इन नेताओं- विशेषकर फ़ारुक़ अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती के आग उगलने वाले बयानों को राष्ट्रद्रोह श्रेणी में मानते हैं। ये चीन की मदद से कश्मीर में धारा 370 लागू कराना चाहते हैं। श्री राउत ने केंद्र सरकार से अपील की है, इन नेताओं के खिलाफ केंद्र को जल्द से जल्द और बेहद कठोर कानूनी शिकंजा कसना चाहिए ताकि कश्मीर में हिंसा का पुराना दौर लौटकर न आए।


करीब 14 महीने की हिरासत के बाद रिहा हुईं जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने सियासी गतिविधियां शुरु कर दी हैं। फर्स्ट टाइम किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आईं महबूबा ने घोषणा की है, पीडीपी जम्मू-कश्मीर को वही दर्जा वापस दिलाने में जमीन-आसमान एक कर देगी। वह अनुच्छेद 370 फिर से लागू होने तक कोई और झंडा नहीं उठाएंगी। पीसी के दौरान टेबल पर जम्मू-कश्मीर के झंडे के साथ पार्टी का झंडा रखा हुआ था, जबकि अनुच्छेद 370 हटने के साथ ही पूरे जम्मू-कश्मीर में सिर्फ तिरंगा फहराने की अनुमति है। जम्मू-कश्मीर के झंडे की तरफ इशारा करते हुए बोलीं, जब तक मेरा झंडा हमारे पास वापस नहीं आ जाता, मैं कोई भी दूसरा झंडा-तिरंगा नहीं उठाऊंगी। फिलहाल मेरा झंडा मेरे सामने है। महबूबा के इस रुख पर बीजेपी ने फौरी अपनी गहरी नाराजगी जता दी है। राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री कवींद्र गुप्ता ने कहा, वह जमाना चला गया, जब दो झंडे हुआ करते थे। बीजेपी का वादा था, एक विधान, एक निशान, एक प्रधान और हमने सत्ता में आने पर उसे पूरा किया। ये लोग पता नहीं, कौन से वहम में जी रहे हैं। इनको भी चाहिए, जम्मू-कश्मीर के झंडे को अब उतार फेंके। पूरे भारत का एक ही झंडा है और वह है तिरंगा। उन्हें भी तिरंगे का सम्मान करना चाहिए। केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहले जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान था। वहां के नियम कायदों के साथ झंडा भी पूरे देश से अलग था। जम्मू-कश्मीर के सरकारी कार्यालयों में राज्य के झंडे के साथ तिरंगे को फहराया जाता था। हालांकि अनुच्छेद 370 हटने के साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म हो गया। भारतीय संविधान के वहां लागू होते ही राज्य का झंडा भी निष्प्रभावी हो गया।

महबूबा कश्मीर के युवाओं को भी उग्र करने वाली भाषा बोल रही हैं। बोलीं, कश्मीरी युवाओं को सुरक्षित रखने के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं। पहले जो कानून बनाए गए थे, जनता से सलाह ली गई थी। वे अवाम को सहूलियत देने वाले कानून थे, लेकिन अब जो कानून कश्मीरियों पर थोपे जा रहे हैं, उनसे युवा को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हम इसे कतई नहीं बर्दाश्त करेंगे। पीडीपी नेता मानती हैं, पांच अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान समाप्त कर जम्मू-कश्मीर के लोगों को अवैध और असंवैधानिक तरीके से शक्तिहीन कर दिया है। यह बदलाव हमें कतई मंजूर नहीं है। इसके खिलाफ लामबंद होकर लड़ाई लड़ी जाएगी। युवाओं से मुखातिब महबूबा ने कहा, हमने अपना जीवन जी लिया है। अब हमें युवाओं और उनके बच्चों के बारे में सोचना होगा। धमकी सरीखे लहजे में बोलीं, हमारे युवाओं के भविष्य की रक्षा के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं। अतीत में उनकी पार्टी ने पुलिस कार्यबल की कथित ज्यादतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। आतंकवादियों का आत्मसमर्पण कराया, लेकिन अब पार्टी जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की बहाली पर ध्यान केंद्रित करेगी।

पाक और चीन के प्रति महबूबा का प्रेम किसी न किसी बहाने छलक ही जाता है। कहती हैं, पीडीपी का हमेशा एजेंडा रहा है, जम्मू-कश्मीर अमन का पुल बनना चाहिए। अपने वालिद मुफ्ती मोहम्मद सईद का स्मरण करते हुए बोलीं, मुफ़्ती साहब का ख्वाब रहा है कि जम्मू-कश्मीर को हिंदुस्तान और हमसाया मुल्क- पाकिस्तान और चीन के बीच पुल बनाना होगा। केंद्र सरकार को वही फॉर्मूला अपनाना होगा। महबूबा नजरबंदी से मुक्ति के बाद से कभी नरम तो कभी गरम तेवर अपनाती रहती हैं। महबूबा पानी पी-पीकर कभी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी तो कभी भारतीय जनता पार्टी को परोक्ष और अपरोक्ष रुप से निशाना बनाती रहती हैं। महबूबा कहती हैं, बीजेपी जम्मू-कश्मीर के संसाधन लूट कर ले जाना चाहती है। सवाल पूछा, बीजेपी ने गरीब को दो वक्त की रोटी नहीं दी, वह जम्मू-कश्मीर में जमीन क्या खरीदेगा? दिल्ली से रोज एक फ़रमान जारी होता है, अगर आपके पास इतनी ताकत है तो चीन को निकालो, जिसने लद्दाख की ज़मीन खाई है, चीन का नाम लेने से तो थरथराते हैं।
जम्‍मू-कश्‍मीर के विशेष दर्जे की बहाली के लिए लगभग सात सियासी दलों का गुट- पीपल्‍स अलायंस फॉर गुपकार डिक्‍लरेशन इन दिनों जनता तक अपनी बात पहुंचाने की कवायद में जुटा है। गुट जनता तक पहुंचने के लिए रणनीति बना रहा है। गुपकार गुट पंचायत और डिस्ट्रिक्‍ट डवलपमेंट काउंसिल के चुनावों में हिस्‍सा लेने की संभावना भी तलाश रहा है। यह चुनाव जल्‍द होने हैं। हालाँकि गुपकार नेताओं के लिए यह भ्रम की स्थिति है। कभी उमर अब्दुल्ला तो कभी महबूबा कहती हैं, चुनाव नहीं लड़ेंगे। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के आवास पर गुपकार अलायंस की हुई बैठक में जम्‍मू-कश्‍मीर के पूर्व सीएम और नेशनल कॉन्‍फ्रेंस के नेता फ़ारुक़ अब्‍दुल्‍ला को गुट का चेयरमैन तो महबूबा मुफ़्ती वाइस प्रेसिटेंट चुनी गईं। उल्लेखनीय है, जम्‍मू-कश्‍मीर पुनर्गठन बिल पास करके जम्‍मू-कश्‍मीर का विशेष दर्जा समाप्‍त करके उसे जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख नाम के दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था। बीजेपी सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 अर्जियां दाखिल हैं।
महबूबा की सोच है, भाजपा देश के संविधान को बदलकर अपना घोषणापत्र थोपना चाहती है लेकिन ऐसा नहीं हो पाएगा। हिटलर जैसे कई लोग आए और चले गए । यह तानाशाही नहीं चलेगी। क्या 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधन कर भाजपा को ताकत प्रदान करने के पीडीपी जिम्मेदार नहीं है तो वह कहती हैं, कश्मीर का विशेष दर्जा विधानसभा या जम्मू-कश्मीर सरकार ने समाप्त नहीं किया, बल्कि संसद ने किया है। अगर कोई अफसोस है तो यह है, हमने उसी पार्टी के प्रधानमंत्री पर विश्वास किया, जिससे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाता था। हमें भरोसा था कि वह संविधान का अनादर नहीं करेंगे। कौन जानता था कि वह तब ऐसा करेंगे, जब उनके पास पूर्ण बहुमत होगा।

जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक और सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) मानते हैं, कश्मीर में स्थित मस्जिदों और मदरसों में 1990 से पहले वाला सूफियाना माहौल अब नहीं रहा है। इन संस्थाओं और वहां काम करने वालों की शिनाख्त बहुत जरुरी है। पुलवामा और शोपियां के मदरसे जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। मदरसे में दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम, पुलवामा और अनंतनाग के युवक आते हैं। जांच एजेंसियों के मुताबिक, ये इलाके आतंकी वारदातों के गढ़ बन चुके हैं। 1990 से पहले इन मदरसों में कला संस्कृति और शिक्षा की बात होती थी। मुहब्बत का पैगाम मिलता था। कट्टरता के लिए कोई जगह नहीं थी। अब स्थिति बदल गई है। सरकार को बिना कोई देरी किए सभी मदरसे अपने नियंत्रण में ले लेने चाहिए। अगर किसी को धार्मिक शिक्षा लेनी है तो वह अलग से पढ़ाई कर सकता है। यहां कौन प्रचारक हैं? नियुक्ति का तरीका क्या है? फंडिंग कहां से आ रही है? ये सब सवाल मौज़ूं हैं। केंद्र को तत्काल इन नेताओं के भड़काऊ बयानों पर रोक लगानी होगी। सबके विकास की बात हो, लेकिन गुपकार जैसे संगठन की एक्टिविटीज पर पैनी नजर रखनी होगी।

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