सब सुखी हों और आनंदमय जीवन जिएं

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भारतीय संस्कृति में मनुष्य जीवन का सर्वोपरि उद्देश्य चार पुरुषार्थ- धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष का पालन कर आत्मोन्नति करना और जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर प्रभु से मिलना है ।


यद्यपि योग का मुख्य लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है ,साथ ही नियमित योग प्राणायाम ध्यान से असाध्य रोगों का निदान हो जाना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है ।
आरोग्य ,निर्भयता, सुख, शांति, सुरक्षा ,प्रेम, करुणा, धैर्य ,विवेक, ओज, तेज योग के परिणाम हैं ।
बिना योग के भोग, रोग, बुढ़ापा व मृत्यु देने वाला है । अतः भोगी नहीं योगी बनेंगे । भोगों को भोगने से सुख संतुष्टि व शांति पाने का उपाय वैसे ही व्यर्थ होगा जैसे अग्नि में घी डालने से वह कभी शांत नहीं होती । अतः भोग नहीं , योग समाधान है । भोगों की आग में अब स्वयं को नहीं जलायेगें ! अब तो योगा अग्नि में स्वयं को तपाकर रोग, जरा पर विजय प्राप्त कर अपने परम लक्ष्य को प्राप्त करना है ।
हे करुणामय परमात्मन् ! मेरी स्वर्ग सुख , दिव्य भोग की कोई कामना नहीं है , किंतु हे प्रभो ! रोगों के से दुखी प्राणियों के रोग व संताप समाप्त हो जायें और सब स्वस्थ व आनंदमय जीवन जियें यही शुभकामना है ।

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