नई ऊँचाईयों को छूता कृषि उत्पादों का निर्यात

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भारत से कृषि उत्पादों के निर्यात को लेकर लगातार चिंताएं जताईं जाती रही हैं। परंतु, हाल ही के समय में केंद्र सरकार द्वारा लिए गए कई निर्णयों के चलते कृषि उत्पादों का निर्यात बहुत तेज़ी से वृद्धि दर्ज करता देखा जा रहा है। अप्रेल-सितम्बर 2019 के बीच 6 माह के दौरान भारत से कृषि उत्पादों का निर्यात 37397 करोड़ रुपए का रहा था जो अप्रेल-सितम्बर 2020 के बीच 6 माह के दौरान, 43.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए, बढ़कर 53626 करोड़ रुपए का हो गया है। वृद्धि दर में यह एक लम्बी छलाँग है। कृषि उत्पादों के निर्यात में विशेष रूप से शामिल रहे उत्पादों में मूँगफली में क़रीब 35 प्रतिशत, चीनी में 104 प्रतिशत, गेहूँ में 206 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गई है और बासमती और ग़ैर बासमती चावल का भी निर्यात में बड़ा हिस्सा रहा है।

कोरोना महामारी संकट जब पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले रहा था तब कई देशों ने भारत की तरफ़ इस उम्मीद से देखा कि उम्दा गुणवत्ता से परिपूर्ण कृषि उत्पाद वाजिब दामों पर उपलब्ध हो सकते हैं। भारत ऐसे समय में एक वैश्विक आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरकर सामने आया है। इस काल में देश के वाणिज्य मंत्रालय ने पूरे विश्व के 160 देशों में स्थित भारतीय दूतावासों से सम्पर्क किया। खाद्य सामग्री की आपूर्ति के पीछे जो दृढ़ता दिखाई दे रही है उसके पीछे योजनाबद्ध तरीक़े से कार्य किया गया है। कृषि मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, राज्य सरकारों आदि का इसमें विशेष योगदान रहा है। निर्यातकों एवं कृषकों की आपस में चर्चा कराई गई। इसके साथ ही, उद्योग संघो एवं एक्सपोर्ट प्रमोशन काउन्सिल, स्पाईसेज़ बोर्ड, प्लांटेशन बोर्ड, आदि से भी चर्चा की गई और ये सुनिश्चित किया गया कि सप्लाई चैन में किसी भी प्रकार की समस्या खड़ी नहीं हो। पहिले उन 12 देशों को चिन्हित किया गया जहां भारत के उत्पादों की अच्छी मांग रही है। इन देशों में बासमती चावल, ग़ैर बासमती चावल, चीनी, ओरगनिक उत्पादों, हेल्थ फ़ूड, मसाले, आदि उत्पादों को निर्यात करने का संकल्प लिया गया और इस प्रकार पिछले 6 महीनों के दौरान कृषि उत्पादों के निर्यात में लगातार वृद्धि नज़र आ रही है। कुल मिलाकर इस सबके पीछे एक समन्वित प्रयास था।

इस प्रकार, भारत इस बार दुनिया को यह बताने में सक्षम रहा है कि बग़ैर किसी प्रकार की परेशानी के वैश्विक सप्लाई चैन को पकड़ते हुए भारत विश्व के अन्य देशों को उम्दा गुणवत्ता के कृषि उत्पाद बहुत ही उचित मूल्य पर सप्लाई कर सकता है। यह पहली बार हुआ है कि पूरे विश्व में केवल 6 महीनों के दौरान भारत यह विश्वास जगाने में सफल रहा है। भारत में दिसम्बर 2018 में नई कृषि निर्यात नीति पर मुहर लगाई गई थी। उस समय गुणवत्ता पूर्ण कृषि उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से उत्पादित करने की बात की गई थी। कृषि निर्यात नीति को लागू करने में एपेडा (APEDA), वाणिज्य मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, राज्य सरकारों, ज़िला स्तर पर प्रशासन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ज़िला स्तर पर कृषक उत्पादक संघ बनाए गए हैं एवं उत्पादों के अनुसार क्लस्टर बनाए गए हैं। यातायात सुविधाओं सहित आधारभूत सुविधाएं विकसित की गई हैं।

पूर्व में, देश से केवल दो या तीन उत्पादों के निर्यात ही अच्छी मात्रा में होते थे लेकिन अब 17 उत्पादों का निर्यात भारी मात्रा में किया जा रहा है और इनमें लगातार वृद्धि भी देखने में आ रही है। दरअसल देश से कृषि उत्पादों के निर्यात की नीव 5/6 साल पहिले ही रखी जा चुकी थी। आधारभूत सुविधाएं विकसित की जाती रहीं। बंदरगाहों की धारण क्षमता, उत्पादकता, कार्यक्षमता आदि में बहुत सुधार हुआ है। जो इलाक़े बंदरगाहों से बहुत दूर स्थित हैं, वहां से उत्पादों की आवाजाही को आसान बनाया गया है। उद्योग जगत ने भी कृषि उत्पादों को प्रॉसेस करने के लिये काफ़ी निवेश किया है। प्रॉसेसिंग इकाईयों एवं राइस मिलिंग की गुणवत्ता में काफ़ी सुधार किया गया है। साथ ही इनकी केपेसिटी भी बढ़ाई गई है। इन सभी कारणों के चलते भारत से आज 1.5 करोड़ टन चावल का निर्यात किया जा सकता है जो अभी तक केवल एक करोड़ टन तक सीमित रहता था।

भारत से मूंगफली का निर्यात नहीं हो पाता था क्योंकि भारतीय मूंगफली की मांग कम गुणवत्ता के कारण वैश्विक बाज़ार में विकसित नहीं हो पा रही थी। लेकिन अभी हाल ही में भारतीय मूंगफली की गुणवत्ता में सुधार किया गया है और अब मूंगफली का निर्यात भी अच्छी मात्रा में होने लगा है। इसी प्रकार चावल की गुणवत्ता में भी सुधार किया गया है, पहिले भारतीय चावल थाईलैंड और वियतनाम की तुलना में थोड़ा नीचा माना जाता था। परंतु, अब स्थिति बदल गई है। चीनी के निर्यात के सम्बंध में भी केंद्र सरकार द्वारा सही समय पर सही निर्णय लिए गए इसके चलते अच्छी दरों पर चीनी का निर्यात किया जा सका। गेहूं का स्टॉक भी सही समय पर रिलीज़ किया गया जिससे निर्यात के लिए उपलब्धता बढ़ी और भारतीय गेहूं को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में सही क़ीमतें मिली। भारतीय उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में विश्वसनीयता बढ़ी है और भारतीय उत्पादों की ब्राण्ड वैल्यू भी क़ायम हुई है। एपेडा ने किसानों के लिए एक पोर्टल लांच किया है ताकि किसानों को निर्यातकों के साथ मिलाया जा सके। आज इस पोर्टल पर 3000 से अधिक कृषक उत्पादक संघ एवं 2000 से अधिक निर्यातक रजिस्टर हो चुके हैं।

कोरोना महामारी के चलते पूरी दुनिया भी अब स्वास्थ्य के प्रति सजग हुई हैं और वही खाना चाहती है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से सही हो। इसी कारण से भारत से हल्दी और काली मिर्च का निर्यात पिछले दो तिमाहियों में लगभग 50 प्रतिशत बढ़ा है। ओरगनिक फ़ूड का निर्यात भी जुलाई से सितम्बर 2020 के बीच 74 प्रतिशत बढ़ा है। ये ट्रेंड इशारा कर रहे हैं कि आगे आने वाले समय में किन कृषि उत्पादों की मांग विश्व के अन्य देशों में बढ़ने वाली है। अतः भारत की नीति होगी कि किस प्रकार हेल्थ फ़ूड, वैल्यू ऐडेड प्रॉडक्ट्स, ओरगनिक प्रॉडक्ट्स, आदि उत्पादों के निर्यात को बढ़ाया जाय। इसके लिए विभिन्न देश भी चिन्हित किए गए हैं जहां इन उत्पादों का निर्यात बढ़ाया जा सकता है। वाणिज्य मंत्रालय एवं कृषि मंत्रालय इस दिशा में मिल का कार्य कर रहे हैं। देश में पहिले केवल कृषि उत्पादन बढ़ाने की ओर ध्यान दिया जाता था परंतु अब कृषि उत्पादों के निर्यात पर भी ध्यान दिया जा रहा है। खाड़ी के देशों एवं उन देशों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है जहां भारतीय अधिक मात्रा में रहते हैं। उत्पाद की गुणवत्ता पर भी ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा है। इन सभी कारणों से अब भारतीय उत्पादों का निर्यात के बाद रिजेक्शन लेवल भी लगभग शून्य हो गया है। पहिले यदि 100 अलर्ट्स आते थे तो आज मात्र 2 या 3 अलर्ट्स ही आते हैं।

निर्यात के सम्बंध में कुछ अवरोध भी देखने में आए हैं। जैसे, कुछ देशों में भारतीय चावल के आयात पर 35/40 प्रतिशत की दर से आयात कर लगाया जाता है जबकि इन्हीं देशों द्वारा वियतनाम एवं थाईलैंड से आयात किए जा रहे चावल पर केवल 10 प्रतिशत की दर से आयात कर लगाया जाता है। भारत सरकार द्वारा इन देशों से चर्चा करके करों की दरों को कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए। विभिन्न देशों से व्यापार समझौते भी किए जाने चाहिए ताकि भारत से कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ाया जा सके। भारत में चूंकि किसानों के पास जोत का आकर बहुत छोटा है अतः कृषक उत्पादक संघो की स्थापना अधिक मात्रा में की जानी चाहिए ताकि जोत के आकार को बढ़ाया जा सके। भारतीय निर्यातकों को अपने उत्पादों की विदेशी बाज़ार में ब्राण्ड अभी और भी मज़बूत करनी होगी ताकि भारतीय कृषि उत्पादों की मांग विदेशी बाज़ारों में आगे आने वाले समय और भी बढ़े।

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