गरीबी, फटेहाली और तस्करी का धंधा
अनिल अनूप
गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठाकर बच्चों और महिलाओं की तस्करी धड़ल्ले से हो रही है।
गरीब घर के बच्चों को कर्नाटक में काम दिलाने के बहाने मानव तस्करी करने वाले एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश रेलवे सुरक्षा बल ने किया है। स्पेशल ट्रेन में छापा मारकर 16 नाबालिग बच्चे को छुड़ाया गया। बच्चों को ले जा रहे तीन मानव तस्करों को आरपीएफ ने गिरफ्तार कर लिया है। सभी पूर्वांचन के गांवों के हैं। 12 से 15 साल की उम्र के इन बच्चों को चाइल्ड लाइन के सुपुर्द कर दिया गया।
देश में मानव तस्करी के पीडि़तों की संख्या अस्सी लाख से ज्यादा हो सकती है, जिसका बड़ा हिस्सा बंधुआ मजदूरों का है। कोरोना संक्रमण काल में तो मानव तस्करी को लेकर स्थिति और बदतर हुई है। सीमा पार से भी मानव तस्करी की घटनाएं इन दिनों बढ़ी हैं, जिसे देखते हुए हाल ही में बीएसएफ़ द्वारा ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अलर्ट जारी किया गया है। बीएसएफ़ अधिकारियों का कहना है कि कोलकाता, गुवाहाटी, पूर्वोत्तर भारत के कुछ शहरों और दिल्ली तथा मुंबई जैसे शहरों में नौकरी दिलाने का लालच देकर गरीबों और ज़रूरतमंद लोगों को सीमा पार से लाने के लिए तस्करों ने कुछ नए तरीकों पर ध्यान केन्द्रित किया है। दरअसल कोरोना संक्रमण काल में रोजगार छिन जाने के चलते लोगों को लालच देकर सीमा पार से तस्करी के माध्यम से लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। असम, बिहार इत्यादि बाढ़ प्रभावित इलाकों में भी मानव तस्कर सक्रिय हो रहे हैं।
भारत में मानव तस्करी को लेकर पिछले दिनों अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट ‘ट्रैफिकिंग इन पर्संस रिपोर्ट-2020’ में भारत को गत वर्ष की भांति टियर-2 श्रेणी में रखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने 2019 में मानव तस्करी जैसी बुराई को मिटाने के लिए प्रयास तो किए लेकिन इसे रोकने से जुड़े न्यूनतम मानक हासिल नहीं किए जा सके। रिपोर्ट के अनुसार भारत आज भी वर्ल्ड ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मानचित्र पर एक अहम ठिकाना बना हुआ है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि माओवादी समूहों ने हथियार और आईईडी को संभालने के लिए छत्तीसगढ़, झारखंड इत्यादि में 12 वर्ष तक के कम उम्र बच्चों को जबरन भर्ती किया और मानव ढ़ाल के तौर पर भी उनका इस्तेमाल किया गया। यही नहीं, माओवादी समूहों से जुड़ी रही महिलाओं और लड़कियों के साथ माओवादी शिविरों में यौन हिंसा भी की जाती थी। सरकार विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जम्मू-कश्मीर में भी सशस्त्र समूह 14 वर्ष तक के कम उम्र किशोरों की लगातार भर्ती और उनका इस्तेमाल करते रहे हैं।
भारत में मानव तस्करी की समस्या नासूर का रूप लेती जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार विगत एक दशक में भारत में हुई मानव तस्करी में 76 फीसदी लड़कियां और महिलाएं हैं। मानव तस्करी का धंधा कम समय में भारी मुनाफा कमा लेने का जरिया है। इसी लालच के चलते यह समाज के लिए गंभीर समस्या बन रहा है। ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के बाद मानव तस्करी को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध माना गया है। एशिया में तो भारत ऐसे अपराधों का गढ़ माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार किसी व्यक्ति को डराकर, बल प्रयोग कर या दोषपूर्ण तरीके से भर्ती, परिवहन अथवा शरण में रखने की गतिविधि तस्करी की श्रेणी में आती है। देह व्यापार से लेकर बंधुआ मजदूरी, जबरन विवाह, घरेलू चाकरी, अंग व्यापार तक के लिए दुनिया भर में महिलाओं, बच्चों व पुरूषों को खरीदा व बेचा जाता है और आंकड़ों पर नजर डालें तो करीब 80 फीसदी मानव तस्करी जिस्मफरोशी के लिए होती है जबकि 20 फीसदी बंधुआ मजदूरी या अन्य प्रयोजनों के लिए।
एनसीआरबी के अनुसार तस्करी के मामलों में भारत में मानव तस्करी दूसरा सबसे बड़ा अपराध है। कुछ आंकड़ों के मुताबिक पिछले करीब एक दशक में ही यह कई गुना बढ़ा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। लगभग हर राज्य में मानव तस्करों का नेटवर्क फैला है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ तो मानव तस्करी के मुख्य स्रोत और गढ़ माने जाते हैं। मानव तस्करी के दर्ज होने वाले 70 फीसदी से अधिक मामले इन्हीं राज्यों के होते हैं, जहां लड़कियों को रेड लाइट एरिया के लिए भी खरीदा-बेचा जाता है।
वर्ष 2019 की रिपोर्ट में तस्करी की राष्ट्रीय प्रकृति पर प्रकाश डाला गया है जिसके अनुसार 60% मामलों में पीड़ितों को उनके देश की सीमाओं से बाहर ले जाने के बजाय देश के अंदर ही उनकी तस्करी की जाती है।
महिलाएँ और लड़कियाँ सबसे अधिक असुरक्षित हैं। 90% महिलाओं एवं लड़कियों की तस्करी यौन शोषण के लिये की जाती है।
जानकारी के अनुसार दक्षिण एशिया में 85% मानव तस्करी बलात् श्रम के लिये की जाती है। भारत में सर्वाधिक प्रभावित राज्य पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड, असम हैं।
मानव तस्करी के खिलाफ सरकार की पहल
योगी सरकार ने महिलाओं और बच्चों की तस्करी, बाल श्रम और देह व्यापार पर रोक लगाने के लिए शिकंजा कस दिया है। प्रदेश में 40 नये एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट का गठन किया जायेगा। जो जनपदों में थाने के रूप में काम करेंगी और खुद अपराधिक मामलों की एफआईआर दर्ज कर उसकी विवेचना करेंगी।
2016 में प्रदेश के 23 जिलों में मानव तस्करी की रोकथाम के लिए एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट को थाने का दर्जा दे दिया गया था। इनमें मुजफ्फरनगर, कुशीनगर, बाराबंकी, खीरी, बहराइच, बलरामपुर, बदायूं, सिद्धार्थनगर, उन्नाव, हरदोई, श्रावस्ती, मऊ, कानपुर नगर, गोरखपुर, बिजनौर, जौनपुर, आजमगढ़, फिरोजाबाद, पीलीभीत, सीतापुर, बलिया, बागपत नगर एवं शाहजहांपुर शामिल किए गए थे। योगी सरकार ने प्रदेश में एंटी ट्रैफिकिंग यूनिट को थाने के रूप में अस्तित्व प्रदान किया। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट पर मानव तस्करी से जुड़े क्राइम की एफआइआर उनकी विवेचना और आगे की कार्रवाई की जाएगी। इसका कार्यक्षेत्र पूरा जिला होगा। मानव तस्करी रोकने के लिए अब हर जिले में एक एन्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग इकाई का थाना होगा। शासन ने 40 नए जिलों में इन थानों की स्थापना के लिए स्वीकृति दी है। 20 अक्टूबर को इसका शासनादेश भी जारी कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश में पहले कुल 35 जिलों में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग इकाई के थाने थे। यह थाने 2011 और 2016 में स्थापित हुए थे। नए थाने केंद्र सरकार के विमन सेफ्टी डिवीजन के निर्देश के बाद स्थापित किये जा रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा इसके लिए धन भी आवंटित कर दिया गया है।
बहरहाल, भारत में मानव तस्करी की समस्या धीरे-धीरे नासूर का रूप लेती जा रही है। करीब दो साल पहले पुणे के मदरसे रूपी यतीमखाने का एक मामला सामने आया था, जहां से 36 ऐसे बच्चों को छुड़ाया गया था, जिनमें से कोई भी यतीम नहीं था बल्कि बिहार-झारखंड से उन बच्चों के परिजनों को बहला-फुसलाकर अच्छी तालीम देने के नाम पर लाया गया था और मदरसे में न केवल उनका यौन शोषण किया जाता था बल्कि मदरसा मानव तस्करी का अड्डा भी बना था। देशभर के विभिन्न हिस्सों से मानव तस्करी के ऐसे मामले लगातार सामने आते रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक विश्वभर में दो करोड़ से भी ज्यादा लोग मानव तस्करी से पीडि़त हैं, जिनमें से करीब 68 फीसदी को जबरन मजदूरी के काम में लगाया जाता है। करीब 26 फीसदी बच्चे और 55 फीसदी महिलाएं और लड़कियां तस्करी की शिकार होती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार विगत एक दशक में भारत में हुई मानव तस्करी में 76 फीसदी लड़कियां और महिलाएं हैं।
मानव तस्करी आंकड़ों में
राष्ट्रीय अपराध रिकोर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े के अनुसार वर्ष 2016 में भारत में मानव तस्करी के 8,000 से अधिक मामले सामने आए हैं, जिसमें 182 विदेशियों सहित कुल 23,000 पीड़ितों को रिहा कराया गया है.
देशभर में वर्ष 2015 के 6,877 मामलों की तुलना में पिछले साल कुल 8,312 मामले सामने आए.
एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में कुल 15,379 पीड़ितों में से 9,034 पीड़ितों यानी कुल 58 प्रतिशत की आयु 18 वर्ष से कम थी. वहीं वर्ष 2016 में रिहा कराए गए 14,183 पीड़ितों की आयु 18 वर्ष से कम थी.
मानव तस्करी के सबसे अधिक 3,579 मामले (कुल का करीब 44 प्रतिशत) पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए. वर्ष 2015 में असम पहले और पश्चिम बंगाल 1,255 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर था.
असम में वर्ष 2016 में मानव तस्करी के 91 मामले दर्ज किए गए, जो वर्ष 2015 के 1,494 मामलों की तुलना में काफी कम थे. सूची में इस बार राजस्थान दूसरे नंबर पर रहा जहां 1,422 मामले दर्ज किए गए. इसके बाद गुजरात में 548, महाराष्ट्र में 517 और तमिलनाडु में 434 मामले दर्ज किए गए.
इस सूची में दिल्ली 14वें स्थान पर रहा जहां मानव तस्करी के 66 मामले दर्ज किए गए जो वर्ष 2015 के 87 मामलों की तुलना में कम थे.
वर्ष 2016 में कुल 23,117 पीड़ितों को रिहा कराया गए, जिसके अनुसार पुलिस ने रोजाना करीब 63 लोगों को बचाया.
एनसीआरबी के आंकडे़ के अनुसार, बचाए गए लोगों में 22,932 लोग भारतीय नागरिक थे, 38 श्रीलंकाई और उतने ही नेपाली थे. रिहा कराए गए लोगों में से 33 की पहचान बांग्लादशी और 73 की थाईलैंड तथा उजबेकिस्तान सहित अन्य शहरों के नागरिकों के तौर पर हुई है.
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