आज का चिंतन-27/07/2013
भिखारियों को दोष न दें
हम कहाँ कम हैं इनसे
डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
[email protected]
लोग दोष देते हैं भिखारियों को। और जाने क्या-क्या बक जाते हैं, सुना जाते हैं, उलाहनों की बारिश करते रहते हैं और दुत्कारते हुए वो सब कुछ कह व कर दिया करते हैं जो नहीं करना चाहिए।हम लोग भिखारियों को हीन और घृणित मानते रहे हैं और इन्हें ही हमेशा दोषी मानते हुए समाज की बुराइयों और जमाने में खराब दिखने का ठीकरा इन्हीं के सर पर फोड़ते हुए यहाँ तक कह जाते हैं कि काम-धाम कुछ करते नहीं, माँगने आ गए, आगे जाओ, कुछ मेहनत-मजूरी करो… आदि…आदि।आजकल हम लोगों का स्वभाव ही बन गया है कि खुद की कमियों और गलतियों की ओर मुँह मोड़े रहते हैं और दूसरों की गलतियाँ तलाशने और मुखर होकर इनका जिक्र करने में कभी पीछे नहीं रहा करते। अक्सर हम औरों पर कीचड़ उछालते रहते हैं, दूसरों को दोष देने में आनंद का अनुभव करते हैं लेकिन हमें यह भान ही नहीं रहता कि हम खुद भी कहाँ कम हैं।लोग खुद किसी न किसी कमजोरी या अपराधी भूमिका में हैं अथवा ऎसे लोगों को सहयोग करते हैं जिन्हें समाज पसंद नहीं करता अथवा ऎसे लोगों के साथ रहते हैं जो जमाने और अच्छे लोगों की नज़रों में बुरे कहे जाते हैं,उन्हें इस बात का कोई अधिकार नहीं कि वे औरों पर किसी प्रकार की टीका-टिप्पणियां करें, खासकर अच्छे और सज्जन लोगों पर तो उन्हें टिप्पणी का कोई हक़ है ही नहीं।भीख के संदर्भ को व्यापक तौर पर देखें तो साफ पता चलता है कि यह विपन्न, विवश, असहाय और अनकमाऊ, मेहनत-मजूरी नहीं कर सकने वाले और दूसरों के सहारे के बगैर जिन्दा नहीं रह सकने वाले लोग हैं जिन्हें हमारी थोड़ी सी मदद की जरूरत है।यहाँ हम उन भिखारियों की वकालात नहीं कर रहे हैं जिन्होंने भीख को धंधा बना रखा है लोगों की धार्मिक और मानवीय भावनाओं के शोषण का। यहाँ सिर्फ भिखारियों के चरित्र और दूसरे लोगों के चरित्र का भिखारियों से संबंध किस प्रकार का आभासित होता है, उसी पर चर्चा कर रहे हैं।भिखारी तो लाज-शरम और स्वाभिमान छोड़कर भीख माँग कर पेट भरता है और इस भीख की प्राप्ति के लिए भी वह भगवान का स्मरण करता है और भगवान के नाम पर भीख माँगता है। जबकि हमारे आस-पास ऎसी-ऎसी किस्मों के लोग हैं जो अपने आपको कुलीन, ईमानदार, स्वाभिमानी और श्रेष्ठ मानते रहे हैं लेकिन बिना कुछ लिये कोई काम न ये करते हैं, न ही बिना इन्हें दान-दक्षिणा दिए कोई काम इनसे करवाया जा सकता है। इन्हें न मानव धर्म से कोई सरोकार है, न भगवान से।कुछ तो ऎसे हैं जो वे ही काम करते हैं जिसमें कुछ मिलता है। और कुछ न मिलने की संभावना हो तो ये कोई काम नहीं करते। कई ऎसे हैं जिनके बारे में साफ कहा जाता है कि उनसे कोई काम करवाना हो तो कुछ दे दो, अपने आप काम हो जाएगा, और नहीं दोगे तो जिन्दगी भर चप्पलें घिसते रहो, कुछ होने वाला नहीं है।कुछ लोग दान-दक्षिणा न मिले तो बना बनाया काम बिगाड़ने में पीछे नहीं रहते। हमारे आस-पास से लेकर क्षेत्र भर में ही नहीं बल्कि सर्वत्र ऎसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो बिना कुछ लिये-दिये कोई काम नहीं करते हैं। इनमें कई बेशरम होकर सीधे मांग लेते हैं और बाकी के बारे में समझदार लोग उनकी बहानेबाजी, टालमटोल और लेटलतीफी का अर्थ अपने आप निकाल लेते हैं।हम खुद भी भिखारियों जैसा व्यवहार करने लग जाते हैं जबकि हमारे पास इतना सब कुछ भगवान का दिया हुआ है कि आराम से बेहतर जिन्दगी जी सकते हैं। इसके बावजूद हमारा यह भिखारी व्यवहार और वह भी दोहरे-तिहरे चरित्र को अभिव्यक्त करने वाला, कहाँ तक जायज है।हम खुद सोचें और किसी भी रूप में भीख पाने की तमन्ना से मुक्ति पाएं, तभी हमारा मनुष्य होना सफल है। वरना भिखारियों की खूब किस्में बरकरार हैं, लोग हमारे सामने भले कुछ न कहें, मगर हमारा नाम इन भिखारियों में शामिल ही मानते हैं।