वैदिक संस्कृति के ध्वजवाहक के रूप में अपनी पहचान बनाई गुरुकुल मुर्शदपुर ने : कोरोना निवारक गायत्री महायज्ञ का आयोजन कर रचा इतिहास
ग्रेटर नोएडा। ( अजय आर्य ) आर्य संस्कृति अपने आप में अनुपम और अद्वितीय है ,संसार के कल्याण के लिए विशाल यज्ञ का आयोजन करना इस संस्कृति की प्राचीन परंपरा है। सचमुच महर्षि दयानंद का मानव जाति पर यह महान उपकार है कि जब संसार वेद की परंपरा से अपना मुंह मोड़ चुका था तब उन्होंने ‘वेदों की ओर लौटो’ का जीवनप्रद संदेश देकर संसार को फिर सही मार्ग पर लाने का प्रशंसनीय कार्य किया था। दीपावली पर्व की पूर्व संध्या पर महर्षि दयानंद ने अपना यह नाशवान चोला ईश्वरीय व्यवस्था में सौंप दिया था । यह महज एक संयोग ही है कि ऋषि की स्मृति से जुड़े दीपावली पर्व की पूर्व संध्या पर यहां स्थित गुरुकुल मुर्शदपुर में आर्य प्रतिनिधि सभा गौतम बुद्ध नगर के सौजन्य और तत्वावधान में कोरोना निवारक गायत्री महायज्ञ का आयोजन किया गया है। जिसमें आर्य जगत के विभिन्न सन्यासी, विद्वानों और भजनोपदेशकों को बुलाकर लोगों का मार्गदर्शन किया जा रहा है। निश्चित रूप से गुरुकुल ने ऐसे यज्ञ का आयोजन कर जहां अपनी पहचान बनाई है वही एक इतिहास भी रच दिया है।
कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए आर्य समाज के युवा नेता आर्य सागर खारी ने हमें बताया कि यहां अभी तक आए वक्ताओं ने वेद की वैश्विक व्यवस्था पर बल दिया है ,जिसके अंतर्गत विश्व शांति का मार्ग केवल वैदिक संस्कृति को अपनाने से ही प्राप्त हो सकता है। यह यज्ञ देव मुनि जी के ब्रह्मत्व में आयोजित किया गया है। जिन्होंने अपने प्रवचन में उपस्थित ब्रह्मचारियों और लोगों को बताया कि वेद कि यह पावन आज्ञा है कि अनुव्रतः पितुः पुत्रः
अर्थात पुत्र, पिता के व्रत(आदर्श) का अनुसरण करने वाला होवे। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के मंत्र परिवार से लेकर समाज और राष्ट्र तक का निर्माण करते हैं ।जिसमें अनुव्रती पुत्र पिता की आदर्श परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।
इस यज्ञ में पहुंचे भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री नवाब सिंह नागर ने कहा कि आर्य समाज ने कृण्वन्तो विश्वमार्यम् अर्थात-पूरे विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाओ का उद्घोष कर सारे संसार में शांति व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । उन्होंने कहा कि वेद की इसी आज्ञा को शिरोधार्य कर संसार शांति के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।
वेद की इसी आदर्श व्यवस्था को आगे बढ़ाने का संकल्प व्यक्त करते हुए यज्ञ के संयोजक सरपंच रामेश्वर सिंह ने कहा कि वेद हमें जीवास्थ जीव्यासम।
अर्थात स्वयं जीवो और दूसरों को जीने दो के आधार पर जीवन व्यतीत करने की आज्ञा देता है। वेद की ऐसी आज्ञाओं को मानकर ही हम संसार का कल्याण कर सकते हैं और एक सार्थक जीवन जी सकते हैं।
आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष और आर्य जगत के जुझारू नेता महेंद्र सिंह आर्य ने कहा कि सत्येनो त्रमिता भूमिः (यजुर्वेद) अर्थात यह भूमि सत्य पर टिकी है। उन्होंने कहा कि वैदिक संस्कृति अपने आप में सत्य की उपासक है। श्री आर्य ने कहा कि ऋत और सत्य के पालन से ही जीवन उन्नति को प्राप्त करता है और धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष के मार्ग पर चलकर मानव जीवन परम कल्याण को प्राप्त होता है।
कार्यक्रम को और भी अधिक ऊंचाई देते हुए आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य विद्यादेव ने कहा कि आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्चति स पण्डित।
अर्थात- जो सब प्राणियों की आत्मा को अपनी आत्मा के समान समझता है। वही पण्डित (विद्वान) है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की पवित्र भावना से सामाजिक समरसता उत्पन्न होती है जो केवल वेदिके आदेश संदेश और उपदेश को मानने से ही संभव है।
आचार्य विद्या देव ने सामवेद के मंत्रों के आधार पर सोम शब्द की व्याख्या की… उन्होंने कहा जगत में अनेक पदार्थों के नाम सोम है सोमलता नामक औषधि भी है सोम चंद्रमा का भी नाम है सोम शरीर की जीवनी शक्ति भी है…. शरद पूर्णिमा की खगोलीय घटना की उन्होंने आरोग्य की दृष्टि से भी व्याख्या की….| वैशेषिक दर्शन के आधार पर विद्या देव जी ने आर्ष शब्द की व्याख्या की…. अंत में आचार्य जी ने कहा गायत्री के जाप यज्ञ कर्म करने से अंतःकरण पवित्र होता है… लेकिन उन्होंने कहा यह सब हमें श्रद्धा निष्ठा से करना चाहिए श्रद्धा हीन कार्य का कोई फल प्राप्त नहीं होता।